योगी ही क्यों रहेंगे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री

punjabkesari.in Monday, Jun 14, 2021 - 05:20 AM (IST)

पिछले दिनों भाजपा के अंदर और लखनऊ में जो ड्रामा चला उससे लगा कि मोदी और योगी में तलवारें खिंच गई हैं। मीडिया में अटकलों का बाजार गर्म था। पर जो अपेक्षित था वही हुआ। यह सारी नूरा कुश्ती थी, जिसमें न तो कोई जीता, न ही कोई हारा। योगी और मोदी एक थे और एक ही रहेंगे। इस बात का मुझे पहले से ही आभास था।

इस आभास की ऐतिहासिक वजह है। 1990 के दशक में जब अडवानी जी की राम रथ यात्रा के बाद भाजपा ऊपर उठना शुरू हुई तो भी ऐसी रणनीति बनाई गई थी। जनता की निगाह में अडवानी जी और वाजपेयी जी के बीच टकराहट के खूब समाचार प्रकाशित हुए। हद तो तब हो गई जब भाजपा के महासचिव रहे गोविंदाचार्य ने सार्वजनिक बयान में अटल बिहारी वाजपेयी को भाजपा का ‘मुखौटा’ कह डाला। 

चूंकि गोविंदाचार्य को अडवानी जी का खास आदमी माना जाता था इसलिए यह मान लिया गया कि यह सब अडवानी की शह पर हो रहा है। इस विवाद ने काफी तूल पकड़ा। लेकिन योगी-मोदी विवाद की तरह यह विवाद भी तब ठंडा पड़ गया और रहे वही ढाक के तीन पात। 

दरअसल उस माहौल में भाजपा का अपने बूते पर केंद्र में सरकार बनाना स भव न था क्योंकि उसके सांसदों की सं या 115 के नीचे थी। इसलिए इस लड़ाई का नाटक किया गया। जिससे अडवानी जी तो हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करें और अटल जी धर्मनिरपेक्ष वोटरों और राजनीतिक दलों को साधे रखें। जिससे मौके पर सरकार बनाने में कोई रुकावट न आए। यही हुआ भी। जैन हवाला कांड के विस्फोट के कारण राजनीति में आए तूफान के बाद जब 1996 में केंद्र में भाजपा की पहली सरकार बनी तो उसे दो दर्जन दूसरे दलों का समर्थन हासिल था। यह तभी संभव हो सका जब संघ ने वाजपेयी की छवि धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में प्रस्तुत की। 

अब उत्तर प्रदेश पर आ जाइए। पिछले 4 साल में संघ और भाजपा ने लगातार योगी को देश का सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंंत्री और प्रशासक बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जबकि हकीकत यह है कि देश के कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों का शासन उत्तर प्रदेश से कहीं बेहतर रहा है। यह सही है कि योगी महाराज पर व्यक्तिगत भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे किंतु उनके राज में पिछली सरकारों से ज्यादा भ्रष्टाचार हुआ है। पर उन पर आज तक कोई जांच या कार्रवाई नहीं हुई। 

गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमीं से सैंकड़ों बच्चों की मौत योगी शासन के प्रथम वर्ष में ही हो गई थी। कोविड काल में उत्तर प्रदेश शासन की नाकामी को हर जिले, हर गांव और लगभग हर परिवार ने झेला और सरकार की उदासीनता और लापरवाही को जम कर कोसा। अपनी पीड़ा प्रकट करने वालों में आम आदमी से लेकर भाजपा के विधायक, सांसद, मंत्री और राज्य के वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी व न्यायाधीश भी शामिल हैं। जिन्होंने कोविड की दूसरी लहर में आक्सीजन, इंजैक्शन और अस्पताल के अभाव में बड़ी सं या में अपने परिजनों को खोया है। 

उत्तर प्रदेश में विकास के नाम पर जो लूट और पैसे की बर्बादी हो रही है, उसकी ओर तो कोई देखने वाला ही नहीं है। हम तो लिख-लिख कर थक गए। मथुरा, काशी, अयोध्या जैसी धर्म नगरियों तक को भी ब शा नहीं गया है। यहां भी धाम सेवा के नाम पर निरर्थक परियोजनाआें पर पैसा पानी की तरह बहाया गया। प्रदेश में  तो नए उद्योग लगे और न ही युवाओं को रोजगार मिला। जिनके रोजगार 2014 से पहले सलामत थे वे नोटबंदी और कोविड के चलते रातों-रात बर्बाद हो गए। 

बावजूद इस सबके, उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार ने अपनी छवि सुधारने के लिए अरविंद केजरीवाल की तरह ही, आम जनता से वसूला कर का पैसा, सैंकड़ों करोड़ के विज्ञापनों पर खर्च कर दिया। इतना ही नहीं सरकार की कमियां उजागर करने वाले उच्च अधिकारियों और पत्रकारों तक को नहीं ब शा गया। उन्हें बात बात पर शासन की आेर से धमकी दी गई या मुकद्दमे दायर किए गए। 

भला हो सर्वोच्च न्यायालय का जिसने हाल ही में यह आदेश दिया कि सरकार की कमियां उजागर करना कोई अपराध नहीं है। हमारे संविधान और लोकतंत्र में पत्रकारों और सामाजिक कार्यकत्र्ताओं को इसका अधिकार मिला हुआ है और यह लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक भी है। बावजूद इसके जिस तरह मोदी जी का एक समर्पित भक्त समुदाय है, वैसे ही योगी जी का भी एक छोटा वर्ग समर्थक है। यह वो वर्ग है जो योगी जी की मुसलमान विरोधी नीतियों और कुछ कड़े कदमों का मुरीद है। इस वर्ग को विकास, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दे उतने महत्वपूर्ण नहीं लगते जितना कि मुसलमानों को सबक सिखाना। 

मुख्यमंत्री योगी जी इस वर्ग के लोगों के हीरो हैं। संघ को उनकी यह छवि बहुत भाती है क्योंकि इसमें चुनाव जीतने के बाद भी जनता को कुछ भी देने की जि मेदारी नहीं है। केवल एक माहौल बना कर रखने का काम है जिसे चुनाव के समय वोटों के रूप में भुनाया जा सके। यह सही है कि पूर्ववर्ती सरकारों के दौर में मुसलमानों ने अपने व्यवहार से गैर मुसलमानों को आशंकित और उद्वेलित किया। चाहे एेसा करके उन्हें कुछ ठोस न मिला हो, पर भाजपा को अपनी ताकत बढ़ाने के लिए एक मुद्दा जरूर एेसा मिल गया जिसमें ‘हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखे का चोखा’। इसलिए उत्तर प्रदेश में 2022 का चुनाव योगी जी के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा।-विनीत नारायण 


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