क्या 2024 तक ममता विपक्ष को इकट्ठा कर पाएंगी

punjabkesari.in Sunday, Aug 01, 2021 - 05:46 AM (IST)


ऐसा लगता भी नहीं, दिखाई भी नहीं देता। विपक्ष में हैं कौन- कांग्रेस और राहुल गांधी? राष्ट्रवादी कांग्रेस और शरद पवार? तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी? शिवसेना और उद्धव ठाकरे? बहुजन समाज पार्टी और मायावती? समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव? ‘आप’ और केजरीवाल? शिरोमणि अकाली दल और सुखबीर सिंह बादल? नैशनल कांफ्रैंस और फारुक अब्दुल्ला? पी.डी.पी. और महबूबा मुफ्ती? या अस्ताचल गामी वामपंथी? सभी मिल कर क्या एक मोदी बन सकेंगे? 

विपक्ष कहने को है पर वास्तव में है नहीं। लोकसभा या राज्यसभा में सभी मिलकर सरकार को सदन में न चलने दें तो क्या सर्वसाधारण विश्वास करेगा कि यह विपक्ष है? यह एक धुंधलका है, विपक्ष नहीं। मजबूत सरकार के सामने एक मजबूत विपक्ष आवश्यक है। विपक्ष की एक राजनीति और योजना होती है। विपक्ष होता है धारदार, असरदार और ईमानदार। विपक्ष को कल सत्ता में आना होता है, जिसकी एक ‘शैडो कैबिनेट’ होती है। विपक्ष रखता है सरकार के अहंकार और निरंकुशता पर नियंत्रण। आज तो विपक्ष पर ही संकट के बादल हैं। बंगाल में ममता बनर्जी की बिजली क्या कौंधी कि विपक्ष को अंधेरे में सब कुछ दिखाई देने लगा। 

नि:संदेह ममता बनर्जी सादगी, ईमानदारी और ‘किलिंग इन्सटिंक्ट’ से लबरेज हैं, परन्तु उनके पास स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जैसा विशाल राजनीतिक धरातल नहीं। 1977 में कांग्रेस पार्टी नई-नई बनी राजनीतिक पार्टी से बुरी तरह पराजित हो गई। तब कांग्रेस की नेता थी ‘आयरन लेडी’ इंदिरा गांधी। 1978 में कर्नाटक की चिकमंगलूर सीट से लोकसभा का उपचुनाव लडऩे का निर्णय कर लिया। जनता पार्टी के बड़े-बड़े नेता, केंद्रीय मंत्री इंदिरा को हराने के लिए बोरिया-बिस्तर लेकर पहुंच गए, पर वह शेरनी की तरह चिकमंगलूर का चुनाव जीतीं। 

श्रीमती इंदिरा गांधी और उसके अनुयायियों ने प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने वाली जनता पार्टी को 1980 में चित्त कर कांग्रेस को पुन: केंद्र में ला खड़ा कर दिया। क्यों? उनमें था मरने-मारने का जज्बा। इंदिरा गांधी का एक ही मकसद था जनता पार्टी सरकार की आपसी खींचतान से राजनीतिक लाभ उठाना और ‘गरीबी हटाओ’ के नारे से दिल्ली की गद्दी पर पुन: कांग्रेस की सरकार बनाना, जिसमें उन्होंने सफल होकर दिखाया। आज समस्त विपक्ष में है कोई श्रीमती इंदिरा गांधी जैसी दृढ़ इच्छा शक्ति वाला व्यक्तित्व? ठीक है, ममता बनर्जी लडऩे और कुछ कर गुजरने वाली महिला नेता हैैं, परन्तु विपक्ष में अपना-अपना स्वार्थ लेकर चलने वाले नेता क्या उन्हें सफल होने देंगे? परिवारवाद और आपसी कलह में उलझा विपक्ष ममता बनर्जी को अपना नेता स्वीकार करेगा? 

विपक्ष का एजैंडा क्या है? सिर्फ मोदी को हराना और उसके बाद फिर वही 2014 के पहले वाले घोटालों वाले देश की ओर लौट जाना? नीति क्या है, योजनाएं क्या हैं? जनता का विश्वास वर्तमान विपक्ष कैसे जीतेगा? महंगाई, वर्तमान अर्थव्यवस्था में सुधार लाने की कोई नीतियां हों तो आगे आएं। देश की सुरक्षा और विकास का एजैंडा देश को विपक्ष बताए। मात्र मोदी के डर से यह कहते रहना कि विपक्ष इक_ा हो, इसे तो जनता स्वीकार नहीं करेगी। देश को आगे ले जाने का आधार क्या है? तीसरा, विपक्ष के पास मोदी के कद का कोई नेता तो दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता। आज जब कोई दूरदर्शी, दिग्गज नेता ही विपक्ष के पास नहीं तो फिर विपक्षी एकता का ङ्क्षढढोरा क्यों? क्या राहुल गांधी को शरद पवार पचा पाएंगे? 

राहुल गांधी की ‘बॉडी लैंग्वेज’ ही राजनेता की नहीं। मायावती को लोगों ने जांच-परख लिया। मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव गए-गुजरे दिनों की बात हो गए। प्रकाश सिंह बादल और फारुक अब्दुल्ला का भी यही हाल है। चंद्र बाबू नायडू को उन्हीं के लोगों ने नकार दिया। बेचारी ममता बनर्जी पर मृतप्राय: विपक्ष का बोझ न डाला जाए। उन्हें बंगाल में शेर की तरह राज करने दें। ऐसा न हो कि एक भद्र महिला चौबे बनते-बनते दूबे भी न रह पाए। ममता ने जनता में अपना अलग स्थान बना रखा है। वह स्थान उनके हाथ से विपक्षी एकता के नाम से छिन न जाए। यदि ममता बनर्जी जी के प्रयास विफल रहे तो विपक्ष पर ‘ब्रह्म हत्या’ का पाप लगेगा।-मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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