नोटबंदी के बाद लोगों ने 3 गुना ज्यादा कैश होल्ड किया

punjabkesari.in Friday, Nov 08, 2019 - 10:13 AM (IST)

नई दिल्लीः काले धन पर प्रहार और डिजीटल लेन-देन के प्रसार के लिए की गई नोटबंदी के अभियान को लोग पलीता लगाने में जुटे हैं। एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों ने नोटबंदी के एक साल बाद ही करीब 3 गुना नकद जमा कर लिया है। वर्ष 2011-12 से और नोटबंदी के ठीक पहले 2015-16 तक घरों में जमा नकदी बाजार में चल रही कुल करंसी का 9 से 12 फीसदी के करीब थी लेकिन वर्ष 2017-18 में ही यह 26 फीसदी तक पहुंच गई। राष्ट्रीय सांख्यिकी आंकड़ा (एन.ए.एस.) के ताजा आंकड़ों में यह सामने आया है कि लोग तेजी से नकदी जमा करने में जुटे हैं।

सरकार ने 8 नवम्बर 2016 को 500 और 1000 रुपए के नोटों को वापस लेते हुए नोटबंदी की घोषणा की थी लेकिन 99 फीसदी नकदी बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गई थी। नोटबंदी के दौरान गंवाई गई पूंजी को वापस जुटाने की कवायद में लोग नकदी जुटा रहे हैं। अजीम प्रेमजी यूनिवॢसटी के रिसर्च फैलो अविनाश त्रिपाठी के मुताबिक हम पहले ही कह चुके हैं कि नोटबंदी के दौरान नकदी की कमी अस्थायी है और पूंजी की उपलब्धता बढ़ते ही अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार आएगा लेकिन नोटबंदी के बाद लोग खर्च करने की बजाय ज्यादा पूंजी जमा करने की कोशिश करेंगे। इससे नकदी की उपलब्धता तो रहेगी मगर उसका लेन-देन कम होने से अर्थव्यवस्था में सुस्ती आएगी जो अभी देखने को मिल रही है।

मार्च 2017 के बाद तेजी से बढऩे लगी जमा पूंजी
रिजर्व बैंक लगातार ब्याज दर में कटौती कर अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की कोशिश कर रहा है लेकिन बाजार में पूंजी प्रवाह न बढ़ पाने से मुश्किलें पेश आ रही हैं। एन.ए.एस. के मुताबिक नोटबंदी के 4 माह बाद मार्च 2017 तक सामान्य स्थिति बहाल होने के बाद घरों में जमा रकम दोबारा तेजी से बढऩे लगी और लोगों ने पहले के मुकाबले काफी ज्यादा रकम बाहर निकाली। बैंकों के मुकाबले घरों में जमा रकम बढऩा खर्च में कमी और इस कारण अर्थव्यवस्था में सुस्ती की एक वजह माना जा रहा है।

बैंकों में जमा निचले स्तर पर 
रिपोर्ट में यह सामने आया कि लोगों की कुल बचत में घरों में जमा रकम की हिस्सेदारी 2017-18 में 25 फीसदी थी। यह वर्ष 2011-12 के बाद सर्वोच्च स्तर पर थी जबकि कुल वित्तीय बचत में बैंकों में जमा की हिस्सेदारी 28 फीसदी थी, जो वर्ष 2011-12 के बाद सबसे निचले स्तर पर थी।

 


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Supreet Kaur

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