‘भाजपा के लिए दक्षिण जीतना दूर की कौड़ी’

punjabkesari.in Tuesday, Mar 02, 2021 - 03:13 AM (IST)

चार राज्यों तथा एक केंद्र शासित प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव जिसमें से तीन दक्षिण में होने हैं, में क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पाॢटयों के आकार को देखा जाएगा। यह चुनाव 3 राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस, भाजपा, वामदल तथा अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। दक्षिण के पांच राज्य संसद में 129 सदस्य भेजते हैं। पुड्डुचेरी का उल्लेख करते हुए कांग्रेस के विरोधी चुनावों से पहले यह दर्शाना चाहते हैं कि कांग्रेस अपने विधायकों को मजबूती प्रदान नहीं कर सकती, फिर चाहे उन्हें वोट मिले हों। पिछले सप्ताह कांग्रेस ने दक्षिण भारत के एकमात्र राज्य को अपने हाथों से खो दिया था। 

दक्षिण भारत राज्य क्षेत्रीय पार्टियों के हाथों में चले गए हैं क्योंकि लोगों ने कांग्रेस पर भरोसा खो दिया है जिसने किसी समय सभी दक्षिण राज्यों पर अपना नियंत्रण बरकरार रखा था। कर्नाटक में जद (एस) के साथ गठबंधन, आंध्र में तेदेपा तथा तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक ने भाजपा को मदद दी है जिससे दक्षिण में इसका प्रभाव बढ़ा है। वहीं कांग्रेस ने द्रमुक, जद (एस) तथा केरल में मुस्लिम लीग की तरह यू.डी.एफ. गठबंधन सहयोगी पाए हैं।

क्षेत्रीय पार्टियों के पास सशक्त नेता हैं जो मतदाताओं को अपनी छवि से आकर्षित कर सकते हैं। यहां पर जद (एस) (कर्नाटक), तेदेपा तथा वाई.एस.आर.सी.पी. (आंध्र प्रदेश), टी.आर.एस. (तेलंगाना), अन्नाद्रमुक तथा द्रमुक (तमिलनाडु) जैसी पार्टियां हैं जो एक चमकदार उदाहरण हैं। अन्नाद्रमुक को छोड़ कर बाकी की पार्टियों के पास गौड़ा, नायडू तथा राव जैसे पारिवारिक क्षेत्र हैं। द्रमुक जैसे अन्य दल जद (एस), टी.आर.एस. तथा तेदेपा ने पहले से ही दूसरी पीढ़ी को सत्ता का हस्तांतरण कर दिया है। इन क्षेत्रीय क्षत्रपों की तुलना में न तो भाजपा और न ही कांग्रेस ने उच्चकोटि के नेता विकसित किए हैं। 

जहां तक वामदलों का सवाल है इसकी विचारधारा वर्तमान पीढ़ी के लिए प्रासंगिक नहीं है। दक्षिण के लिए भाजपा का कोर एजैंडा कोई आकर्षण नहीं रखता। वहीं कांग्रेस अपनी विचारधारा के बारे में लडख़ड़ाई हुई है। भाजपा अपने पंखों को दक्षिण राज्यों में आगामी चुनावों के दौरान पसारना चाहती है। छोटे से केंद्र शासित प्रदेश पड्डुचेरी में राजनीति का खेल एक नवीनतम उदाहरण है जहां पर कांग्रेस तथा द्रमुक के बागियों ने भाजपा को ज्वाइन किया है जिसमें दो मंत्री शामिल हैं। 

भाजपा दक्षिण में केवल कर्नाटक को हड़प सकती है। इसके कई कारण हैं जिसमें किसी सशक्त स्थानीय नेताओं की अनुपस्थिति भी है। भाजपा को वैसे भी उत्तरी भारत की पार्टी माना जाता है। एक हिन्दू-मुस्लिम धुरी पर पार्टी के पास सशक्त धार्मिक धुवीकरण की कमी है। मुस्लिम स्थानीय लोगों से जुड़े हुए हैं और वैसे भी यहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दायरा सीमित है जिसका मतलब यह है कि मोदी की छवि क्षेत्रीय दलों से पार नहीं पा सकती। भाजपा प्रत्येक चुनाव को, यहां तक कि पंचायती चुनाव को भी लोकसभा चुनावों की तरह ही महत्वपूर्ण मानती है। भाजपा कई कदमों का सहारा लेती है। पार्टी अपना आधार बढ़ा रही है और दूसरे दलों से बागी हुए नेताओं को भाजपा में शामिल कर रही है। 

द्रावडिय़न पार्टियां 1967 से ही छाई हुई हैं जब द्रमुक ने तमिलनाडु राज्य को 1967 में कांग्रेस से छीना था तब से लेकर कांग्रेस ने एक या अन्य द्रावडिय़न पार्टी के साथ गठजोड़ किया। भाजपा का आरोप है कि वह 2016 में अन्नाद्रमुक प्रमुख जे.जयललिता की मौत के बाद राज्य को छद्म रूप से चला रही है। तमिलनाडु 2 पाॢटयों द्रमुक या अन्नाद्रमुक से एक को चुनता आया है और अब बारी द्रमुक की है। केरल एकमात्र राज्य है जो वामदलों के नियंत्रण में है। यहां पर भी 2 पाॢटयों का विकल्प होता है-माकपा के नेतृत्व वाला एल.डी.एफ. तथा कांग्रेस के नेतृत्व वाला यू.डी.एफ.। केरल में आर.एस.एस. ने बहुत काम किया है। 1998 के बाद वोट शेयर बढ़ा है। भाजपा को लम्बा रास्ता तय करना है। 

2016 में केरल में भाजपा की टिकट पर एकमात्र विधायक चुने जाने के बाद पार्टी छोटे दलों के समायोजन से आगे बढ़ रही है। मगर अभी भी भाजपा को 2 अन्य राष्ट्रीय पाॢटयों के नियंत्रण से पार पाना दूर की कौड़ी लग रहा है। 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी का खाता भी न खुल पाया था। पुड्डुचेरी में कांग्रेसी मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी की सरकार के गिरने के बाद कांग्रेस अपराधी की भूमिका निभा रही है। पार्टी ने गिरावट देखी है। एन.डी.ए. की सहयोगी एन.आर. कांग्रेस की मदद से भाजपा अच्छा करने की उम्मीद रखती है। 

दक्षिण को जीतने के लिए 3 राष्ट्रीय पाॢटयों को 15 क्षेत्रीय दलों को झेलना होगा या उनमें शामिल होना होगा। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, असम में अगप, तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक तथा द्रमुक और पुड्डुचेरी में एन.आर. कांग्रेस जैसी पाॢटयों के लिए ये चुनाव करो या मरो जैसी जंग वाले होंगे। असम, केरल, पुड्डुचेरी तथा तमिलनाडु में जीत कांग्रेस की प्रतिष्ठा को फिर से बढ़ाएगी। केरल में माकपा को अपना आधार मजबूत करना है। पांचों राज्यों में भाजपा को अपनी चमक दिखानी होगी।-कल्याणी शंकर


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