मदीना में धराशायी मजारों के लिए कोई आंसू क्यों नहीं बहाता

punjabkesari.in Monday, May 01, 2023 - 05:27 AM (IST)

समाज की गरिमा उन मूल्यों के माध्यम से प्रतिबिंबित होती है, जो यह अपनी सांस्कृतिक विरासत को देता है। सांस्कृतिक विरासत का सारांश एक राष्ट्र, समुदाय की भाषा, किताब, साहित्य, अनुष्ठान, ज्ञान, परम्परा, कला, हस्तशिल्प, उत्सव तथा स्मारक है। इस कारण हर नागरिक का कत्र्तव्य और नैतिकता है कि वह अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित, जीवित और संभाल कर रखे। 

भारत में 5 शताब्दियों पुरानी बाबरी मस्जिद  जोकि अयोध्या में स्थित है, का विध्वंस 6 दिसम्बर 1992 में कुछ कट्टर हिन्दू तत्वों द्वारा कर दिया गया था। विश्वभर के बुद्धिजीवियों ने बाबरी मस्जिद विध्वंस की आलोचना की थी। 2019 को एक मील का पत्थर साबित होने वाले निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा कि यह विध्वंस गैर-कानूनी था। न्यायालय ने सरकार को मुआवजे के तौर पर एक मस्जिद के निर्माण के लिए एक वैकल्पिक स्थान देने का निर्देश दिया। 

दूसरी ओर सऊदी अरब में बड़े स्तर पर पवित्र मजारों, अवशेषों तथा विरासती स्थलों को गिराने का एक घिनौना अपराध किया गया। इसे सऊदी अरब की जियौनी वंश के वहाबी/ सलाफी शासकों के इशारे पर किया गया। यह शासक 18वीं शताब्दी के मध्य में अस्तित्व में आए आतंक पर आधारित इस्लाम के एक नए विकृत संस्करण का हिस्सा थे। यह नया पंथ ‘वहाबी’ कहलाया। यह नाम इसके संस्थापक शेख मोहम्मद नजदी-इबन-अबद-अल-वहाब के नाम पर पड़ा जिनका जन्म अरब प्रायद्वीप में हुआ। 

1744 में सच्चे इस्लाम की शिक्षाओं को दर-किनार करते हुए नजदी ने वहाबी नाम से एक पंथ को जन्म दिया ताकि मानव शक्ति का समर्थन हासिल किया जा सके। इस्लाम सऊदी अरब शासकों का वास्तविक धर्म नहीं है नजदी भी जियौनी वंश से संबंधित है। उन्होंने अपनी बेटी की शादी अबद-अल-अजीज के साथ की जो इबन-साऊद के बेटे थे। 

पवित्र कुरान का कहना है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब इस धरती पर मानवता के उपकार के लिए आए (21:107)। आगे यह कहा जाता है कि अल्लाह शांति में किसी प्रकार की पडऩे वाली बाधा से घृणा करते हैं (2:205)। वहीं दूसरी ओर वहाबी विचारधारा अपनी किताब ‘किताब-अल-तवाहिद’ पर आधारित है जो मुसलमानों का धर्मांतरण ताकत के बल पर करने की आज्ञा देती है। इसका कहना है कि या तो मेरी विचारधारा अनुसरण करें या फिर मरने के लिए तैयार रहें। 

1766 में मोहम्मद-इबन-साऊद की हत्या कर दी गई और उनकी जगह उनके बेटे अब्दुल-अल-अजीज अमीर बने (लौकिक नेता)। उन्होंने पारम्परिक हत्यारों की जगह आग्नेयास्त्रों को बढ़ावा दिया तथा अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए हमले बढ़ा दिए। ब्रिटिश इतिहासकार चाल्र्स ऐलन अपनी किताब ‘गॉड्स टैरारिस्ट्स’ में लिखते हैं कि ‘वहाबी पंथ आधुनिक जेहाद की छिपी हुई जड़ है’ अब्दुल-अजीज ने प्रत्येक योद्धा को एक फरमान जारी किया।2 जून 1792 को वहाबी पंथ के संस्थापक शेख नजदी की मौत हो गई। उन्होंने अपने पीछे 24 पत्नियों तथा 18 बच्चों को छोड़ा। उनके दामाद अबद-अल-अजीज धर्मांतरण तथा ङ्क्षहसक कार्रवाइयों में तेजी लाए। 

1802 में उन्होंने ईराक के करबला में हजरत इमाम हुसैन के पवित्र मजार पर हमला बोल दिया और उसे अपवित्र किया। लैफ्टीनैंट फ्रांसिस वार्डन लिखते हैं कि ‘‘उसने हजरत इमाम हुसैन के मकबरे को पूरी तरह से लूटा।’’1803 में अब्दुल-अल-अजीज-इबन-सऊद ने हज करने के लिए मक्का के शरीफ से एक यात्रा परमिट हासिल किया। उसके वहाबी लड़ाकू ने काबा में उसी तरह से अपशिष्ट पसार दिया जैसा कि याजीद-इबन-मुआविया ने 682 ईस्वी में काबा में किया था। 

वहाबियों ने मुस्लिम संतों के शानदार मकबरों को लूटा, जिन्हें वहां दफनाया गया था। यहां तक कि उन्होंने मस्जिद उल नबवी तक को नहीं छोड़ा। 1804 में आतंकियों के वहाबी गैंग ने एक बार फिर से हिजाज में रेगिस्तान को पार किया तथा जन्नत-उल-बकी में पैगम्बर साहिब के पारिवारिक सदस्य के मकबरों को तबाह किया और पैगम्बर साहिब की कब्र को भी नष्ट किया। 1925 में एक बार फिर वहाबी आतंकियों ने पैगम्बर मुहम्मद साहिब की बेटी हजरत फातिमा जहरा तथा नवासे हजरत-इमाम-हसन, हजरत-इमाम-जाइन, उल-अबीद्दीन, हजरत-इमाम-मोहम्मद-बक्कर की दरगाहों को ध्वस्त कर दिया। 

प्रत्येक वर्ष 6 दिसम्बर को बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी मनाई जाती है जिस दौरान मुसलमान विरोध प्रदर्शन करते हैं जबकि 8वीं शाहवाल, 1344 हिजरी (1925 ईस्वी) को सऊदी अरब शासकों ने पैगम्बर-मोहम्मद साहिब के पारिवारिक सदस्यों की पवित्र मजारों को जमींदोज कर दिया लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि किसी भी मुस्लिम सम्प्रदाय ने न तो कोई प्रतिक्रिया जाहिर की, न ही मुस्लिम सऊदी शासकों के खिलाफ प्रदर्शन किया और न ही एक आंसू बहाया। क्या ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वह अपराधी गैर-मुस्लिम नहीं है?-हसन खुर्शीद


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