महंगाई को काबू में लाने के लिए नीतिगत दर बढ़ाना ‘राष्ट्र विरोधी कदम'' नहीं: राजन

punjabkesari.in Tuesday, Apr 26, 2022 - 01:09 PM (IST)

बिजनेस डेस्कः भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि केंद्रीय बैंक को महंगाई को काबू में लाने के लिए नीतिगत दर बढ़ाने की जरूरत होगी और इस वृद्धि को राजनेताओं तथा नौकरशाहों को ‘राष्ट्र-विरोधी' कदम के रूप में नहीं लेना चाहिए। बेबाक राय रखने के लिए चर्चित राजन के अनुसार यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि ‘मुद्रास्फीति के खिलाफ अभियान' कभी समाप्त नहीं होता। उन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइट ‘लिंक्ड इन' पर लिखा है, ‘‘भारत में मुद्रास्फीति बढ़ रही है। एक समय पर आरबीआई को दुनिया के अन्य देशों की तरह नीतिगत दरें बढ़ानी ही पड़ेंगी।'' 

खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेजी से खुदरा महंगाई मार्च में 17 महीने के उच्चस्तर 6.95 प्रतिशत पर पहुंच गई। यह रिजर्व बैंक के संतोषजनक स्तर से ऊपर है। वहीं कच्चे तेल और जिंसों के दाम में तेजी से थोक महंगाई दर मार्च महीने में चार महीने के उच्चस्तर 14.55 प्रतिशत पर पहुंच गई। फिलहाल शिकॉगो बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस के प्रोफेसर राजन ने कहा, ‘‘राजनेताओं और नौकरशाहों को यह समझना होगा कि नीतिगत दर में वृद्धि कोई राष्ट्र-विरोधी कदम नहीं है, जिससे विदेशी निवेशकों को लाभ हो। बल्कि यह आर्थिक स्थिरता के लिए उठाया गया कदम है, जिसका सबसे ज्यादा लाभ देश को ही होता है।''

उल्लेखनीय है कि इस महीने की शुरुआत में केंद्रीय बैंक ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में महंगाई में तेजी के बावजूद आर्थिक वृद्धि को गति देने के मकसद से नीतिगत दर रेपो को लगातार 11वीं बार निचले स्तर चार प्रतिशत पर बरकरार रखा था। आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को बढ़ाकर 5.7 प्रतिशत कर दिया जबकि पूर्व में इसके 4.5 प्रतिशत रहने की संभावना जताई गई थी। राजन ने अपने कार्यकाल के दौरान ऊंची नीतिगत दर रखकर अर्थव्यवस्था को पीछे धकेलने को लेकर होने वाली आलोचनाओं का जवाब भी दिया। उन्होंने लिखा है कि वह सितंबर, 2013 में तीन साल की अवधि के लिए आरबीआई गवर्नर बने थे। उस समय रुपए की विनिमय दर में भारी गिरावट के साथ भारत के सामने मुद्रा संकट की स्थिति थी। 

पूर्व गवर्नर ने कहा, ‘‘जब मुद्रास्फीति 9.5 प्रतिशत थी, तब सितंबर, 2013 में महंगाई को काबू में लाने को रेपो दर को 7.25 प्रतिशत से बढ़ाकर 8 प्रतिशत किया गया। जब मुद्रास्फीति घटी, हमने रेपो दर 1.50 प्रतिशत घटाकर 6.5 प्रतिशत किया।'' उन्होंने कहा, ‘‘हमने मुद्रास्फीति को एक दायरे में रखने के लक्ष्य को लेकर सरकार के साथ समझौते पर भी हस्ताक्षर किए।'' राजन ने कहा कि इन कदमों से केवल अर्थव्यवस्था और रुपए को स्थिर करने में मदद मिलती है। अगस्त, 2013 से अगस्त, 2016 के दौरान मुद्रास्फीति 9.5 प्रतिशत से कम होकर 5.3 प्रतिशत पर आ गई। उन्होंने कहा कि आज विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब डॉलर से अधिक है, इससे आरबीआई को कच्चे तेल के ऊंचे दाम के बावजूद वित्तीय बाजारों को स्थिर बनाए रखने में मदद मिली। 

राजन ने कहा, ‘‘वर्ष 1990-91 में तेल की ऊंची कीमतों के कारण उत्पन्न संकट के कारण ही हमें मुद्राकोष के पास जाना पड़ा था। केंद्रीय बैंक के मजबूत आर्थिक प्रबंधन से यह सुनिश्चित हुआ है कि वैसी स्थिति दोबारा नहीं हो।'' उन्होंने स्वीकार किया जब प्रमुख ब्याज दर यानी नीतिगत दर बढ़ानी पड़ती है, कोई भी खुश नहीं होता। उन्हें अभी भी राजनीति से प्रेरित आलोचनाएं सुननी पड़ती है कि आरबीआई ने उनके कार्यकाल के दौरान अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया। उन्होंने कहा, ‘‘यह जरूरी है कि आरबीआई वह करे जो उसे करने की आवश्यकता है...।'' 


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Content Writer

jyoti choudhary

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