तेजस्वी को उत्तराधिकारी क्यों बनाना चाहते हैं नीतीश

punjabkesari.in Saturday, Dec 17, 2022 - 05:23 AM (IST)

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक तरह से अपने उत्तराधिकारी की घोषणा कर दी है। नीतीश ने कहा कि 2025 में बिहार विधानसभा का चुनाव उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। चर्चा यह हो रही है कि 71 वर्ष के हो चुके नीतीश क्या अब राजनीति से संन्यास लेना चाहते हैं या फिर कम से कम 2025 के विधानसभा चुनावों तक अपनी कुर्सी बचाने के लिए तेजस्वी का नाम आगे कर रहे हैं। हाल में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और भाजपा विरोधी कई पार्टियों के नेताओं से नीतीश की दिल्ली में मुलाकात के बाद यह भी कहा जा सकता है कि नीतीश केंद्रीय राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी लेने लगे हैं।

अपनी पार्टी जे.डी.यू. के विधायक दल की बैठक में उन्होंने यहां तक दावा किया कि सभी विरोधी पाॢटयां मिल कर 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को पराजित कर सकती हैं। हालांकि प्रधानमंत्री पद का दावेदार होने से इंकार करते हैं लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि क्या नीतीश की पार्टी के दूसरे नेता भी तेजस्वी के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे? क्या इस मुद्दे पर नीतीश की पार्टी टूट जाएगी? जे.डी.यू. के नेता आर.जे.डी. के साथ रहेंगे या भाजपा के साथ जाएंगे?

नीतीश और लालू का प्रेम और नफरत : नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के पिता लालू यादव 1974 के बिहार आंदोलन के समय के साथी हैं। दोनों ही डा. राम मनोहर लोहिया के समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहे हैं। बिहार में सवर्ण राजनीति का सफाया करके पिछड़े नेतृत्व को स्थापित करने में दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। 90 के दशक में जब बिहार की राजनीति पर लालू और उनके परिवार का दबदबा कायम हो गया तब नीतीश ने अलग राह पकड़ ली।
 

लालू से अलग होकर नीतीश ने अपनी पार्टी बनाई और अति पिछड़ा तथा अति दलितों का एक नया राजनीतिक समीकरण खड़ा किया। यादव और मुसलमान तो लालू के साथ बने रहे लेकिन दूसरी पिछड़ी जातियां जैसे कोईरी, कुशवाह, मल्लाह और अन्य गैर-यादव जातियां नीतीश के साथ चली गईं। इसी तरह नीतीश ने दलितों से उन जातियों को अलग कर लिया जिन्हें आरक्षण का ज्यादा फायदा नहीं मिला था। इस नए समीकरण को एक हद तक सवर्णों और मुसलमानों का भी समर्थन मिला।

भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ 2005 में लालू की पार्टी को पराजित करके नीतीश सत्ता में आए। उसके बाद दो छोटे-छोटे अंतराल को छोड़ कर नीतीश लगातार मुख्यमंत्री बने हुए हैं। नीतीश को ‘सुशासन बाबू’ और ‘विकास पुरुष’ चलाना पसंद है। खासतौर से 2005 में सत्ता में आने के बाद लालू राज की बर्बादी को उन्होंने निशाना बनाया और सत्ता में लगातार रहने के लिए ज्यादातर लालू राज के जंगल राज को अपने भाषणों का हिस्सा बनाते रहे। अब उनके सामने यह जरूर संकट है कि जिन लालू पर निशाना साध कर उन्होंने लम्बे समय तक राज किया अब कैसे उसे निपटेंगे।

मोदी विरोध ने लालू के करीब किया : लोकसभा के 2014 के चुनाव के दौरान नीतीश ने नरेंद्र मोदी के विरोध का झंडा उठाया तो लालू की पार्टी से फिर उनका रिश्ता बनना शुरू हुआ। उस समय तक लालू की राजनीति खत्म होने की कगार पर पहुंच चुकी थी। पार्टी की कमान लालू के बेटे तेजस्वी यादव ने संभालनी शुरू कर दी थी। मई 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा से करारी हार के बाद नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर अति दलित नेता जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया।

2015 में लालू के सहयोग से वह फिर  मुख्यमंत्री बने और विधानसभा चुनाव दोनों साथ लड़े। इस बार भाजपा गठबंधन को पराजित करने में उन्हें सफलता मिली। नीतीश सरकार में तेजस्वी यादव पहली बार उप-मुख्यमंत्री बने। यह साथ बहुत कम दिनों तक चला। 2017 में सी.बी.आई. और अन्य केंद्रीय एजैंसियों ने तेजस्वी यादव और लालू परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ जांच-पड़ताल तेज कर दी। कई जगहों पर छापे मारे गए।

भाजपा से मोह भंग : 2019 के लोकसभा चुनावों के पहले विपक्ष के कई नेताओं ने नीतीश से भाजपा विरोधी मोर्चा का नेतृत्व करने के लिए बातचीत की लेकिन वह तैयार नहीं हुए। भाजपा नीतीश का दूसरी बार मोहभंग 2022 में महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार गिरने के बाद हुआ। बिहार में चर्चा शुरू हो गई कि  भाजपा के अगले निशाने पर जे.डी.यू. है। कई नेताओं ने आरोप लगाया कि जे.डी.यू. के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री आर.सी.पी. सिंह को आगे करके महाराष्ट्र के शिव सेना की तरह तोडऩे और नीतीश को उद्धव ठाकरे की तरह सत्ता से बाहर करने की कोशिश कर रही है।

महाराष्ट्र की घटना के बाद नीतीश सावधान हो गए। नीतीश को फिर से अपनाना लालू यादव के परिवार की मजबूरी थी। आर.जे.डी. के पास सत्ता में वापस लौटने का इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था। पुराने विवाद को भूलकर लालू परिवार ने एक बार फिर नीतीश को नेता मान लिया। नीतीश  करीब 15 साल मुख्यमंत्री रह चुके हैं। बिहार में उनका जादू कुछ हद तक अब भी बरकरार है लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में वह कितना कारगर होंगे, कहा नहीं जा सकता है। -शैलेश कुमार


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