अभी तक कोई महिला मुख्य न्यायाधीश के रूप में क्यों नहीं

punjabkesari.in Tuesday, Apr 20, 2021 - 03:21 AM (IST)

क्या यह अजीब नहीं है कि आमतौर पर न्याय को एक महिला के रूप में चित्रित किया जाता है लेकिन महिलाओं की इसमें कोई भूमिका नहीं है? महिलाएं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यपाल बनी हैं और इसके अलावा कई अन्य उच्च पदों पर काबिज हैं लेकिन अभी तक किसी भी महिला को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नहीं देखा गया है। महिलाओं के बेहतर प्रतिनिधित्व के लिए आवाज उठाई गई है। 

पिछले सप्ताह अपनी सेवानिवृत्ति से ठीक पहले सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे ने इस बारे बात की। सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास में उस स्थिति तक पहुंचने से पहले महिला न्यायाधीशों ने सेवानिवृत्ति आयु को पार कर लिया था। यद्यपि वे सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश बन गईं। अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने भी यह देखा कि यौन हिंसा से जुड़े मामले में न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में सुधार एक संतुलित और सशक्त दृष्टिकोण की ओर एक लम्बा रास्ता तय कर सकता है। 

अमरीका, ब्रिटेन सहित अन्य देशों के साथ-साथ भारत में भी न्यायपालिका में महिला न्यायाधीशों की संख्या निराशाजनक है। 1981 में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने अपने चुनावी वायदे को पूरा करने के लिए बतौर सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज सांड्रा डे. ओ’ कोनर को नियुक्त किया। ऐसा पहली बार हुआ था। 100 देशों में करीब 4000 सदस्यों के साथ एक गैर लाभकारी संगठन इंटरनैशनल एसोसिएशन आफ वूमैन जज’ (आई.ए.डब्लूय. जे.) का मानना है कि महिला न्यायाधीश पूरे विश्व भर में महिलाओं के अधिकारों को आगे बढ़ाने के लिए अद्वितीय हैं। 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की महिला वकील एसोसिएशन ने अदालत को दी गई अपनी दलील में कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है। यह नोट किया गया कि शीर्ष अदालत ने अब तक केवल 8 महिला न्यायाधीशों को देखा है और देश के 25 उच्च न्यायालयों में से केवल एक में महिला मुख्य न्यायाधीश (तेलंगाना उच्च न्यायालय में सी.जे. हिमा कोहली) है। 

उच्च न्यायालयों के 661 न्यायाधीशों में से मात्र 73 महिला न्यायाधीश हैं। मणिपुर, मेघालय, पटना, त्रिपुरा और उत्तराखंड जैसे 5 उच्च न्यायालयों में एक भी महिला न्यायाधीश नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अब तक केवल 12 महिलाओं को वरिष्ठ काऊंसिल नामित किया गया है। क्या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के चयन में लैंगिक पक्षपात है? समस्या की जड़ कुछ और है। न्यायपालिका पुरुष प्रधान क्षेत्र है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मुख्य न्यायाधीश को चुनने में वरिष्ठता परम्परा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान केवल दो बार जूनियर्स ने अपने सीनियर्स का स्थान लिया है। 

स्वाभाविक है कि जब नामित वरिष्ठ महिला वकीलों की संख्या काफी कम है तो अधिक महिलाओं के न्यायाधीश बनने की सम्भावना भी कम से कम रहती है। कई महिला कार्यकत्र्ता और उनके संघों का तर्क है कि न्यायपालिका में महिलाओं की उपस्थिति स्वतंत्र और लिंग संवेदनशील न्यायिक निर्णयों के विकास को उत्प्रेरित करती है। महिलाओं को शीर्ष पद न मिलने के कई कारण हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे ने पिछले सप्ताह देखा कि कई महिला वकीलों ने घरेलू जिम्मेदारियों का हवाला देते हुए न्यायपालिका को अस्वीकार कर दिया। मगर महिला वकीलों का कहना है कि कई सफल पुरुष वकील भी जज बनने से इंकार कर देते हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय के महिला वकीलों के फोरम ने भी ट्वीट किया ‘हम इस जिम्मेदारी को लेने और संस्था की सेवा करने के लिए तैयार और अधिक से अधिक खुश भी हैं।’ 

दूसरा यह कि एक सफल वकील के रूप में आय न्यायाधीशों के वेतन और भत्तों से बहुत अधिक है। हालांकि प्रतिष्ठा पद से जुड़ी हुई है। तीसरी बात यह है कि यह समस्या निचली अदालतों तक भी पहुंच जाती है जहां पर कम महिला जज हैं। हालांकि कानूनी पेशे में महिलाओं की कमी नहीं है। 

2019 में नैशनल लॉ यूनिवर्सिटीज हेतु कॉमन लॉ एडमिशन में 44 प्रतिशत महिला उम्मीदवार उत्तीर्ण हुईं। कुछ राज्यों में निचली अदालतों के लिए महिला वकीलों हेतु आरक्षण नीति भी है। मगर यह उच्च न्यायालयों तथा सर्वोच्च न्यायालय में गायब है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में जस्टिस इंदु मल्होत्रा की सेवानिवृत्ति के बाद जस्टिस इंदिरा बनर्जी सर्वोच्च न्यायालय में एकमात्र महिला न्यायाधीश हैं। जहां पर 34 न्यायाधीशों की स्वीकृत क्षमता है। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में 5 रिक्तियां हैं। अब तक मात्र 5 महिला न्यायाधीशों ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में जगह बनाई। 

देश में योग्य महिला उच्च न्यायालय न्यायाधीशों तथा वकीलों की कमी नहीं है। जिन्हें अगर शीर्ष अदालत तक पहुंचा दिया जाए तो वे भारत की मुख्य न्यायाधीश बन सकती हैं। अधिक महिला न्यायाधीशों की समय पर होने वाली नियुक्ति भी इस समस्या का समाधान हो सकता है और इस मंतव्य के लिए सर्वोच्च न्यायालय कोलेजियम को प्रयास करने होंगे।-कल्याणी शंकर
 


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