नागर विमानन महानिदेशालय में इतने ‘घोटाले’ क्यों

punjabkesari.in Tuesday, Jun 30, 2020 - 04:59 AM (IST)

नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन ‘नागर विमानन महानिदेशालय’ (डी.जी.सी.ए.) की जिम्मेदारी है निजी या सरकारी क्षेत्र की जो भी हवाई सेवाएं देश में चल रही हैं उन पर नियंत्रण रखना। हवाई जहाज उड़ाने वाले पायलटों की परीक्षा करना। गलती करने पर उन्हें सजा देना और हवाई जहाज उड़ाने का लाइसैंस प्रदान करना। बिना इस लाइसैंस के कोई भी पायलट हवाई जहाज या हैलीकॉप्टर नहीं उड़ा सकता। इसके साथ ही हर एयरलाइन की गतिविधियों पर निगरानी रखना, नियंत्रण करना, उन्हें हवाई सेवाओं के रूट आबंटित करना और किसी भी हादसे की जांच करना भी इसी निदेशालय के अधीन आता है।

जाहिर है कि अवैध रूप से मोटा लाभ कमाने के लिए एयरलाइन्स प्राय: नियमों के विरुद्ध सेवाओं का संचालन भी करती हैं। जिनके पकड़े जाने पर उन्हें दंडित किया जाना चाहिए और अगर अपराध संगीन हो तो उनका लाइसैंस भी रद्द किया जा सकता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि इन सब अधिकारों के चलते निदेशालय के अधिकारियों की शक्ति असीमित है जिसका दुरुपयोग करके वे अवैध रूप से मोटी कमाई भी कर सकते हैं। 

हर मीडिया हाऊस में नागरिक उड्डयन मंत्रालय और नागर विमानन महानिदेशालय को कवर करने के लिए विशेष रिपोर्टर होते हैं। जिनका काम ऐसी अनियमितताओं को उजागर कर जनता के सामने लाना होता है क्योंकि उड़ान के दौरान की गई कोई भी लापरवाही आम जनता की ही नहीं अति विशिष्ट यात्रियों की भी जान ले सकती है। इसलिए इन संवाददाताओं को मुस्तैदी से अपना काम करना चाहिए। पर अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि ये लोग अपना काम मुस्तैदी से करने में कुछ अपवादों को छोड़ कर, नाकाम रहे हैं। 

इसका कारण भी स्पष्ट है कि ये एयरलाइन्स ऐसे रिपोर्टर्ज या उनके सम्पादकों को ‘प्रोटोकॉल’ के नाम पर तमाम सुविधाएं प्रदान करती हैं। जैसे कि मुफ्त टिकट देना, टिकट ‘अपग्रेड’ कर देना या गंतव्य पर पांच सितारा आतिथ्य और वाहन आदि की सुविधाएं प्रदान करना। इसका स्पष्ट उदाहरण जैट एयरवेज के अनेक घोटाले हैं। नरेश गोयल की इस एयरलाइन ने अपने जन्म से ही इतने घोटाले किए हैं कि इसे कब का बंद हो जाना चाहिए था। किंतु नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अफसरों, राजनेताओं और मीडिया में अपने ऐसे ही सम्बन्धों के कारण ये एयरलाइंस दो दशक से भी ज्यादा तक निडर होकर घोटाले करती रही। 

इन हालातों में, देश के हित में जैट एयरवेज के घोटालों को उजागर करने का काम दिल्ली के कालचक्र समाचार के प्रबंधकीय संपादक रजनीश कपूर ने किया। इसी आधार पर सी.बी.आई. और सी.वी.सी. में जैट के विरुद्ध दर्जनों शिकायतें दर्ज की गईं और दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका भी दायर की। इस तरह चार वर्षों तक लगातार सरकार पर दबाव बनाने के बाद ही जैट एयरवेज पर कार्रवाई शुरू हुई। जिसका परिणाम आपके सामने है। 

अगर केवल जैट एयरवेज के अपराधों को ही छुपाने की बात होती तो माना जा सकता था कि राजनीतिक दबाव में नागर विमानन महानिदेशालय आंखें बंद कर बैठा है। पर यहां तो ऐसे घोटालों का अंबार लगा पड़ा है। ताजा उदाहरण देश की एक राज्य सरकार के पायलट का है, जिसके पिता उसी राज्य के एक बड़े अधिकारी थे, वे तत्कालीन मुख्यमंत्री के कैबिनेट सचिव, जो कि स्वयं एक पायलट थे, के काफी करीबी थे। इसलिए इन महाशय की नियुक्ति ही नियमों की धज्जियां उड़ा कर हुई थी।

