क्या योगी उत्तर प्रदेश में इतिहास दोहरा सकेंगे

punjabkesari.in Friday, Nov 12, 2021 - 03:41 AM (IST)

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों  में अब यह साफ है कि मुख्य मुकाबला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बीच होने जा रहा है। दोनों यानी भाजपा और समाजवादी पार्टी ने अपने-अपने सहयोगी दल चिन्हित भी कर लिए हैं और गठबंधन भी कर लिया है। कहा जाता है कि वोटर को मजबूत नेता चाहिए। इस पैमाने पर भी योगी और अखिलेश खरे उतरते हैं। 

योगी को संघ परिवार का सहारा है तो अखिलेश को मुलायम सिंह परिवार में एकजुटता होने से बड़ा सहारा मिला है। कहा जा रहा है कि जाति के आधार पर चुनाव लड़ा गया तो अखिलेश कड़ी चुनौती दे सकते हैं लेकिन अगर धर्म हावी रहा यानी हिंदुत्व ने जाति को 2014 और 2017 की तरह तोड़ा तो फिर योगी की चांदी हो सकती है। योगी कभी कारसेवकों पर गोली चलाए जाने की घटना को याद करते हैं और इस बहाने ‘मौलाना’ मुलायम के काल को सामने रखते हैं तो कभी कैराना जाकर वहां से हुए कथित पलायन की याद करते हैं। साथ ही साथ सीधे चेतावनी देते हैं कि भविष्य में कैराना दोहराया नहीं जाएगा। 

हालांकि इस हिंदूवाद का दूसरा पहलू यह है कि योगी आदित्यनाथ 18 से 20 फीसदी वोटरों को ही प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। यानी ऐसे वोटर जो उग्र हिंहदुत्व विचारधारा के प्रवाह में बह सकते हैं। इसके साथ ही गोरखनाथ मठ के अनुयायी हैं जो स्वाभाविक रूप से योगी आदित्यनाथ के परम भक्त हैं और वोट उसी तरफ जाना है। 

ऐसा लगता है कि भाजपा को अभी भी उम्मीद है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का कार्ड चल सकता है। हिंदुत्व का झंडा अगर योगी ने थामा है तो विकास का ध्वज फहराने का जिम्मा उठा रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी, जो विकास के नाम पर 50 फीसदी वोटरों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। गैस सिलैंडर की उज्जवला योजना की शुरुआत यू.पी. के बलिया से की गई थी और पार्ट टू की शुरुआत भी यू.पी. के महोबा से की गई। मुफ्त पांच किलो अनाज के साथ एक किलो दाल, एक किलो तेल, एक किलो चीनी भी दी जाएगी। जोर-शोर से प्रचारित किया जा रहा है कि यू.पी. में 15 करोड़ लोगों को इससे फायदा होगा। इसी तरह उजाला, इज्जत घर के बाद हर घर नल के लिए जल योजना को भी गेम चेंजर बताया जा रहा है। 

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव 19 फीसदी मुस्लिम वोटों पर तो एकतरफा अख्तियार चाहते हैं लेकिन हिंदू वोटों का बिखराव भी चाहते हैं। उन्होंने अपने कार्यकत्र्ताओं से दीवाली लखीमपुर खीरी कांड स्मृति  दिवस के रूप में मनाने को कहा। ‘अब्बाजान’ के बयान पर उन्होंने बस इतना कहा था कि योगीजी के पिता के बारे में कुछ बोलना नहीं चाहते। हाल ही में जिन्ना को महात्मा गांधी और सरदार पटेल के साथ आजादी दिलाने वालों में शामिल करने वाले बयान पर बवाल मचा था। 

दरअसल योगी के लिए हिंदुत्व की बात करना सियासी मजबूरी है क्योंकि वह नहीं चाहते कि यू.पी. में चुनाव जाति के आधार पर लड़ा जाए। अब जाति को धर्म ही तोड़ता है लिहाजा वह रामभरोसे हो रहे हैं। योगी चाहते हैं कि चुनाव सीधे-सीधे मुस्लिम-यादव एक तरफ, बाकी सारे एक तरफ हो जाए। उधर मोदी विकास के नाम पर लाभाईईयों का ध्रुवीकरण करें। इसके बावजूद भाजपा कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती। लिहाजा उसने अपना दल से लेकर निषाद पार्टी तक से चुनावी समझौता किया है। 

उधर अखिलेश को उम्मीद है कि यादव वोट बैंक के साथ-साथ पूरा मुस्लिम वोट उनके पास आएगा। साथ ही ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, महान दल, जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल और चन्द्रशेखर रावण की दलित सेना साइकिल को धक्का लगाएंगी तो साइकिल सत्ता की  सड़क पर सरपट दौड़ेगी। 

जानकारों का कहना है कि अगर यू.पी. में 4 बड़े दल यानी भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं तो 30-31 फीसदी वोट सत्ता दिलाने के लिए बहुत होंगे। अब आंकड़ों को समझते हैं। भाजपा को 2017 के विधानसभा चुनाव में करीब 40 फीसदी वोट मिले थे। अगर हम इस ट्रैंड को देखें कि भाजपा का  7-8 फीसदी वोट फिर से होने वाले चुनाव में औसत रूप से कम हो जाता  है तो भी उसके पास करीब 32 फीसदी वोट होंगे। यानी जीत 325 की न होकर हो सकता है 225-240 के बीच की हो। लेकिन भाजपा का अगर 7-8 फीसदी वोट कम हुआ तो वो किसी एक दल के पास यानी अखिलेश के पास पूरी तरह से आ जाएगा, यह तय नहीं है, यानी किसी एक विपक्षी दल के काम नहीं आएगा। 

कुल मिला कर निचोड़ यही है कि भाजपा को यू.पी. में हराना है तो कम से कम 2 विपक्षी दलों को एक साथ आना पड़ेगा। चाहे सपा-बसपा हो या सपा-कांग्रेस या फिर बसपा-कांग्रेस। जानकारों का कहना है कि यू.पी. का चुनाव बिहार जैसा होता जा रहा है। देखा गया है जहां 2 दल मिल कर चुनाव लड़ते हैं, वे इसे निकाल ले जाते हैं। लालू-नीतीश एक हुए तो जीते, नीतीश-भाजपा एक हुए तो जीते। आज की तारीख में यू.पी. में ऐसा कुछ होता दिख नहीं रहा। 

अलबत्ता कांग्रेस अभी भी एक पहेली है। अगर उसका वोट प्रतिशत बढ़ कर 15 के करीब पहुंचता है तो वह ठीक-ठाक संख्या में सीटें निकालने की स्थिति में आ जाएगी। ऐसी सूरत में वह ब्राह्मण वोटों के जरिए भाजपा की सीटों में सेंध लगा सकती है और कुछ जगह मुस्लिम वोटें अपनी झोली में डाल अखिलेश की साइकिल भी पंक्चर कर सकती है। इन तमाम किंतु-परंतु के बीच यू.पी. का चुनावी इतिहास बताता है कि जो अपने दम पर बहुमत के साथ सत्ता में आया, वह अगली बार 100 का आंकड़ा भी नहीं पार कर पाया। क्या इतिहास दोहराया जाएगा या योगी लिखेंगे नया इतिहास।-अकु श्रीवास्तव
 


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