‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के चिंताजनक संकेत’

punjabkesari.in Thursday, Dec 17, 2020 - 04:30 AM (IST)

हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पांचवें राऊंड की रिपोर्ट जारी की गई। जोकि देश में पारिवारिक स्वास्थ्य के हालातों की आंखें खोल देने वाली है। इसके कुछ सकारात्मक तथा कुछ अच्छे संकेत भी हैं मगर कुल मिला-जुला कर इसकी बनावट चिंता का विषय है तथा इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। पिछले शनिवार को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने रिपोर्ट का पहला हिस्सा जारी किया जिसमें 17 राज्यों से एकत्रित किए गए आंकड़े शामिल हैं। कोरोना महामारी के फूटने के कारण अन्य राज्यों में सर्वेक्षण नहीं करवाया जा सका। हालांकि उपलब्ध आंकड़े एक आम ट्रैंड को दर्शाते हैं तथा नागरिकों के स्वास्थ्य के हालातों से पर्दा उठाते हैं। 

राष्ट्रीय सर्वेक्षण एक बड़े स्तर वाला बहु-आयामी सर्वेक्षण है जो पूरे भारत वर्ष में घरेलू लोगों के प्रतिनिधियों के सैंपल पर आधारित है। यह विस्तृत तौर पर जनसंख्या, स्वास्थ्य तथा पोषण के आंकड़ों पर आधारित है। वहीं इसका ज्यादातर ध्यान महिलाओं तथा बच्चों पर रखा गया है। नागरिकों के लिए नीतियों तथा स्कीमों को घढऩे के लिए ऐसे आंकड़े बेहद महत्वपूर्ण हैं। 

एक खुशी वाला संकेत इस बात का है कि भारत की जनसंख्या का बढऩा थम गया है क्योंकि कुल मृत्युदर ज्यादातर राज्यों में कम हो गई है। यह दर्शाता है कि ज्यादातर राज्यों ने मृत्युदर का स्थापन पा लिया है। सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि महिलाओं की स्टरलाइजिंग निरंतर ही प्रभावी हुई है क्योंकि गर्भपात के आधुनिक तरीके विकसित हुए हैं। आंध्र प्रदेश जैसे राज्य में यह दर 98 प्रतिशत तक की है। इसके विपरीत परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी निरंतर ही सीमित हुई है। महिलाओं में एनीमिया प्रमुख चिंता का विषय है। सभी राज्यों में महिलाओं में एनीमिया पुरुषों के मुकाबले अधिक है। 

अन्य सकारात्मक समाचार यह है कि बच्चों में मृत्युदर भी कम हुई है। छोटे बच्चों के रोगक्षमीकरण में बढ़ौतरी हुई है मगर बुरी खबर अच्छी खबर को अपने दायर में ले रही है। आंकड़े दर्शाते हैं कि जबकि बच्चों में मृत्युदर कम हो रही है वहीं उनमें कुपोषण की समस्या बढ़ रही है जिसके चलते शारीरिक विकास में कमी आ रही है। इसके अलावा बच्चों के कद बढऩे में भी मुश्किल आ रही है। इसके चलते देश के विकास तथा तरक्की में लम्बे समय में चिंताजनक उलझाव देखने को मिलेगा। 

सर्वेक्षण ने पाया कि अनेकों राज्य तथा केंद्रशासित प्रदेशों में बच्चों का छोटे कद तथा कमजोरी का अनुपात भी बढ़ा है। अधिकतर राज्यों में बच्चों में कम वजन तथा विकास देखा जा रहा है। इसका प्रतिशत भी ङ्क्षचताजनक है। बच्चों में पोषक तत्वों की कमी जोखिम को दर्शाती है। एक बात और भी ज्यादा चौंकाने वाली है कि इस क्षेत्र में राज्य ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे, वहीं केरल, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा तथा हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य तुलनात्मक तौर पर ज्यादा समृद्ध हैं। स्वच्छ भारत अभियान, स्वच्छ खाना बनाने वाला ईंधन, स्वच्छ पीने के पानी की उपलब्धता तथा मिड-डे मील जैसे सरकार द्वारा चलाए गए जागरूकता कार्यक्रमों के बावजूद भी उलटी वृद्धि देखी गई है। एक अन्य  चिंताजनक पहलू यह है कि प्राप्त किए गए आंकड़े कोविड महामारी से पहले के हैं और ऐसे कार्यक्रमों को महामारी अवधि के दौरान एक बड़ा झटका लगा है। 

विडम्बना यह है कि असमानता के बढ़ते संकेत के अंतर्गत सर्वेक्षण ने खुलासा किया है कि देश में मोटापा विशेषकर महिलाओं तथा बच्चों में ज्यादा बढ़ा है और इसका मूल कारण जंक फूड, चीनी से बने पकवान तथा हाई फैट है। इसके अलावा शहरी क्षेत्रों में समाज के एक वर्ग में गतिहीन लाइफस्टाइल होना भी शामिल है। सर्वेक्षण ने यह भी खुलासा किया कि कुछ राज्यों में बाल विवाह में बढ़ौतरी हुई है जिसके चलते नाबालिग दुल्हनों में गर्भधारण बढ़ा है। सर्वेक्षण का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि इंटरनैट का इस्तेमाल भी बढ़ा है और ङ्क्षलग अंतर मेंं भी बढ़ौतरी हुई है। स्पष्ट तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में यह अंतर ज्यादा है। 

महामारी के दौरान शिशु पोषक कार्यक्रमों तथा साधारण कल्याणकारी  कार्यक्रमों को झटका लगा है। पोषक में बदलते ट्रैंड से निपटने के लिए सरकार को रणनीति के लिए योजना बनानी चाहिए। नागरिकों का बिगड़ता हुआ स्वास्थ्य पूरे तौर पर न केवल एक व्यक्ति को प्रभावित करेगा बल्कि यह राज्य के चिकित्सीय स्रोतों पर भी और बोझ लाद देगा। इसके चलते अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी। सर्वेक्षण के पहले चरण से एकत्रित हुए आंकड़े एक विकट दृश्य पेश करते हैं। इस पर तत्काल ही ध्यान देने की आवश्यकता है।-विपिन पब्बी
 


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