आखिर क्यों टाल रही है भाजपा जातिगत जनगणना का प्रश्न

punjabkesari.in Tuesday, Aug 24, 2021 - 06:31 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपने मंत्रिमंडल में विस्तार करने के लगभग एक महीने बाद 11 अगस्त को दिल्ली के अम्बेदकर इंटरनैशनल सैंटर में एक विशेष समारोह के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित 27 मंत्रियों को सम्मानित किया। भाजपा उनके शामिल करने को अपने इतिहास में एक ‘उपलब्धि’ बताती है क्योंकि ओ.बी.सी. मोदी के मंत्रिमंडल का 35 प्रतिशत बनाते हैं जो इस बात को रेखांकित करता है कि उनकी राजनीतिक योजना में समुदाय कितना महत्व रखते हैं। यद्यपि उनकी इस बेहतरीन योजना को चोट पहुंची है तथा भाजपा के लिए जाति आधारित जनगणना करवाने की मांग उसके ओ.बी.सी. हितैषी एजैंडे को विपरीत रूप से प्रभावित कर सकती है। 1989 तक यह इसे नकारने की मुद्रा में रही, जब मंडल आयोग ने शिक्षण संस्थानों तथा नौकरियों में ओ.बी.सी. के लिए आरक्षण कोटे का सुझाव दिया। 

कोई हैरानी की बात नहीं कि ओ.बी.सी. के लिए जातिगत जनगणना के लिए सर्वाधिक ऊंची आवाजें राजनीतिक क्षेत्र से आईं। संसद के हाल ही में समाप्त हुए मानसून सत्र में जब संविधान के संशोधन (127वें) विधेयक के माध्यम से राज्यों द्वारा उनके ओ.बी.सी. समुदाय की सूची को बहाल करने की शक्ति पर लोकसभा में चर्चा हुई तो 2 महिलाओं, दोनों ही उत्तर प्रदेश से तथा पिछड़ी जातियों से संबंधित ने बड़ी मजबूती से जनगणना के पक्ष में आवाज उठाई। 

बदायूं से सांसद संघमित्रा मौर्या ने कहा कि हम जानते हैं कि प्रत्येक जिले में कितने मवेशी हैं तथा जिलों में पशुओं की संख्या कितनी है। हमारी जाति, वर्गों तथा समाज के लोग केवल चुनावों पर ही केंद्रित हो गए। मिर्जापुर से सांसद तथा कनिष्ठ मंत्री अनुप्रिया पटेल ने कहा कि जब तक पिछड़ी तथा दबी-कुचली जातियों को लोकतंत्र के सभी स्तम्भों में बराबर का प्रतिनिधित्व नहीं मिलता, सामाजिक न्याय का विचार अधूरा रहेगा। एक प्रश्न के उत्तर में केंद्र ने अपनी स्थिति व्यक्त की। गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राव ने कहा कि भारत सरकार ने अपनी नीति के आधार पर यह निर्णय किया है कि अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों के अलावा जनगणना में जाति आधारित जनसंख्या की गणना नहीं की जाएगी। 

राजनीतिज्ञों के अनुसार जनगणना का मुद्दा अब ओ.बी.सी. की जनसंख्या की सटीक तथा पारदर्शी गणना के साथ जटिलतापूर्वक जुड़ा हुआ है जिसके भाव में सरकारी नौकरियों तथा शिक्षण संस्थानों में पिछड़ी जातियों को ‘अपर्याप्त’ प्रतिनिधित्व मिलता है। मंडल आयोग ने 1931 की जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल किया था (जाति आधारित अंतिम गणना) जिसे अन्य आंकड़ों आदि का समर्थन प्राप्त था जिसके परिणामस्वरूप ओ.बी.सी. की 52 प्रतिशत जनसंख्या का आंकड़ा तथा 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव प्राप्त हुआ जो समिति के अनुसार उनकी संख्या से काफी कम था। इसके बाद 2011 तथा 2013 के बीच ग्रामीण विकास मंत्रालय के घरों के सामाजिक-आॢथक दर्जे के सर्वेक्षण के एक हिस्से के तौर पर सामाजिक तथा आर्थिक जाति जनगणना (एस.ई.सी.सी.) की गई। 

एस.ई.सी. सी. के जाति आधारित परिणाम उजागर नहीं किए गए लेकिन ऐसा माना जाता है कि इसमें 26 लाख जातियों तथा उपजातियों को सूचीबद्ध किया गया जिन्होंने अपने वर्गीकरण को एक विशाल कार्य बना दिया। भाजपा के डाक्टर के. लक्ष्मण ने आरोप लगाया कि एस.ई.सी.सी. ने घड़ी को वापस ओ.बी.सी. की गणना की ओर मोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि भाजपा इसके पक्ष में है लेकिन इसकी तकनीकी तथा कानूनी समस्याओं को देखें जो एस.ई.सी.सी. के अवैज्ञानिक तरीके ने पैदा कर दी हैं। उनके मुताबिक जनगणना संभवत: यह खुलासा करे कि 46 लाख की बजाय यहां 30,000 से 40,000 जातियां हैं लेकिन यह पेचीदगियों का कारण बनेगा। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने चेतावनी देते हुए कहा कि क्या जातियों की गणना से पहचानों में तेजी आएगी, क्या यह व्यावहारिक है? 

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ दो भाषाएं बोल रहा है। एक स्वाभाविक तौर पर जनता के पचाने के लिए तथा एक नपी-तुली आवाज में निजी आकलन के लिए। संघ के महासचिव दत्तात्रेय  होसबोले ने एक हालिया पुस्तक लांच के अवसर पर जोर देकर कहा कि उनका संगठन आरक्षणों का ‘कड़ा समर्थक’ है। उन्होंने कहा कि जब तक समाज के विशेष वर्गों द्वारा असमानता का अनुभव किया जाता रहेगा तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए। होसबोले ने अपने पूर्ववर्ती सुरेश भैया जोशी के विचारों को नकार दिया। जोशी का तर्क जाति आधारित जनगणना के विरुद्ध था क्योंकि उनका मानना था कि ये उनकी जाति रहित समाज की उस विचारधारा के ‘विरुद्ध’ जाता है, जिसका सपना डा. बी.आर. अम्बेदकर ने देखा था। 

संघ के एक सूत्र ने दृढ़ता से कहा कि उनके संगठन ने जातिगत जनगणना को हरी झंडी नहीं दी है। उन्होंने यह संकेत देते हुए कहा कि महाराष्ट्र में ओ.बी.सी. के मुद्दे ने समाज को भरपाई न होने वाली हद तक बांट दिया है। पूछा कि क्या यह प्रश्न जाति के मुद्दों का समाधान करने के लिए है या ओ.बी.सी. की पहचान को मजबूत बनाने के लिए। सूत्र ने कहा कि मराठा तथा कन्बी एक ही समूह थे। उन्हें बांट कर एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया गया है क्योंकि मराठा एक मध्यवर्गीय जाति है तथा कन्बी एक पिछड़ी जाति है। उसने कहा कि जनगणना का मूल आधार नीतियां तैयार करने के लिए आंकड़े प्राप्त करना होना चाहिए न कि समाज को बांटने के लिए। भाजपा सूत्र ने स्वीकार किया कि जनगणना ओ.बी.सी. के सांख्यिकीय बहुमत की पुष्टि कर देगी। यह सामाजिक समीकरणों को बदल देगा जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वीकार नहीं करेगा।-आर. रामशेषण


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