क्या संविधान के संघीय ढांचे को नकार दिया जाएगा

punjabkesari.in Friday, Jul 29, 2022 - 07:01 AM (IST)

गत सप्ताह मैंने रमेश इंद्र सिंह की ‘टर्मायल इन पंजाब : बिफोर एंड आफ्टर ब्लू स्टार’ पढऩी समाप्त की। मैंने अरविंद्र सिंह की ‘मोरारजी देसाई: ए प्रोफाइल इन करेज’ भी पढ़ी। चूंकि लेखक तथा मेरे एक सांझे मित्र चमन लाल थे, जो एम.पी. काडर से एक आई.पी.एस. अधिकारी थे (जो काफी पहले सेवानिवृत्त हो चुके हैं), इसलिए मैंने यह पुस्तक पढ़ी। मोरारजी भाई को लेकर अपनी यादें ताजा करने का मेरा एक अन्य निजी कारण भी है जिसके बारे में मैं बाद में बात करूंगा। 

मगर इस सप्ताह मैं 64 पृष्ठों की कन्नड़ (जो भाषा मैं नहीं जानता) पुस्तिका पर अपना ध्यान केंद्रित करूंगा जिसे मेरे एक पुराने सेवानिवृत्त आई.बी. अधिकारी मेरे ध्यान में लाए थे। वह बताते हैं कि इसने कर्नाटक में एक मजबूत प्रभाव बनाया है, जहां भाजपा गहरी पैठ बना रही थी और बदले में साम्प्रदायिक आधार पर जनता को बांट रही थी। ‘आर.एस.एस.-आला मतत्तू अगाला’ (आर.एस.एस.-इसकी गहराई तथा चौड़ाई) को जाने-माने दलित लेखक देवानारू महादेवा ने लिखा है जिनके पहले उपन्यासों ‘कुसुमा बाले’ तथा ‘ओडालाले’ ने राज्य के साथ-साथ केंद्र के साहित्य अकादमी पुरस्कार भी जीते हैं। जिस पुस्तिका की यहां चर्चा हो रही है, यदि वंचित वर्ग के इस लेखक की बजाय किसी और ने लिखा होता तो इसने दक्षिण पंथी ईको सिस्टम को झकझोरा नहीं होता जो इस समय भाजपा शासित राज्य में मौजूद हैं। 

लेखक के मन में वे पाठक हैं जिनकी राजनीति हाल ही में दक्षिण पंथी प्रोपेगंडा के कारण प्रभावित हुई है जिसका खुलकर इस्तेमाल किया जा रहा है। उनके लेख में इस बात पर जोर दिया गया है कि मोदी-शाह सरकार जिसके पीछे संघ का हाथ है, डा. अम्बेडकर के धर्मनिरपेक्ष तथा सहानुभूतिपूर्ण संविधान से छुटकारा पाना चाहती है और इसे ‘मनुस्मृति’ से बदलना चाहती है जो ‘चतुरवर्ण’ वर्णक्रम पर आधारित है। 

महादेवा को डर है कि इस कदम से वर्तमान भारतीय संविधान के संघीय ढांचे को नकार दिया जाएगा और इसे एकल से बदल दिया जाएगा जिसके संकेत केंद्र तथा राज्यों में ‘डबल इंजन’ की सरकारों के लिए आह्वान में पहले ही देखे जा रहे हैं जिसके साथ चुनी हुई सरकारों को ध्वस्त करने के लिए केंद्रीय एजैंसियों का अनैतिक इस्तेमाल किया जा रहा है। वह महसूस करते हैं कि इसके बाद अल्पसंख्यकों के मताधिकार को छीनने, दक्षिणी राज्यों में हिंदी थोपने तथा इसके परिणामस्वरूप एक आर्यन रेस की वरिष्ठता स्थापित करने के लिए कदम उठाए जाएंगे। 

पुस्तक के अंत में दलित लेखक द्वारा एक जोरदार याचिका दायर की गई है कि ‘पहचानें, खड़े हों तथा एकीकरण करने वाली शक्तियों का एक हिस्सा बनें। एक ऐसे समय में जब विभाजनकारी शक्तियां ‘अधर्म’ को ‘धर्म’ के तौर पर पेश कर रही हैं, सामाजिक अन्याय को सामाजिक न्याय बता रही हैं और हमारे समाज को इकट्ठा रखने की बजाय इसे तोड़ रही हैं।’उनके संदेश का कर्नाटक के लोगों तक बहुत प्रभाव पड़ा है। इसका अनुवाद हिंदी तथा अन्य स्थानीय भाषाओं और अंग्रेजी में भी किया जा रहा है। यह देश के बाकी लोगों को भी जगाएगी तथा विशेषकर राजनीतिज्ञों को जो आगामी प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। वे तथा उनकी पार्टियां दोनों एक नैतिक खतरे में हैं। 

