विपक्ष जनता को उसी के हितों के लिए लामबंद क्यों नहीं कर पा रहा

punjabkesari.in Monday, Apr 04, 2022 - 03:57 AM (IST)

शनिवार को तेल की कीमतें फिर बढ़ गईं, गत 12 दिनों के दौरान 10वीं बार, मगर यह विशेष तौर पर वह विषय नहीं है जिसे लेकर मीडिया में अधिक चर्चा की जा रही है। विपक्ष ने महंगाई का मुद्दा उठाने की कोशिश की, जिसके बारे में कई सर्वेक्षणों ने दावा किया कि यह भारतीयों के लिए बेरोजगारी के साथ एकमात्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण मुद्दा है। 
कुछ कारणों से इस समय इसे लेकर कोई खिंचाव नहीं है। 

गत सप्ताह कर्नाटक में कांग्रेस ने कहा कि ‘यह चिंता का कारण है कि साम्प्रदायिक तत्वों द्वारा लोगों से जुड़े मुद्दों को नजरअंदाज किया जा रहा है’ और यह कि ‘हम केवल उचित मुद्दे ही उठा सकते हैं। यद्यपि हम केवल जनता के समर्थन से ही आगे कदम बढ़ा सकते हैं।’ इसका अर्थ यह हुआ कि बढ़ती कीमतों के विरोध में जनता की ओर से बहुत कम अथवा बिल्कुल भी उत्साह नहीं दिखाया जा रहा। 

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री जनता दल के एच.डी. कुमारास्वामी ने इस दृष्टांत को लेकर कहा कि ‘मोदी के शासन में लोग समृद्ध हैं और संभवत: इसी कारण से वे बढ़ती कीमतों के खिलाफ प्रदर्शन नहीं कर रहे।’ यही मामला बेरोजगारी के साथ भी है। 2019 के चुनावों से ठीक पहले के केंद्र सरकार के एक सर्वेक्षण में दिखाया गया कि 2018 में बेरोजगारी 6 प्रतिशत के साथ 50 वर्षों में सर्वाधिक थी। तब से यह 4 वर्षों के लिए इससे अधिक बनी रही लेकिन ईंधन तथा एल.पी.जी. की कीमतों की तरह ऐसा नहीं दिखाई दिया कि यह राजनीति का एक विषय बनी हो।

यह जांचना दिलचस्प होगा कि क्यों विपक्ष एक ऐसी चीज पर जनसमर्थन को लामबंद नहीं कर सकता जो स्पष्ट तौर पर जनता के हित में है। उनकी पहली रुकावट मीडिया के साथ जुड़ा मामला है। भारतीय मीडिया का ढांचा ऐसा है कि यह लाइसैंसों, विज्ञापनों तथा अन्य समर्थनों के लिए सरकार पर बहुत अधिक निर्भर है। भारत में मास मीडिया पर कार्पोरेट्स का अधिकार है जिनकी अन्य कई कम्पनियां हैं तथा वे अपने व्यापक व्यावसायिक हितों के लिए एक विस्तार के तौर पर मीडिया इकाइयों के साथ व्यवहार करते हैं। यही कारण है कि उनमें से अधिकतर सरकार के प्रवक्ताओं की तरह सुनाई देते हैं। यह एक कारण हो सकता है कि क्यों सत्ताधारी पार्टी दबाव महसूस नहीं करती लेकिन यह केवल एक नहीं है। 

अन्य यह हो सकता है कि विपक्षी नेता सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ लामबंद होने में सक्षम नहीं हैं। संभवत: यह सच है लेकिन पूरी तरह से सच नहीं हो सकता। भाजपा ने सभी राज्य नहीं जीते हैं तथा यह दावा करना संभव नहीं है कि राजनीति पर उसका पूर्ण प्रभुत्व है। विपक्ष के लिए कुछ स्थान है लेकिन इस मुद्दे पर इसे व्यापक जनसमर्थन मिलता दिखाई नहीं देता। पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार महंगाई के कारण अलोकप्रिय बन गई। भारत में पाकिस्तान के मुकाबले ईंधन की कीमतें कम हैं और सरकार लोकप्रिय बनी हुई है। 

