क्यों जरुरी है सोशल मीडिया का विनियमन

punjabkesari.in Friday, Jun 04, 2021 - 05:25 AM (IST)

देश में सोशल मीडिया के विनियमन (रैगुलेशन) से जुड़ा सवाल वाद-विवाद में है। ताजा जानकारी के अनुसार भारत के नए डिजिटल नियमों को लगभग सभी सोशल मीडिया कंपनियों ने मान लिया है। इस संबंध में सभी प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मर्स ने केंद्रीय आई.टी. मंत्रालय को जवाब भी दे दिया है। हालांकि एक बहुचॢचत माइक्रो-ब्लॉगिंग वैबसाइट ने अब तक सरकार के डिजिटल नियमों को मानने की दिशा में कोई प्रतिक्रिया या जवाब नहीं दिया है। 

इन नए डिजिटल नियमों के विरोध को वाजिब साबित करने के लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी का खतरा दलील के रूप में सामने लाया जा रहा है। इन नियमों को लाने से ठीक कुछ दिन पहले एक माइक्रो ब्लॉगिंग साइट के साथ भारत सरकार का विवाद करीब हजार अकाऊंट्स को सस्पैंड करने को लेकर सामने आया था। तब इस साइट ने ब्लॉग पोस्ट कर जवाब देते हुए कहा था कि कंपनी अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में है और यह कहा कि शासन ने जिस आधार पर इस साईट के अकाऊंट्स बंद करने को कहा है वह भारतीय कानून के अनुरूप नहीं है। 

सोशल मीडिया की रैगुलेशन से जुड़े इन नए नियमों से असहमति जताने वाले बताते हैं कि नए आई.टी. नियमों में कोई नियंत्रण और संतुलन समझ में नहीं आता। उन्हें ऐसा लगता है मानो सॢवस प्रोवाइडर के हाथ में अब कुछ रह ही नहीं जाएगा। उनसे जो जानकारी मांगी जाएगी उसे देनी होगी और अगर ऐसा नहीं होता तो उन पर और उनके शीर्ष प्रबंधन पर आपराधिक मुकद्दमा हो सकता है। 

नियमों के आलोचकों का मत है कि ये नियमों की कसावट सरकार और कंपनियों में तालमेल को कम करते हुए कंट्रोल बढ़ाने वाला कदम है। इन नियमों से असहमति रखने वालों में ये इस सोशल मीडिया सैक्टर को डराने और मारने की कोशिश लगती है। नए नियमों के मुताबिक इन कंपनियों को ड्यू डिलिजैंस यानी उचित सावधानी का पालन करना होगा, जिसके अंतर्गत शिकायत निवारण तंत्र, उपयोगकत्र्ताओं की ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करना, गैर-कानूनी जानकारी को हटाना, उपयोगकत्र्ताओं को सुनने का अवसर देना, स्वैच्छिक उपयोगकत्र्ता सत्यापन तंत्र की स्थापना आदि शामिल हैं। 

इसके अलावा क़ानून प्रवर्तन एजैंसियों के साथ चौबीसों घंटे समन्वय के लिए एक नोडल संपर्क अधिकारी और एक शिकायत अधिकारी की नियुक्ति और प्राप्त शिकायतों की जानकारी और उन पर की गई कार्रवाई के साथ-साथ इन सोशल मीडिया मध्यस्थों द्वारा सक्रिय रूप से हटाई गई सामग्री के विवरण का उल्लेख करते हुए एक मासिक अनुपालन रिपोर्ट भी प्रकाशित करनी होगी जो पूरी जिम्मेदारी एक तरीके से सर्विस प्रोवाइडर पर डालने वाली बात लगती है। 

इन नियमों के आलोचक कहते हैं कि इन नियमों के जरिए शासन इन कंपनियों पर अपना आधिपत्य रखना चाहता है। उनका कहना है कि ये नियम-कानून बताए तो नागरिकों के हित में जा रहे हैं लेकिन ये कब सरकार हित में काम करने लग जाएं, यह कहना मुश्किल है। 