नियमों के अनुसार अगर अति विशिष्ट लोगों को उड़ाने के लिए किसी पायलट की नियुक्ति होती है तो उसका मूल आधार है कि उस पायलट के पास न्यूनतम 1000 घंटों की उड़ान का अनुभव हो लेकिन इनके पास केवल अपने पिता के सम्पर्कों के सिवाय कुछ नहीं था। गौरतलब है कि प्रदेश सरकार के नागरिक उड्डयन विभाग बिना वरिष्ठतम पायलट हुए ही इसने स्वयं को इस विभाग का न सिर्फ आप्रेशन मैनेजर बनाए रखा बल्कि सभी नियमों को दर-किनार कर दो तरह के विमानों को उड़ाने का काम कई वर्षों तक किया। हैलीकाप्टर व वायुयान जबकि नागर विमानन महानिदेशालय के नियमानुसार एक व्यक्ति द्वारा ऐसे दो तरह के विमान उड़ाना वॢजत है। इससे एयरोडायनैमिक्स की गफलत में बड़ा हादसा हो सकता है। 

इस पायलट पर यह भी आरोप था कि इसने अपने आपराधिक इतिहास की सही जानकारी छुपा कर अपने लिए ‘एयरपोर्ट एंट्री पास’ भी हासिल किया था। इसकी शिकायत भी ‘कालचक्र’ ने नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो (बी.सी.ए.एस.) के महानिदेशक से की और जांच के बाद सभी आरोपों को सही पाए जाने पर इसका ‘एयरपोर्ट एंट्री पास’ भी हाल ही में रद्द किया गया। 

गनीमत है कि डी.जी.सी.ए. ने इसी पायलट की एक और गम्भीर गलती पर जांच करके इसे व इसके लाइसैंस को 10 जून 2020 को 6 महीनों के लिए निलम्बित भी कर दिया है। इस पर आरोप था कि एक हवाई यात्रा के दौरान इसने बीच आसमान में को-पायलट के साथ सीट बदल कर विमान के कंट्रोल को अपने हाथ में ले लिया, जोकि न सिर्फ गैर-कानूनी है, खतरनाक है, बल्कि एक आपराधिक कदम है। जबकि विमान 10,000 फुट के नीचे उड़ रहा था एवं ‘ऑटो पायलट’ मोड में नहीं था।

गौरतलब है कि यह प्रकरण 2018 की जैट एयरवेज की लंदन फ्लाइट, जिसमें दोनों पायलट बीच यात्रा के कॉकपिट से बाहर निकल आए थे, से अधिक गम्भीर है। उस फ्लाइट की जांच के पश्चात पायलट व को-पायलट को 5 वर्ष के लिए निलम्बित किया गया था। लेकिन सूत्रों की मानें तो इस रसूखदार पायलट ने इस बात को सुनिश्चित कर लिया है कि इस निलम्बन को भी वो रद्द करवालेगा। इस पायलट पर वित्तीय अनियमितताओं के भी आरोप हैं और हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय ने प्रदेश के मुख्य सचिव को इनके विषय में लिखित सूचना भी प्रदान की है। इस पायलट के परिवार के तार 200 से भी अधिक कम्पनियों से जुड़े हैं जिनमें अवैध रूप से सैंकड़ों करोड़ रुपयों का हेर-फेर होने का आरोप है, जिसकी जांच चल रही है।

यह तो केवल एक ऐसा मामला था जिसकी जांच डी.जी.सी.ए के अधिकारियों को करनी थी। लेकिन डी.जी.सी.ए. में तैनात अधिकारी अगर स्वयं ही भ्रष्टाचार और घोटालों में लिप्त हों तो न्याय कैसे मिले। डी.जी.सी.ए. में ही तैनात कैप्टन अतुल चंद्रा भी ऐसी ही संदिग्ध छवि वाले अधिकारी हैं। ये 2017 में एयर इंडिया से प्रतिनियुक्ति पर डी.जी.सी.ए. में आए और आज चीफ फ्लाइट आप्रेशंस इंस्पैक्टर (सी.एफ.ओ.आई.) के रूप में कार्यरत हैं। सी.एफ.ओ.आई. का पद बेहद संवेदनशील होता है क्योंकि यह विमान सेवाओं और पायलट के उल्लंघनों पर नजर रखता है और इस मामले में सतर्कता बरतना उसका काम है। गौरतलब है कि चंद्रा अपने पद से मुक्त कर दिए गए हैं। 

गौरतलब है कि 2017 से आश्चर्यजनक रूप से चंद्रा 19 महीनों तक एयर इंडिया और डी.जी.सी.ए. दोनों से वेतन प्राप्त करते रहे जोकि एक आपराधिक कृत्य है। जब 2019 में मामला उजागर हुआ तो 2.80 करोड़ रुपयों में से इन्होंने 80 लाख वापस किए। इतना ही नहीं फेमा और पी.एम.एल.ए. के भिन्न उल्लंघनों के लिए प्रवर्तन निदेशालय भी उनकी जांच कर रहा है।-विनीत नारायण         
 


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