वर्ष 2022 : ओमिक्रॉन से रंग में भंग, नई आशाएं और वायदे

punjabkesari.in Wednesday, Dec 29, 2021 - 05:16 AM (IST)

वर्ष 2021 का विदाई गीत किस प्रकार लिखें। शैम्पेन की बोतल खोलें और ढोल-नगाड़े बजाएं? नई आशाओं, सपनों और वायदों के पंखों पर सवार होकर वर्ष 2022 का स्वागत करें? या वर्ष 2021 के 12 महीने की तरह यह वर्ष भी दुखी करेगा? वर्ष 2021 इतिहास में एक उथल-पुथल भरे वर्ष के रूप में याद किया जाएगा। 

कोरोना महामारी पुन: रंग में भंग डालने का कार्य कर रही है। इसका नया स्वरूप ओमिक्रॉन मानव जाति को पुन: अपने दुष्चक्रमें फंसा रहा है और हमें यह एहसास करा रहा है कि हम एक राष्ट्र के रूप में युद्धस्तर पर इस संकट का सामना करने के लिए कितने कमजोर हैं। प्रधानमंत्री ने कोरोना के टीके की बूस्टर डोज लगाने और 15 से 18 आयु वर्ष के बच्चों के लिए टीकाकरण की घोषणा की है, जो एक स्वागत योग्य कदम है। उपचार से एहतियात अच्छी है। 

राजनीतिक दृष्टि से वर्ष 2022 की शुरूआत 5 राज्यों में विधानसभा चुनावों से होगी, जो फिर से कोरोना महामारी का संक्रमण फैला सकते हैं क्योंकि हमारे नेता ‘जिसकी लाठी, उसकी भैंस’ के सिद्धान्त को अपनाते हैं, अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए तरह-तरह की घोषणा करते हैं, उसके लिए बड़ी-बड़ी रैलियां करते हैं। 

विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस के लिए ये आगामी चुनाव निर्णय करेंगे कि क्या यह वर्तमान मरणासन्न स्थिति से पुनर्जीवित हो पाती है या नहीं क्योंकि तृणमूल कांग्रेस की तेजतर्रार नेता ममता बनर्जी ने रिंग लीडर के रूप में अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं। पश्चिम बंगाल में भाजपा के विजयी रथ को रोकने के बाद ममता के हौसले बुलंद हैं हालांकि भाजपा ने राज्य में अपनी 2016 की विधायकों की सूची में वृद्धि की है। वह राज्य में मुख्य विपक्षी दल है जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। 

केंद्र सरकार के लिए तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करना एक पराजय की तरह था किंतु मोदी ने एक कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में यह कदम उठाया क्योंकि संघर्षरत किसान दिल्ली की सीमाओं से एक वर्ष से उठने का नाम नहीं ले रहे थे। लोग यह भी कह सकते हैं कि यह 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव और विशेषकर महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के कारण किया गया है किंतु एक कुशल राजनेता लोकप्रिय भावनाओं को भी ध्यान में रखता है। सुधारों को आगे बढ़ाना हमेशा एक जटिल कार्य होता है, किंतु इसने सरकार के कृषि सुधारों को सुचारू रूप से आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। 

जाते वर्ष में धार्मिक क्षेत्र में घृणास्पद भाषणों की भरमार रही और अभी हाल में हरिद्वार में हिंदूू रक्षक सेना के अध्यक्ष स्वामी प्रबोधानंद गिरि ने एक धर्म संसद में विषवमन किया है। उन्होंने कहा कि म्यांमार की तरह, जहां पर हिन्दू मारे गए, वहां पर पुलिस, राजनेताओं, सेना और प्रत्येक हिन्दू को हथियार उठाने चाहिएं और मुसलमानों से अपने धर्म की रक्षा करने के लिए बलिदान देने के लिए तैयार रहना चाहिए। हमें भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए यह सफाई अभियान चलाना होगा। 

इस मामले में ए.आई.एम.आई.एम. के ओवैसी भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने कानपुर में कहा, ‘‘कृपया ध्यान रखिए। योगी हमेशा मुख्यमंत्री नहीं रहेगा, मोदी हमेशा प्रधानमंत्री नहीं रहेगा। हम मुसलमान आपके साथ हुए अन्याय को नहीं भूलेंगे। जब योगी अपने मठ में चला जाएगा और मोदी पहाड़ों में चला जाएगा, फिर तुम्हें बचाने कौन आएगा।’’ 

