क्यों प्रताड़ित आत्माएं भूमिगत हो जाती हैं

punjabkesari.in Friday, Dec 09, 2022 - 04:37 AM (IST)

सिंगापुर में मेरी पोती ने मेरे पढऩे के लिए दो किताबें भेजीं। पहली अंग्रेजी में एक युवा भारतीय द्वारा लिखी गई है। वह मसूरी के वुडस्टॉक स्कूल में शेफाली के सहपाठी रह चुके थे। शेफाली को उनकी क्षमताओं पर बहुत गर्व था। करण मधोक की ‘ए ब्यूटीफुल डीके’ पढऩे के बाद मैं प्रिय लड़की से अधिक सहमत न हो सका। करण मधोक का पहला उपन्यास आने वाले कई और उपन्यासों का अग्रदूत है। एक बहुत ही प्रतिभाशाली युवक द्वारा लिखे और उपन्यासों की मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं। करण वाराणसी के एक स्थापित परिवारों से संबंधित हैं। उनकी पुस्तक आंशिक रूप से भारत में विशेषाधिकार की घटना पर एक टिप्पणी है।  

कोई 3 या 4 दशक पहले लेखक विक्रम सेठ ने पूरे चीन की यात्रा करने के बाद तिब्बत के रास्ते भारत वापसी की। उनसे पूछा गया कि अगर उनके पास विकल्प और अवसर होंगे तो  वह भारत या चीन में कहां जन्म लेना पसंद करेंगे? उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर भारत, अगर वह अमीरों के परिवार में पैदा होते तो। लेकिन यदि वह गरीब माता-पिता के घर पैदा होते तो वह चीन का चुनाव करते। 

खुशकिस्मती से करण ने देश के बेहतरीन स्कूलों में पढ़ाई की। उन्होंने अमरीका में स्नातक की पढ़ाई की और रचनात्मक लेखन में एक कोर्स भी किया। दिल्ली में काम करने वाली एक अमरीकी लड़की से उन्होंने शादी की। अमरीका लौटने के बाद वह वाशिंगटन डी.सी. में स्थापित हो गई। करण ने लिखने के लिए मसूरी को चुना और रहने के लिए वाशिंगटन जहां उसकी बीवी रहती है। ‘ए ब्यूटीफुल डीके’ में नायक विष्णु अग्रवाल का बचपन आसान रहा। उनके पिता वाराणसी में सजावटी मोती बनाने का एक सफल व्यवसाय चलाते थे। अमरीका के वाशिंगटन में करण ने पढ़ाई की। वाराणसी और वाशिंगटन दोनों ही ऐसे स्थान हैं जिनसे लेखक परिचित है। अपनी कहानी सुनाने के लिए इन दोनों शहरों का चुनाव व्यवहार और रीति-रिवाजों के साथ उनकी व्यक्तिगत जानकारी पर आधारित है। 

करण विशेषाधिकार और पात्रता के बारे में लिखते हैं क्योंकि यह भारत में अमीरों के बीच फैला हुआ है। एक अमीर आदमी सचमुच ही हत्या कर सकता है। उपन्यास में एक स्थानीय नेता हड़ताली श्रमिकों को तितर-बितर करने और उन्हें भगाने के लिए कुछ गुंडों को नियुक्त करके अपने मोतियों के कारखाने में श्रमिक संघ की समस्या को हल करने में विष्णु अग्रवाल की मदद करता है। तनावपूर्ण स्थितियों में भारत में विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की निरपवाद रूप से मदद की जाती है। इस तरह की मदद आबादी के बड़े हिस्से के लिए उपलब्ध नहीं है जिनके पास कोई वित्तीय या सामाजिक बोझ नहीं है।

उपन्यास का नायक अमरीका में पहुंचता है जहां धर्म भारत की तरह विभाजन उत्पन्न नहीं करता है लेकिन जाति जरूर करती है। सांस्कृतिक मतभेद उत्पन्न होते हैं क्योंकि वे बंधे होते हैं लेकिन विशेषाधिकार वैसी भूमिका नहीं निभाते हैं जैसा कि भारत में निभाते हैं। अमरीका में पढऩे वाले किसी भी भारतीय की तरह विष्णु जल्द ही स्थानीय संस्कृति के साथ तालमेल बिठा लेते हैं और बार-बार जाते हैं। अगर उन्होंने यू.के. को पढऩे के लिए चुना होता तो वह बार-बार वहां पब में जाते। 

विष्णु को एक स्थानीय अमरीकी लड़के ने गोली मार दी। विष्णु का शरीर भारत में वाराणसी में उनके परिवार को लौटा दिया गया। पहली बार उपन्यासकार मृत व्यक्ति को अपने मन और अपने विचारों के बारे में बताता है। मृत व्यक्ति जब वह जीवित था तो उसने अपने माता-पिता द्वारा उसमें डाले गए कई सांस्कृतिक गुणों को त्याग दिया था जिसके तहत वह क्या खा सकता था और क्या नहीं खा सकता था। 

उपन्यास अच्छी तरह से व्यक्त किया गया है। यह निश्चित रूप से पढऩे लायक है। करण मधोक पर यदि नजर रखें तो वह अंग्रेजी में एक भारतीय लेखन के रूप में और खिलेंगे। उनके जैसे कई नवोदित लेखक हैं। बेंगलुरू की एक लड़की माधुरी विजय ने ‘द फॉर फील्ड’ नामक एक उपन्यास लिखा था जिसने मुझे काफी प्रभावित किया। यह कश्मीर के एक कालीन विक्रेता से जुड़ा हुआ था जिससे उसकी मां ने दोस्ती की थी और जिसकी तलाश में वह घाटी तक गई थी। 

शेफाली द्वारा भेजी गई दूसरी किताब  ‘आंट्स अमंग एलीफैंट्स’ है जोकि सुजाता गिडला द्वारा लिखी गई है। सुजाता आंध्र प्रदेश से संबंध रखने वाली एक दलित ईसाई लड़की है। उसकी पढ़ाई वारंगल तथा चेन्नई में मिशनरियों द्वारा पूरी की गई और उसके बाद वह अमरीका चली गई। यह एक दयनीय, दमनकारी गरीबी का जीवन था जो अन्याय के साथ-साथ जातिग्रस्त और पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को भुगतना पड़ा। कहानी की भाषा और बनावट ‘ए ब्यूटीफुल डीके’ या ‘द फॉर फील्ड’ से मेल नहीं खाती। मगर लेखक की मां मंजुला द्वारा किए गए संघर्षों के दर्द को कोई महसूस नहीं कर सकता। 

आंध्र के दलित ईसाइयों के अपने परिवार की पीड़ाओं के बारे में सुजाता गिडला के वृत्तांत को पढऩे के बाद कोई भी समझ सकता है कि क्यों प्रताडि़त आत्माएं भूमिगत हो जाती हैं लेकिन अगर वही तड़पती हुई आत्मा इस बात पर विचार करे कि उसने क्या हासिल किया है तो वह इस निष्कर्ष पर पहुंचेगी कि वह एक नायाब खोज में बर्बाद किए गए जीवन की तरह है।-जूलियो रिबैरो
(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)     


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