चालू वित्त वर्ष में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की दिशा में पहल करना मुश्किल
punjabkesari.in Sunday, Jun 14, 2020 - 03:11 PM (IST)
नई दिल्लीः कोरोना वायरस संकट के चलते शेयर बाजारों में उतार-चढ़ाव और संपत्तियों के कम मूल्यांकन के साथ ही बैंकों की फंसी संपत्ति में वृद्धि को देखते हुए चालू वित्त वर्ष के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के किसी भी बैंक में निजीकरण की दिशा में पहल होने की संभावना बहुत कम है। सूत्रों ने यह कहा है। फिलहाल सार्वजनिक क्षेत्र के चार बैंक आरबीआई की त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) रूपरेखा के अंतर्गत हैं। इसके कारण उन पर कर्ज देने, प्रबंधन क्षतिपूर्ति और निदेशकों के शुल्क समेत कई प्रकार की पाबंदियां हैं।
सूत्रों ने कहा कि ऐसे में इन बैंकों इंडियन ओवरसीज बैंक (आईओबी), सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, यूको बैंक और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को बेचने का कोई मतलब नहीं है। मौजूदा हालात में निजी क्षेत्र से कोई भी इन्हें लेने को इच्छुक नहीं होगा। उसने कहा कि सरकार रणनीतिक क्षेत्र की इन इकाइयों को संकट के समय जल्दबाजी में नहीं बेचना चाहेगी।
उल्लेखनीय है कि मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमणियम ने पिछले सप्ताह बैंकों के निजीकरण का संकेत दिया। निजीकरण की नीति के बारे में उन्होंने कहा कि बैंक रणनीतिक क्षेत्र का हिस्सा होगा और सरकार रणनीतिक तथा गैर-रणनीतिक क्षेत्रों को चिन्हित करने की दिशा में काम कर रही है। मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा, ‘‘गैर-रणनीतिक क्षेत्रों में सभी सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण किया जाएगा। रणनीतिक क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को एक से चार तक सीमित रखा जाएगा। रणनीतिक रूप से सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र में निजी क्षेत्र से जहां प्रतिस्पर्धा है, वहां ठीक है। जहां नहीं है, उसे किया जाएगा। बैंक रणनीतिक क्षेत्र है काम जारी है।''
सूत्रों ने कहा कि किसी बैंक की पूरी बिक्री तो छोड़िए किसी सरकारी बैंक में शायद ही हिस्सेदारी बिक्री के लिए कदम उठाया जाएगा। इसका कारण इस समय इनका सही मूल्यांकन होना मुश्किल है। उसने यह भी कहा कि अनिवार्य नियामकीय जरूरतों को पूरा करने के लिए लगातार पूंजी डाले जाने से सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 75 प्रतिशत से ऊपर निकल गई है। सूत्रों ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने न केवल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सुधार की प्रक्रिया को रोका है बल्कि इसका निजी क्षेत्र के बैंकों की वित्तीय सेहत पर भी प्रतिकूल असर पड़ने जा रहा है।