पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के लिए रियल एस्टेट क्षेत्र की समस्याओं का निदान जरूरी: नारेडको

punjabkesari.in Wednesday, Jan 08, 2020 - 06:11 PM (IST)

नई दिल्लीः भारत को 2024-25 तक पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए आगामी बजट में सरकार को रियल एस्टेट क्षेत्र में नकदी की तंगी दूर करने और दबाव में फंसी आवासीय परियोजनाओं को बैंकों से एकबारगी राहत अथवा कर्ज पुनर्गठन की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए। 

केन्द्र सरकार के शहरी एवं आवास विकास मंत्रालय के तहत कार्य करने वाले ‘नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल (नारेडको)' ने सरकार के समक्ष यह मांग रखी है। उसने कहा है कि रियल एस्टेट क्षेत्र इस समय नकदी की भारी तंगी से जूझ रहा है। नकदी के अभाव में अटकी पड़ी आवासीय परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए सरकार को रियल एस्टेट कंपनियों के कर्ज का पुनर्गठन करना चाहिए अथवा उन्हें बैंकों को ऐसे कर्ज के मामले में एकबारगी राहत देने का विकल्प देना चाहिए। इससे कर्ज लेने वाली कंपनी का खाता ‘मानक खाता' बना रहेगा और संबंधित राशि गैर- निष्पादित राशि (एनपीए) नहीं बनेगी। 

नारेडको के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. निरंजन हीरानंदानी ने बुधवार को कहा, ‘‘कुछ भी नामुमकिन नहीं है। रियल एस्टेट क्षेत्र में दहाई अंक में वृद्धि हासिल करना मुमकिन है। सरकार को टुकड़ों में नहीं बल्कि समग्र रूप से इस क्षेत्र की समस्याओं का समाधान करना चाहिए। रियल एस्टेट क्षेत्र से 269 अन्य सहायक उद्योग जुड़े हैं। जमीन-जायदाद और आवास क्षेत्र यदि तेजी से आगे बढ़ेगा तो पूरी अर्थव्यवस्था की गति बढ़ेगी। यह क्षेत्र भारत को 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में अहम योगदान कर सकता है।'' 

हीरानंदानी ने कहा कि सरकार ने अब तक जो भी कदम उठाए हैं उनको लेकर सकारात्मक संकेत अर्थव्यवस्था में दिखने लगे हैं। बस इसे और प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। ‘‘सरकार को चाहिए 31 मार्च 2020 को अथवा इससे पहले होने वाले सभी तरह के रियल एस्टेट सौदों पर स्टाम्प शुल्क में 50 प्रतिशत कटौती होनी चाहिए। इसका असर यह होगा कि अभी तक प्रतीक्षा कर रहे लोग भी आगे बढ़कर घर खरीदना शुरू करेंगे।'' हीरानंदानी देश के प्रमुख उद्योग मंडल एसोचैम के भी अध्यक्ष बने हैं। उन्होंने कहा कि देश में 2022 तक सभी को आवास उपलब्ध कराने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए देश में किराएदारी आवासों को प्रोत्साहन देने की जरूरत है।

शहरी क्षेत्रों में बढ़ती आबादी को आवासीय सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए किराएदारी आवास बेहतर विकल्प होगा। डेवलपरों को इसके लिए कर रियायतें दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि आवास ऋण पर ब्याज दर को कम करके सात प्रतिशत तक नीचे लाया जाना चाहिए। ब्याज दर में कमी का लाभ अंतिम उपयोगकर्ता तक पहुंचना चाहिए। हीरानंदानी ने सस्ती आवासीय परियोजनाओं को नए सिरे से परिभाषित करने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि माल एवं सेवाकर (जीएसटी) और आयकर कानून में हाल ही में सस्ते आवासों की परिभाषा को अलग अलग संशोधित किया गया है। ऐसे में सस्ता घर चाहने वालों को दो-दो शर्तों को पूरा करना पड़ता है। 

उन्होंने सुझाव दिया है कि सस्ते आवासों के लिए 45 लाख रुपए की मूल्य सीमा को समाप्त कर 60 अथवा 90 वर्गमीटर क्षेत्र वाले मकानों को ही यह लाभ देने की सिफारिश की है। सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद निजी क्षेत्र में निवेश नहीं बढ़ने के सवाल पर हीरानंदानी ने कहा कि दिल्ली, एनसीआर, नोएडा और गुड़गांव में हालांकि कुछ सुस्ती है लेकिन देश के अन्य भागों हैदराबाद, बेंगलुरू, मुंबई में नई परियोजनाएं आ रही हैं। ‘‘नया निवेश आ रहा है। वर्ष 2019 में 20 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया है। सकारात्मक रुख दिखने लगा है। अटकी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी कोष के तहत चार परियोजनाओं को मंजूरी मिल चुकी है और परियोजनाएं इसके तहत आएंगी। इसके लिए अगली बैठक जल्द होने वाली है।''


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jyoti choudhary

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