आम्रपाली केसः 42000 से अधिक घर खरीदारों को बड़ी राहत, NBCC पूरे करेगी अधूरे प्रॉजेक्ट

punjabkesari.in Tuesday, Jul 23, 2019 - 11:09 AM (IST)

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 42,000 से अधिक घर खरीदारों को राहत देते हुए आम्रपाली ग्रुप की कंपनियों का रेरा के तहत रजिस्ट्रेशन कैंसल कर दिया है। साथ ही नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बचे प्रॉजेक्ट पूरे करने के लिए नेशनल बिल्डिंग्स कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एनबीसीसी) को जिम्मेदारी सौंप दी गई है। प्रवर्तन निदेशालय से भी कहा गया है कि घर खरीदारों की रकम डायवर्ट करने के मामले में कंपनियों के निदेशकों के खिलाफ जांच की जाए।
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अब NBCC बनाएगी अधूरे फ्लैट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोएडा ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी भी लापरवाही की जिम्मेदार है। लीज डीड में गंभीर गड़बड़ी की गई है। कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय को आम्रपाली के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक अनिल शर्मा तथा कंपनी के अन्य निदेशकों और वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा किए गए कथित मनी लॉन्ड्रिंग (धन शोधन) की जांच का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा के प्राधिकरणों ने आम्रपाली के साथ सांठगांठ करके उसे मकान खरीदारों के पैसे की हेर-फेर करने में मदद की और कानून के हिसाब से काम नहीं किया। न्यायाधीश अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि फॉरेंसिक ऑडिट में भी घर खरीदारों की खून पसीने की कमाई में फ्रॉड की पुष्टि हुई है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एनबीसीसी फ्लैट बनाकर खरीदारों को देगी। इसमें एनबीसीसी को 8 फीसदी कमीशन मिलेगा।
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ED ने दर्ज किया धन शोधन का मामला
प्रवर्तन निदेशालय ने आम्रपाली ग्रुप तथा उसके प्रवर्तकों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग (धन शोधन) का आपराधिक मामला दर्ज किया है। ईडी के लखनऊ कार्यालय ने नोएडा पुलिस के समक्ष कंपनी के खिलाफ कम से कम 16 प्राथमिकी दर्ज होने का संज्ञान लेते हुए इस महीने की शुरुआत में धन शोधन रोकथाम अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है। अधिकारियों ने कहा कि ईडी कंपनी के प्रवर्तकों से पूछताछ करने तथा धन शोधन संबंधी कानून का उल्लंघन करने को लेकर जब्त किए जाने योग्य संपत्तियों की पहचान करने पर विचार कर रही है।
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10 मई को फैसला रखा था सुरक्षित
नोएडा और ग्रेटर नोएड प्राधिकरणों के आम्रपाली समूह की अटकी परियोजनाओं को पूरा करने में असमर्थता जताने के बाद शीर्ष अदालत ने इस मामले में 10 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। दोनों प्राधिकरणों ने एक उच्च शक्ति प्राप्त निगरानी समिति की देखरेख में इन अटकी पड़ी परियोजनाओं को किसी प्रतिष्ठिक बिल्डर को सुपुर्द करने का समर्थन किया था। दोनों ने इस तरह की परियोजनाओं को पूरा करने में संसाधन और विशेषज्ञता की कमी बताते हुए इन्हें पूरा करने से इंकार कर दिया था।


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