क्या महाराष्ट्र में बनेगी ‘अनोखी सरकार’

punjabkesari.in Monday, Nov 18, 2019 - 12:35 AM (IST)

महाराष्ट्र में यदि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सरकार बनती है तो यह काफी अनोखी सरकार होगी। इतनी अनोखी कि चुनाव से पहले किसी ने भी इसकी उम्मीद नहीं की थी। ठाकरे परिवार तीन दशक तक भाजपा के साथ रहा। हर बार शिवसेना सीट शेयरिंग के समय भाव खाने लगती है। हर बार शिवसेना अधिक सीटों की डिमांड करती है और हर बार भाजपा यह सोच कर उसकी बात मान लेती है कि वह किसी समय काफी बढ़त हासिल कर लेगी जैसा कि अब  हो चुका है। भाजपा के पास लम्बा खेल खेलने के लिए जरूरी संयम है। 

शिवसेना बढ़-चढ़ कर बातें करती है और उसमें धैर्य की कमी है। यह अपना विचार व्यक्त करती है जिसे  बाद में बदल भी लेती है, इस बात का अनुभव कांग्रेस और राकांपा को आने वाले समय में होगा। पार्टी के मुखपत्र सामना में सेना प्रमुख के इंटरव्यू  फ्रंट पेज पर प्रकाशित किए जाते हैं जिनके माध्यम से पार्टी का कड़ा स्टैंड जाहिर किया जाता है। सामना का यह इंटरव्यू स्थानीय अखबारों और चैनलों के लिए खबर होता है। क्योंकि यह सब मराठी में होता है इसलिए देश के बाकी लोगों को शिवसेना के स्वभाव का पता नहीं चलता लेकिन यह ज्यादा दिन तक छिपा नहीं रहेगा। 

वैचारिक तौर पर शिवसेना और भाजपा साथी माने जाते हैं लेकिन वास्तव में शिवसेना की विचारधारा पूरी तरह से हिन्दुत्ववादी नहीं है। शिवसेना पूरी तरह से अवसरवादी है। इसने उत्तर भारतीयों, दक्षिण भारतीयों तथा मुस्लिमों को ठेस पहुंचाई है ताकि खुद को मजबूत किया जा सके। यह सच्चाई है कि शिवसेना के नेताओं ने बाबरी मस्जिद विध्वंस तथा बाद में मुम्बई में 1992-93 में हुए दंगों में  भाग लिया था। मधुकर सरपोतदार सहित शिवसेना नेताओं को इसके लिए दोषी ठहराया गया था। यह भी सच है कि अब शिवसेना उन्हीं उत्तर भारतीयों को अपमानित करना चाहती है जिनके साथ मिलकर उसने अयोध्या में हुई तोड़-फोड़ में भाग लिया था। शिवसेना जैसी घृणा आमतौर पर मुस्लिमों के लिए दर्शाती है वैसी ही अन्य लोगों के लिए भी आसानी से दर्शा सकती है। 

यह देखना दिलचस्प होगा कि गांधी परिवार ठाकरे परिवार से कैसे सामंजस्य बिठाता है जो उनके प्रति कड़ी भाषा का इस्तेमाल करते रहे हैं। कांग्रेस हमेशा अपने आपको धर्मनिरपेक्षता का प्रतिनिधि बताती रही है। मैं यह सोच रहा हूं कि शिवसेना के साथ गठबंधन होने पर मनमोहन सिंह, शशि थरूर और चिदम्बरम जैसे लोग इस समझौते को किस प्रकार से उचित ठहराएंगे। 

शिवसेना के बारे में दूसरी रोचक बात यह है कि उसकी कोई विशेष विचारधारा नहीं है और न ही उनके पास कोई अर्थपूर्ण चुनाव घोषणापत्र या रणनीतिक दिशा है। अर्थव्यवस्था को चलाने, सार्वजनिक क्षेत्र  तथा मानव विकास सूचकांक को ऊपर उठाने अथवा चीन और पाकिस्तान पर लगाम कसने को लेकर उसके पास कोई रणनीति नहीं है। ये केवल बड़ी-बड़ी बातें करती है। शिवसेना समाधानों को ङ्क्षहसा में बदल सकती है। शिवसेना के सत्ता में आने पर कई मनोरंजक और भयावह दृश्य देखने को मिल सकते हैं। 

कांग्रेस-एन.सी.पी. के लिए अप्रत्याशित नतीजे
ये चुनाव परिणाम कांग्रेस और एन.सी.पी. के लिए काफी अप्रत्याशित रहे हैं। उनको बड़ी हार की उम्मीद थी लेकिन वे सम्मानजनक सीटें प्राप्त करने में सफल रहीं। दोनों दलों को लगभग एक जैसा वोट शेयर प्राप्त हुआ। इन दोनों दलों के लिए अब भी जमीन पर जाकर पुनॢनर्माण का अवसर है। महाराष्ट्र में कांग्रेस के लिए अब भी अवसर है बशर्ते कि उसके प्रतिभाशाली नेता कड़ी मेहनत करें। 

ऐसे में इस बात की संभावना कम है कि कांग्रेस ठाकरे परिवार के साथ सांझेदारी करेगी क्योंकि यह विपरीत दिशा में कदम होगा। यह आक्रामक के बजाय रक्षात्मक राजनीति है। कांग्रेस और एन.सी.पी. के नजरिए से इस गठबंधन को समझने का तरीका यह है कि उनका एक साथ आना स्वाभाविक नहीं है। इसका अर्थ यह है कि उनके बीच कुदरती आकर्षण नहीं है। कार्यकत्र्ता और मतदाता के स्तर पर इसका स्पष्ट विरोध है। उसका उद्देश्य  लगातार मजबूत हो रही भाजपा के युग में खुद को प्रासंगिक बनाए रखना है।  यदि कांग्रेस वास्तव में अपनी स्थिति को लेकर आश्वस्त होती तो वह भाजपा-शिवसेना गठबंधन की असफलता को जिम्मेदार ठहराते हुए दोबारा चुनाव की मांग करती लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस काफी दिशाहीन और टूटी हुई है तथा वह 2020 को नहीं देख पा रही है।

शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा मोदी नीत भाजपा के समय में खुद को हाशिए पर पा रही हैं। उनका यह डर जायज है। भाजपा चुनावों में जिस तरह की चुनौती पेश करती है और जिस तरह से सत्ता पर उसकी पकड़ है, वह डरावना है। और यह अद्भुत ताकत ही विरोधियों को एक साथ आने में मजबूर कर रही है जिसके बारे में मोदी युग से पहले सोचा भी नहीं जा सकता था।-आकार पटेल


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