इस असामान्य दृष्टांत के लिए हम और क्या कारण बता सकते हैं? हम विपक्ष की ओर से फिर सुनते हैं कि वे क्या कहते हैं। कर्नाटक में ध्यान स्कूलों में भगवद् गीता लागू, हिजाब पर प्रतिबंध लगाने तथा मुस्लिम लड़कियों को स्कूल से बाहर रखने, कश्मीर पर एक फिल्म को लेकर विवाद, हलाल मांस पर प्रतिबंध लगाने तथा गैर-हिंदुओं पर मंदिरों के उत्सवों के दौरान व्यापार करने पर प्रतिबंध लगाने पर है। इसमें कोई संदेह नहीं कि ये लोकप्रिय मुद्दे हैं अर्थात लोगों को इनके बारे में पढऩे तथा समाचार देखने में रुचि है। यदि हम यह जानें कि मीडिया उन पर कितना समय खर्च करता है, निश्चित तौर पर वे प्रभुत्वशाली मुद्दे हैं। 

भारत के राजनीतिक दल जो कह रहे हैं वह यह कि यह मुद्दे बहुतों के लिए अधिक महत्वपूर्ण हैं और संभवत: ईंधन, एल.पी.जी. कीमतों तथा बेरोजगारी के मुकाबले अधिकांश भारतीयों के लिए। सत्ताधारी पार्टी निरंतर साम्प्रदायिक मुद्दों को आगे बढ़ाकर यह कह रही है तथा विपक्ष यह स्वीकार करके कह रहा है कि गैर-साम्प्रदायिक मुद्दों के प्रति कोई खिंचाव नहीं है। कितने लम्बे समय तक यह स्थिति जारी रहती है तथा इसका हमारे भविष्य के लिए क्या अर्थ है? कुछ वर्ष पूर्व मैंने एक पुस्तक लिखी थी जिसका विषय था कि हिंदुत्व एक ऐसी स्थिति है जिसका कोई अंत नहीं। अर्थात कोई विशेष लक्ष्य नहीं है जिसे यह प्राप्त करना चाहता हो।

उदाहरण के लिए यह संविधान में बहुत बदलाव अथवा उसे खत्म करना नहीं चाहती क्योंकि वर्तमान कानून इसे काफी स्थान देते हैं कि यह जो करना चाहे उसे करने में सक्षम हो सके। इसका एकमात्र उद्देश्य निरंतर साम्प्रदायिकता के मुद्दे को उभारते रहना है और यहां हमेशा इस्तेमाल करने के लिए कुछ न कुछ रहता है। आज बीफ, कल नमाज, तीसरे दिन संडे मास (जिस पर कर्नाटक में ङ्क्षहदू संगठनों द्वारा हमला किया गया), चौथे दिन हिजाब, पांचवें दिन हलाल, छठे दिन लव-जेहाद आदि। 

2 अप्रैल को उत्तर प्रदेश ने घोषणा की कि सभी नवरात्रों के दौरान 10 अप्रैल तक मांस की सभी दुकानें बंद रहेंगी। क्यों? क्योंकि हिंदुओं का तर्क है कि अन्य लोग मांस खरीदते तथा खाते हैं। ऐसी चीजों की कोई कमी नहीं होगी जिनसे हम अपने अल्पसंख्यकों को यातना देते हैं तथा इस कारण से यह इसी तरह जारी रहेगा क्योंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, हमारा ध्यान काफी हद तक राजनीतिक विजय तथा पराजय पर केंद्रित रहता है। चुनावों के बाद तथा बीच क्या होता है इस पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। एक लेखक के लिए वर्तमान समय में भारत समृद्ध तथा आकर्षक विषय-वस्तु उपलब्ध करवाता है लेकिन एक नागरिक के तौर पर यह देखना निराशाजनक है कि हम कहां पहुंच गए हैं।-आकार पटेल


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