‘क्या कांग्रेस मरणासन्न अवस्था से पुनर्जीवित होगी’

punjabkesari.in Wednesday, Dec 23, 2020 - 03:32 AM (IST)

राजनीतिक दिल्ली एक युद्घ का मैदान सा दिख रही है। किसानों के आंदोलन से लेकर राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं और एक दूसरे पर उंगली उठा रहे हैं। सरकार अपने रुख पर कायम है और विपक्ष को चुनौती दे रही है। इस संकट के बीच कांग्रेस की स्थिति बिल्कुल अलग है। पार्टी में चल रही सर्कस पर किस तरह प्रतिक्रिया व्यक्त करें। 

पार्टी के 23 बागी नेताओं ने शनिवार को मां-बेटा सोनिया-राहुल से मुलाकात की। इससे पार्टी में हलचल और बढ़ गई है। इस मुलाकात के बाद यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि इससे पार्टी में व्यापक बदलाव आएंगे और पार्टी मरणासन्न अवस्था से पुनर्जीवित होगी तथा पार्टी में एक प्रभावी और पूर्णकालिक नेतृत्व होगा। पार्टी में सभी स्तरों पर स्वतंत्र, निष्पक्ष और लोकतांत्रिक चुनाव होंगे और एक संस्थागत नेतृत्व की स्थापना होगी जो पार्टी को सामूहिक रूप से मार्ग निर्देश देगा। 

वर्तमान स्थिति को देखकर लगता है पार्टी को अंशकालिक, मध्यकालिक और दीर्घकालिक राहत मिलने की संभावना नहीं है। विशेषकर इसलिए भी कि दो आम चुनावों में पार्टी की भारी हार और उसके बाद हाल ही में बिहार विधान सभा चुनावों में पार्टी की हार से नेताओं ने कोई सबक नहीं लिया है। पार्टी फिलहाल युद्ध बंधकों की पार्टी सी लगती है जो पराजित हैं, जिनका मनोबल टूटा हुआ है और जो एक सुदृढ़ विपक्ष के रूप में सरकार की जवाबदेही निर्धारित करने के बजाय अपने स्वर्णिम दिनों का रोना रो रही है। व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो पार्टी पर गांधी परिवार की पकड़ ढीली हो गई है। 

प्रश्न उठता है कि एक एेसे वातावरण में जहां पर सब कुछ पार्टी के विरुद्ध है, वह कैसे प्रासंगिक बनी रहे। धीरे-धीरे पार्टी अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है और उसके समक्ष अनेक चुनौतियां हैं। पार्टी के नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, पार्टी में अनुशासनहीनता है, पार्टी के वरिष्ठ नेता नाराज हैं जिसके चलते बड़े-छोटे सभी नेताओं के बीच गतिरोध बना हुआ है। पुराने नेता अपना प्रभाव खोना नहीं चाहते हैं और राहुल ब्रिगेड पार्टी पर अपना वर्चस्व बढ़ाना चाहती है। विभिन्न स्तरों पर यह समस्या स्वयं पैदा की गई है और इसके लिए गांधी परिवार जिम्मेदार है। सोनिया पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष हैं। उनकी उम्र बढ़ रही है। राहुल अनिश्चित नेता हैं जिनमें विश्वसनीयता का अभाव है और प्रियंका के साथ वाड्रा उपनाम जुड़ा हुआ है। वस्तुत: कांग्रेसी नेता गुपचुप रूप से सोनिया के इरादों पर हर कीमत पर अपने बेटे को बचाने की नीति पर प्रश्न उठा रहे हैं। पार्टी के प्रवक्ता ने कहा है कि 99.99 नेता राहुल को चाहते हैं फिर 100 प्रतिशत क्यों नहीं। ये 0$1 प्रतिशत नेता कौन हैं? इस पर विचार किया जाना चाहिए। 

