क्यों खास है देश की पहली रैपिड रेल

punjabkesari.in Tuesday, Mar 22, 2022 - 05:34 AM (IST)

मौजूदा तकनीकी युग में हमने बुलेट ट्रेन और मैट्रो का नाम अवश्य सुना है, लेकिन रैपिड रेल का नाम शायद ही सुनने में आया हो। बता दें कि दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ के बीच देश की पहली रीजनल रैपिड रेल का काम बड़ी तेजी के साथ चल रहा है। तीन चरणों में बन रही इस परियोजना का पहला हिस्सा साहिबाबाद से दुहाई के बीच 2023 में आवाजाही के लिए खोले जाने की योजना है। दिल्ली से मेरठ के पूरे कॉरिडोर को 2025 तक संचालन में ला दिया जाएगा। फिलहाल साहिबाबाद से दुहाई के बीच प्राथमिकता खंड पर काम तेजी से चल रहा है। 

विदित है कि फरवरी में पेश किए गए केंद्रीय बजट में रैपिड रेल के लिए 4000 करोड़ रुपए से भी ज्यादा राशि आबंटित की गई। दरअसल, रैपिड रेल प्रोजैक्ट का निर्माण एन.सी.आर.टी.सी. कर रहा है, जिसमें भारत सरकार का योगदान 50 फीसदी और बाकी का 50 फीसदी समान अनुपात में हरियाणा, एन.सी.टी. दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान का रहेगा। 

यह रेल यात्रियों के सफर को न केवल मैट्रो से भी अधिक सुविधाजनक बनाएगी, बल्कि शहर में जाम और प्रदूषण की समस्या को भी कम करेगी। रैपिड रेल सामान्य यात्रियों के साथ-साथ दिव्यांग और स्ट्रैचर पर गंभीर मरीजों को भी शीघ्र और सुरक्षित परिवहन की व्यवस्था मुहैया करवाने का काम करेगी। इसके अलावा, इस रेलगाड़ी में सभी कोच वातानुकूलित होने के साथ-साथ उनमें वाई-फाई और चार्जिंग प्वाइंट की सुविधा रहेगी। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि कोच में यात्री न होने पर लाइटें स्वत: बंद हो जाएंगी। इससे बिजली की खपत को कम किया जा सकेगा। 

बताते चलें कि इस रेलगाड़ी के सभी स्टेशन सौर ऊर्जा से युक्त होंगे। इसमें बिजली की आपूर्ति दिन में इसी के जरिए होगी और रात के लिए थोड़ी बिजलीघरों से ली जाएगी। लेकिन योजना है कि अगले 18 साल में यानी 2040 तक यह पूरी रेल व्यवस्था वैकल्पिक और स्वच्छ ऊर्जा पर ही चलेगी। रैपिड रेल में हवाई जहाजों की तरह खुलने और बंद होने वाले दरवाजे होंगे और अंदर टू बाई टू यानी वायुयान की तरह सीटें होंगी। इनके ऊपर सामान रखने के रैक भी होंगे। साथ ही एक ओर की सीटें गाड़ी की गति की दिशा में तो दूसरी ओर की विपरीत दिशा में होंगी। यह व्यवस्था उन तमाम यात्रियों के लिए लाभदायक होगी जिनको गाड़ी की रफ्तार की दिशा के विपरीत दिशा में बैठ कर सफर करने से बेचैनी होती है।

अगर, हम इस रेलगाड़ी की यात्री क्षमता की बात करें तो 6 कोच वाली ट्रेन में एक बार में करीब 1700 लोग सफर कर पाएंगे। इसमें एक प्रीमियम कोच भी होगा, जिसमें 60 लोग बैठ सकेंगे, वहीं सामान्य कोच में 70 से 72 लोग बैठेंगे। हर कोच में 270 लोग खड़े होकर भी सफर कर सकेंगे। अब सवाल यह कि बुलेट और मैट्रो ट्रेन के बीच की स्पीड वाली इस रेलगाड़ी की आखिर औसत स्पीड कितनी है? इस रैपिड रेल का ढांचा इस ढंग से तैयार किया गया है, जिससे इसे ज्यादा रफ्तार के साथ दौडऩे में मदद मिलेगी। दरअसल, ट्रेन का बाहरी ढांचा एयरोडायनैमिक आकृति का है। यह ट्रेन 100 किलोमीटर प्रति घंटा की औसत रफ्तार से चलेगी। कम्प्यूट्रीकृत प्रणाली से चलने वाली इस ट्रेन में ब्रेक लगाते समय झटका भी नहीं लगता, जो इसे और ज्यादा खास बनाता है। 

मैट्रो एक शहर के अंदर चलने वाली ट्रेन सेवा है, जबकि रैपिड रेल अर्बन नोड यानी लगभग 100 किलोमीटर की दूरी वाले 2 शहरों को जोडऩे का काम करेगी। जहां रैपिड रेल 100 किलोमीटर का सफर तय करने में 1 घंटे का वक्त लेगी, वहीं इतना सफर पूरा करने में मैट्रो 3 घंटे लेती है क्योंकि मैट्रो की औसत रफ्तार 32 किलोमीटर प्रति घंटा है। अगर हम इनकी आप्रेशनल गति की बात करें तो रैपिड रेल तथा मैट्रो की आप्रेशनल गति क्रमश: 180 एवं 80 किलोमीटर प्रति घंटा है। 

ऐसे में कहा जा सकता है कि किन्हीं 2 नजदीकी शहरों को जोडऩे में रैपिड रेल काफी मददगार साबित होगी, जिससे उनके बीच सार्वजनिक सफर को बल मिलेगा। इससे जाम की समस्या से छुटकारा भी मिलना तय है, साथ ही निजी परिवहन में कमी आएगी, जिससे दिल्ली जैसे महानगरों को वायु प्रदूषण जैसी समस्याओं से निजात मिलेगी और सार्वजनिक सफर भी सुरक्षित होगा। लिहाजा, पूरे देश में विशेष तौर पर बड़े महानगरों के दरम्यान रैपिड रेल को चलाए जाने की आवश्यकता है।-अली खान
 


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