ममता परम्पराओं को क्यों तार-तार कर रही

punjabkesari.in Friday, Jun 03, 2022 - 04:47 AM (IST)

पिछले 5 सालों में बंगाल जिस रास्ते पर चल पड़ा है, उसे देखते हुए कुछ अलग-सा आभास होता है। यह आभास भारत गणराज्य के एक राज्य से अलग का लगता है। भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेर कर तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं ममता बनर्जी संघीय ढांचे की रीति-नीति को लगातार चुनौती दे रही हैं। अपने दागी मंत्रियों, विधायकों और नेताओं-कार्यकत्र्ताओं को बचाने के लिए उन्हें केंद्रीय जांच एजैंसियों की निष्पक्षता पर तो संदेह रहा ही है, ताजा मामला विश्वविद्यालयों में बतौर चांसलर राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को स्थापित करने का है। इस आशय का प्रस्ताव उनके मंत्रिमंडल ने पास कर यह साफ संकेत दे दिया है कि वह अपने राज्य में उस केंद्रीय ताकत को मानने में गुरेज करेंगी, जो उनकी सत्ता को चुनौती दे। 

सरकारी विश्वविद्यालयों के चांसलर राज्यपाल नहीं, मुख्यमंत्री के होने के फैसले से साफ हो गया है कि बंगाल के विश्वविद्यालयों में अब ममता ही सर्वोच्च पद पर आसीन होंगी। हालांकि यह इतना आसान नहीं है, यह ममता को भी पता है। यही वजह रही कि इस बारे में कानूनी सलाह लेने की बात भी कही गई। ममता कैबिनेट के इस फैसले ने पूरे देश को चौंका दिया है। 

राज्यपाल-ममता में बेपटरी बनी इसकी वजह : राज्य सरकार के अधीन बंगाल में 35 विश्वविद्यालय संचालित हैं। इनमें 25 स्टेट पब्लिक यूनिवर्सिटीज हैं और 10 प्राइवेट यूनिवर्सिटीज। अभी तक इन विश्वविद्यालयों के चांसलर-विजिटर राज्यपाल हैं। ममता सरकार की राज्यपाल से अनबन 2019 से ही शुरू हो गई थी, जब उन्होंने बंगाल के राज्यपाल का पद संभाला था। सबसे पहले उन्होंने विश्वविद्यालयों में वीसी की नियुक्ति पर सवाल खड़ा किया। ममता की उनसे नाराजगी का आलम यह रहा कि राजभवन के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से राज्य सरकार के खिलाफ एक पार्टी नेता की तरह ट्विट आने पर ममता ने उन्हें फॉलो करना बंद किया। 2021 में कोविड के मद्देनजर जब राज्यपाल ने वीसी की बैठक बुलाई तो राजभवन कोई नहीं पहुंचा। राज्पाल ने खाली कुर्सियां दिखाते हुए इसे घोर यूनियनबाजी कहा। इसी का परिणाम है ममता कैबिनेट का वह फैसला, जिसमें राज्यपाल की जगह सी.एम. को चांसलर का दायित्व सौंपने का निर्णय लिया गया। 

विश्वविद्यालयों का सर्वोच्च पद सी.एम. को: ममता के कैबिनेट ने न सिर्फ सी.एम. को राज्यपाल की जगह सी.एम. को चांसलर बनाने का प्रस्ताव पास किया, बल्कि राज्य के शिक्षा मंत्री ने राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त कालेजों में राज्यपाल के विजिटर की भूमिका को भी खत्म करने का संकेत दे दिया। बंगाल से ही आने वाले केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार का कहना है कि केंद्र सरकार यू.जी.सी. के दिशा-निर्देशों का अध्ययन कर यह पता लगाएगी कि क्या राज्य सरकार के अधीन आने वाले विश्वविद्यालयों पर नियंत्रण को लेकर राज्य सरकार द्वारा ऐसा कदम उठाया जा सकता है। दरअसल राज्यपाल को चांसलर बतौर जो शक्तियां व दायित्व दिए गए हैं, वे राज्यसभा और लोकसभा से पारित होने के बाद राष्ट्रपति की संस्तुति से प्राप्त हैं। राज्य सरकार जल्दी ही विधानसभा से यह प्रस्तावित पारित कर राज्यपाल को भेजेगी। अगर उसमें उन्होंने अड़ंगा लगाया तो यह अध्यादेश के रूप में लागू होगा, जैसा शिक्षा मंत्री का कहना है। ऐसा करना देश के संघीय ढांचे में किसी राज्य सरकार की शक्ति से बाहर है। 

केंद्रीय जांच एजैंसियों के खिलाफ हैं ममता : ममता बनर्जी केंद्रीय जांच एजैंसियों- सी.बी.आई., ई.डी. और आई.टी. के खिलाफ भी बोलती और कड़ा रुख अपनाती रही हैं। बंगाल सरकार के एक आई.पी.एस. राजीव कुमार के खिलाफ बंगाल के बहुचॢचत शारदा चिटफंड घोटाले में जब सी.बी.आई. ने उनके घर पर दबिश दी तो ममता बनर्जी मुख्यमंत्री रहते हुए इसके विरोध में वहां समर्थकों के साथ धरने पर बैठ गईं। शारदा चिटफंड घोटाले में ममता की पार्टी टी.एम.सी. के कई बड़े नेताओं के नाम भी आए थे। उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी। 

केंद्रीय योजनाएं लागू नहीं करतीं ममता : केंद्रीय योजनाओं को लागू न करना या केंद्र सरकार के फैसले का विरोध करना ममता के लिए कोई नई बात नहीं है। किसानों के लिए केंद्र ने किसान सम्मान निधि योजना की घोषणा की, लेकिन ममता ने बंगाल में इसे लागू नहीं किया। स्वास्थ्य क्षेत्र में केंद्र की महत्वाकांक्षी योजना आयुष्मान भारत को बंगाल में ममता ने लागू नहीं किया। इसकी जगह राज्य सरकार की ओर से उन्होंने स्वास्थ्य साथी योजना लागू की। इस योजना की हालत यह है कि सूचीबद्ध अस्पतालों को राज्य सरकार समय पर पैसे का भुगतान नहीं कर पा रही है। कई अस्पतालों ने तो इस योजना के लाभार्थियों को भर्ती करने से भी मना करना शुरू कर दिया है। 

घुसपैठ पर ममता का स्टैंड केंद्र के खिलाफ : ममता बनर्जी जब केंद्र की राजनीति में थीं तो उन्होंने लोकसभा में घुसपैठ के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया थी।  तब बंगाल में वामपंथियों की सरकार थी। उन्होंने स्पीकर के टेबल पर इसी बात पर कागजों की पुलिंदा फैंका था। माना जा रहा था कि बंगलादेश से घुसपैठ कर बंगाल में शरण पाए घुसपैठिए वाम दलों को वोट करते हैं। ममता ऐसे लोगों को घुसपैठी मान कर उन्हें बाहर करने के पक्ष में थीं। लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार ने जब देश में एन.आर.सी. की बात की तो यह बात ममता को नागवार लगने लगी।-ओमप्रकाश अश्क


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