दूसरा, इस समस्या के समाधान में कोई भी इस बात को महसूस नहीं कर रहा है कि समस्या का समाधान घर से ही किया जाना चाहिए। वरिष्ठ नेता जैसे चिदंबरम, आजाद, आनंद शर्मा, सिब्बल, मोइली आदि पार्टी में अपना प्रभाव खोना नहीं चाहते हैं और वे युवा नेताओं को आगे आने देना नहीं चाहते हैं। एक युवा नेता के शब्दों में ‘‘ये लोग हमें तब पार्टी का नेतृत्व करने का अवसर नहीं देंगे ताकि पार्टी आगे बढ़ सके। उनमें से अधिकतर आर्म चेयर, बुजुर्ग और थके हुए नेता हैं या कुछ ऐसे नेता हैं जो निष्ठा के कारण पार्टी में बने हुए हैं जिन्होंने कभी भी अपने बलबूते पर चुनाव नहीं लड़ा है। वे पार्टी कार्यकत्र्ताओं या मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर सकते हैं। परिणामस्वरूप वरिष्ठ नेता राहुल की इस चौकड़ी की आलोचना करते हैं और एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं और कहते हैं कि वे नमो के हिंदुत्व और राष्ट्रवादी उत्साह का सामना नहीं कर सकते हैं। 

फलत: ऐसी स्थिति बन गई है कि यह पता लगाना मुश्किल हो गया है कि कौन नायक है और कौन खलनायक। कुछ वरिष्ठ नेताओं को यह चिंता सता रही है कि अगले तीन माह में पार्टी में स्थिति राजनीतिक नियंत्रण से बाहर हो सकती है। उनका मानना है कि पार्टी राजनीतिक और चुनावी संकट का सामना कर रही है और उसके समक्ष एक सुदृढ़ भाजपा एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में खड़ी है। एक निराश नेता के शब्दों में, ‘‘पार्टी में निर्णय लेने की प्रक्रिया बहुत धीमी है। यदि सोनिया जी यथास्थिति की नीति जारी रखती हैं तो पार्टी बिखर जाएगी। दूसरी आेर सोनिया के समर्थकों का कहना है कि एक हाथ से ताली नहीं बजती। जब तक बागी नेताओं के अनुकूल स्थिति थी तब तक वे गांधी परिवार का समर्थन करते रहे और अब वे पार्टी अध्यक्ष को खलनायक के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। 

विडंबना देखिए जहां एक आेर राहुल अपने नाना नेहरू की जयंती पर उनके भाईचारे, सामंतवादी समाज और आधुनिक दृष्टिकोण के मूल्यों का आह्वान करते हैं और सुझाव देते हैं कि पार्टी को इन मूल्यों को अपनाना चाहिए लेकिन उन्हें स्वयं इन नेहरू-गांधी आदर्शों को लागू करना चाहिए तथा पार्टी में विचारों की विविधता, खुली बहस, चर्चा आदि को स्थान देना चाहिए। 23 बागी नेताओं द्वारा सोनिया को लिखा गया पत्र इसका उदाहरण है। इस पत्र में इन नेताओं ने पार्टी के पूर्णकालिक अध्यक्ष, कांग्रेस कार्य समिति के चुनाव और पार्टी की स्थिति में सुधार के लिए व्यापक बदलावों की मांग की है। किंतु इस पत्र को गांधी खानदान के निष्ठावान नेताओं और जी हुजूरों ने धोखा कहा है। किंतु बिहार विधानसभा चुनावों के परिणाम पार्टी की स्थिति को दर्शा देते हैं और इससे पार्टी में मतभेद के स्वर और बढ़े हैं। 

कुल मिलाकर समय आ गया है कि अब कामचलाऊ  कदम उठाने से काम नहीं चलेगा। जब तक मेहनत नहीं करेंगे तब तक सफलता नहीं मिलेगी। पार्टी को आत्मावलोकन करना पड़ेगा और आंतरिक विरोधाभासों को दूर करना होगा तथा पार्टी के नेताओं के बीच सौहार्द बनाने का प्रयास करना होगा। पार्टी को सोनिया-राहुल से परे देखकर इस समस्या का समाधान करना होगा क्योंकि कोई भी नेता चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो अपरिहार्य नहीं होता है।-पूनम आई. कौशिश 
 


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