मोरारजी देसाई पर पुस्तक ने मुझे इसलिए आकॢषत किया क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री तथा मेरे अपने पिता एक ही समय में विल्सन कालेज, जो मुम्बई का पहला स्थापित कालेज था, के विद्यार्थी थे। वे मित्र थे। मेरे पिता का 42 वर्ष की युवावस्था में निधन हो गया था जब मैं मात्र 8 वर्ष का था। जब मोरारजी देसाई बम्बई के संयुक्त राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर माऊंट आबू स्थित केंद्रीय पुलिस प्रशिक्षण कालेज में 1954 में पधारे तो मैं वहां एक प्रशिक्षु था।

बम्बई को आबंटित किए गए अधिकारियों को मुख्यमंत्री के साथ अलग-अलग मिलवाया गया और इसी मुलाकात से मुझे उनके अपने पिता के साथ संबंधों बारे पता चला, न केवल मुझे बल्कि उपस्थित सभी प्रोबेशनरों को। लेखक ने पूर्व प्रधानमंत्री की नियमों तथा विशेषकर सच को लेकर आसक्ति का जिक्र किया है। यह उन लोगों के विपरीत है जो उनके पहले अथवा बाद में आए, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जो गुजरात से थे। 

जब भी यह महान व्यक्ति ट्रेन से मुम्बई आते थे तो मैं ही उनकी अगवानी तथा उनको विदा करता था क्योंकि वह दादर रेलवे स्टेशन पर उतरते थे जो मेरे अधिकार क्षेत्र में था। जब मेरे पुलिस आयुक्त के तौर पर कार्यकाल के दौरान बम्बई में ब्रिटेन के उप उच्चायुक्त को अज्ञात हमलावरों ने गोली मार कर मार दिया तो मैं दक्षिण बम्बई स्थित उनके घर में मोरारजी देसाई के साथ बैठा था, और चूंकि वह गोलीबारी के स्थान के बिल्कुल पास रहते थे, तो मैं घटनास्थल पर पहुंचने वाला सबसे पहला व्यक्ति था, यहां तक कि पुलिस स्टेशन के अधिकारियों के पहुंचने से भी पहले। 

अरविंद्र सिंह ने मोरारजी भाई के बारे में जो कुछ भी कहा है वह काफी हद तक सही है। इसी तरह से पूर्व मुख्य सचिव रमेश इंद्र सिंह की पुस्तक ‘टर्मायल इन पंजाब...’ काफी हद तक सही है। यह सचमुच एक ‘इनसाइडर्स स्टोरी’ है। पंजाब को आबंटित प्रत्येक अधिकारी को इसे पढऩा चाहिए। रमेश ने के.पी.एस. गिल के साथ मेरा एक ‘वार कॉप’ के तौर पर वर्गीकरण किया है। मैंने कभी अपने को एक योद्धा नहीं केवल एक लीडर समझा। निश्चित तौर पर के.पी.एस. भी खुद को ऐसा कहाना पसंद नहीं करते। वह हमेशा मानते थे कि मैं एक कॉप बनने के लिए नहीं हूं और निश्चित तौर पर पंजाब में तो नहीं। मगर ‘वार कॉप’ एक उपयुक्त  उपमा है। उन दिनों केवल आतंकवादियों तथा पुलिस के पास बंदूकें होती थीं। 

रमेश ने कहा है कि एक बार मैंने तजिन्द्र खन्ना, जो उस समय राज्य के राहत तथा पुनर्वास सचिव थे, की समझदारीपूर्ण सलाह को ठुकरा दिया था। यदि मैंने ऐसा किया होता तो मैंने फाइल पर उसके कारण लिखे होते हैं। तजिन्द्र पंजाब के उत्कृष्ट आई.ए.एस. अधिकारियों में से एक थे। वह और मैं उन सभी वर्षों के बाद आज भी अच्छे मित्र हैं। रमेश कहते हैं कि मेरे एक अन्य आलोचक कृपाल ढिल्लों थे, मेरे आई.पी.एस. बैच मेट तथा एक बहुत करीबी मित्र सच में मैंने कृपाल की पुस्तक में ऐसे विचारों को नहीं पढ़ा जैसा कि रमेश ने उल्लेख किया है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)  
 


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