इन कानूनों के पक्ष में कहा जा रहा है कि इन्हें जनता और हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श के बाद लाया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि नए कानून इंटरनैट स्पेस को सुरक्षित और विकसित करने के लिए जरूरी हैं लेकिन इन पर चैक्स और बैलेंसिस भी लगाना जरूरी है जिससे इनकी दुरुपयोग की स भावना कम हो सके और लोग खुले माहौल में संवाद कर सकें। 

शासन का सोशल मीडिया की रैगुलेशन के पक्ष में अनेक प्रबल मत हैं। जैसे कि इन सभी सोशल मीडिया कंपनियों को भारत में तगड़ा मुनाफा हो रहा है। सोशल मीडिया का दायरा काफी बड़ा है। भारत अपनी डिजिटल संप्रभुता से समझौता नहीं कर सकता है। सोशल मीडिया कंपनियों को आपत्तिजनक मैसेज मिलने के 36 घंटों के भीतर यह पता लगाना होगा कि वह कहां से आ रहा है। इसके साथ ही उन्हें ड्यू डिलिजैंस (मैसेज की जांच) करना होगा। चीफ कंप्लाएंस ऑफिसर की नियुक्ति करनी होगी। यह वो पद है जिससे किसी समस्या के समाधान के लिए संपर्क किया जा सकेगा। 

सोशल मीडिया से जुड़े ऐसे कई तमाशबीन और अत्यंत नाजुक मामले सामने आए हैं जहां आपत्तिजनक संदेशों को बार बार सोशल मीडिया पर सर्कुलेट किया गया। इससे देश में अराजकता फैलती है ऐसे में क्या जरूरी नहीं कि यह पता किया जाए कि किसने इन संदेशों को पोस्ट किया है। क्या ऐसे लोगों को ढूंढना और सजा दिलाना जरूरी नहीं है। 

जरूरी यह भी है कि नए नियमों का इस्तेमाल सिर्फ ऐसे मामलों की रोकथाम, जांच और दंड दिलाने के लिए हो। और तो और कुछ ऐसी स्थिति में कंटैंट के सोर्स की जानकारी मांगी जानी ठीक होगी, जिसमें ‘बेहद गंभीर अपराध’ वाले संदेश जो देश की अखंडता, संप्रभुता से जुड़े हों ‘फ्री स्पीच’ का हवाला देते हुए कई ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म भी ऐसे कई कंटैंट प्रसारित करते हैं, जिससे समस्याएं पैदा हो जाती हैं। इन पर कंटैंट को लेकर कोई सैंसर बोर्ड नहीं है, जिसकी वजह से हिंसा से भरा या अश्लील कंटैंट भी सबके लिए आसानी से उपलब्ध हो जाता है। यह कंटैंट सामाजिक जहर ही है। 

अभी तक इनफॉर्मेशन टैक्नोलॉजी एक्ट की धारा 79 के तहत इन सोशल मीडिया कंपनियों को इंटरमीडियरी के नाते किसी भी तरह की जवाबदेही से छूट मिली हुई थी। जिसका मतलब यह था कि इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अगर कोई आपत्तिजनक जानकारी भी आती थी, तब भी यह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उसकी जि मेदारी लेने से बच सकते थे और इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकती थी। लेकिन अब जारी किए गए आधिकारिक दिशा-निर्देशों से साफ है कि अगर ये कंपनियां इन नियमों का पालन नहीं करती हैं तो उनका इंटरमीडियरी स्टेटस छिन सकता है और वे भारत के मौजूदा कानूनों के तहत आपराधिक कार्रवाई के दायरे में आ सकती हैं। 

सरकार इसको रैगुलेट करना चाहती है तो यह बिल्कुल गलत नहीं लग रहा बशर्ते रैगुलेटरी सिस्टम पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो कर काम न करे। सोशल मीडिया की संतुलित रैगुलेशन की देश में जरूरत है जिससे देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को सुरक्षित रखा जा सके।-डॉ.विरिन्द्र भाटिया


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