स्पष्ट है कि जिस तरह से देश में सहिष्णुता का वातावरण पैदा हो रहा है, वह एक चिंता का विषय है। केरल में नारकोटिक्स जिहाद से लेकर ईसाइयों को इस्लाम के प्रति आकॢषत करना, उत्तर प्रदेश में लव जिहाद के लिए मादक द्रव्यों का प्रयोग करना और ईश्वर को लेकर राजनीति आज सर्वत्र देखने को मिल रही है। 

पूर्ववर्ती सरकारों पर मुस्लिम राजनीति का आरोप लगाते हुए योगी ने कहा कि जो लोग अब्बा जान कहते थे, वे गरीब लोगों का राशन हजम कर गए हैं। तो इस पर समाजवादी पार्टी ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि भाजपा डरा कर राज करना चाहती है। इस राजनीतिक आक्रोश के बीच आम आदमी रोटी, कपड़ा और मकान के लिए संघर्ष कर रहा है और उसमें आक्रोश बढ़ता जा रहा है। 

सामाजिक मोर्चे पर स्थिति और भी दयनीय है। शिक्षा, स्वास्थ्य और खाद्यान्न पर अरबों रुपए खर्च करके स्वतंत्रता के 7 दशक बाद भी आज 70 प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। लोगों में अशिक्षा बढ़ रही है, उनमें कौशल का अभाव है और उन्हें चिकित्सा देखभाल जैसी बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं है।

दु:खद तथ्य यह भी है कि व्यवस्था के प्रति आम आदमी का मोह भंग हो रहा है। किसी भी राज्य, मोहल्ला या राज्य में चले जाओ, स्थिति वैसी ही है जिसके चलते अधिक लोग कानून अपने हाथ में ले रहे हैं और दंगा-फसाद बढ़ता जा रहा है। भीड़भाड़ भरी रेलगाडिय़ों में महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहा है और सह यात्री मूक दर्शक बने बैठे हैं तथा कई बार ऐसा लगता है कि हमारा देश अंधेर नगरी बन गया है। 

हाल ही में कनार्टक में एक मंत्री ने महिलाओं को सलाह दी कि यदि बलात्कार अपरिहार्य हो तो लेट जाओ और उसका मजा लो। ऐसे समय में महिलाओं के लिए स्वतंत्रता और समानता की बात करना बेमानी होगी। महिला सशक्तिकरण की बड़ी-बड़ी बातें होती रहती हैं लेकिन लड़कियों की विवाह की उम्र 18 से 21 वर्ष करने के प्रस्ताव का विरोध किया जा रहा है। 

विदेशी मामलों में, चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध बिगड़ते जा रहे हैं। पिछले 22 महीनों में चीन के साथ अनेक बार सैनिक और कूटनयिक वार्ता के बावजूद पूर्वी लद्दाख में गतिरोध बना हुआ है। चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर नए क्षेत्रों में घुसपैठ के लिए निरंतर प्रयासरत है और इसके लिए वह अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास नए गांव बसा रहा है और पी.एल.ए. के सैन्य शिविर स्थापित कर रहा है। 

देश वर्ष 2022 में प्रवेश कर रहा है। हमारे नेतागणों को सजग रहना, अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना, अपने चाल-चलन को बदलना और शासन से संबंधित वास्तविक गंभीर मुद्दों का निराकरण करना होगा। लोगों को रोजगार चाहिए। वे पारदर्शिता और जवाबदेही की अपेक्षा करते हैं। हमें आज ऐसे नेताओं की आवश्यकता है जो दृढ़ निश्चय के साथ नए भारत का निर्माण करें, न कि छुटभैये नेताओं की। 

हमें इस बात पर ध्यान केन्द्रित करना होगा कि क्या बातें 2022 को अच्छा वर्ष बना सकती हैं। यह आसान नहीं है किंतु हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। हमें बुनियादी मुद्दों पर ध्यान देना होगा और हमें अपना दृष्टिकोण अधिक मानवीय बनाना होगा तथा दुनिया को एक नए चश्मे से देखना होगा, जिसमें सही अधिकार, सही इरादे और तार्किक आशाएं हमारी प्रतिक्रिया का मार्ग-निर्देशित करेंगी। आपका क्या विचार है?-पूनम आई. कौशिश 
 


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