पंजाबियों को बार-बार क्यों लगते हैं बिजली के ‘झटके’

punjabkesari.in Sunday, Jan 19, 2020 - 03:24 AM (IST)

कई बार जब हमारे राजनीतिज्ञ अज्ञानता भरे बयान देते हैं तब अफसोस होता है। हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि आखिर ये लोग राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए या फिर सनसनी फैलाने के लिए गलत बयानबाजी कर रहे हैं। कुछ दिन पहले नवजोत कौर सिद्धू ने बिजली की कीमतों में बढ़ौतरी के बारे में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वह इस बारे में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से परामर्श ले लें, जिन्होंने बहुत कम रेट पर लोगों को बिजली मुहैया करवाई है। कम रेट पर घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली की आपूर्ति करने वाली बात तो उचित लगती है परंतु दिल्ली से उनका क्या मतलब है तथा पंजाब से क्या मतलब है। इसको समझे बगैर इस बयान के अर्थ नहीं रह जाते। 

आम आदमी पार्टी (आप) की पंजाब ईकाई भी बिजली के मसले को लेकर लोगों को इकट्ठा करने के लिए प्रयासरत है तथा सरकार और अकालियों के बीच भी बिजली समझौतों को लेकर बात सामने आ रही है। यह मुद्दा लोगों से सीधे तौर पर जुड़े होने के कारण राजनीतिक हो जाता है। महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ रखी है। ऊपर से बिजली के झटके सरकार के लिए ङ्क्षचता का विषय है। हम यह भी नहीं कह सकते कि अकाली-भाजपा की सरकार फैसले गलत कर गई। इस मुद्दे को सियासी रंगत नहीं देनी चाहिए। 

दिल्ली और पंजाब की दरों में क्या फर्क
अब दिल्ली तथा पंजाब में दरों का जो फर्क है उसकी असलियत क्या है? पंजाब में घरेलू लागत औसतन 6.63 रुपए है, हम घरेलू उपभोक्ता को 6.81 रुपए का रेट लगाते हैं। टैक्स इस रेट के अतिरिक्त है। वह बीच में नहीं गिने गए। अब दिल्ली में घरेलू उपभोक्ता की बात करें तो वे हमारे से अधिक हैं। वहां पर औसतन लागत 7.10 रुपए बनती है परंतु वहां पर क्रास सबसिडी जो है वह घरेलू उपभोक्ता को दे रहे हैं। वहां ज्यादा सबसिडी दी जाती है। फिर वो सबसिडी कहां से पैदा करते हैं, यह जानना अहम है। उनका घरेलू रेट बहुत कम है। मगर उनके इंडस्ट्रीयल तथा कमर्शियल यूनिटों के रेट बहुत ज्यादा हैं। दिल्ली में एक रिपोर्ट के अनुसार 2018-19 में इंडस्ट्रीयल/कमर्शियल रेट औसतन 11 रुपए था जबकि पंजाब में इसके विपरीत 8 रुपए था। अब दिल्ली वाले जो कमर्शियल से बड़ी कमाई करते हैं वह घरेलू उपभोक्ताओं को क्रास सबसिडी के तौर पर देते हैं। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली सरकार ने 1795 करोड़ के करीब सबसिडी दी जबकि केवल कमर्शियल से ही 2900 करोड़ रुपए की कमाई की गई, वहीं पंजाब सरकार इस मामले में 9600 करोड़ अपनी जेब से भर रही है। इसके साथ-साथ बहुत सी स्कीमों द्वारा मुफ्त बिजली देना भी पंजाब सरकार के लिए एक घाटे का सौदा है। 

वर्तमान अधिकारियों पर कार्रवाई करने या फिर वर्तमान सरकार को दोषी ठहराने से इस संकट से निजात नहीं पाई जा सकती। इसलिए सरकार अपनी पूरी जिम्मेदारी से इस संकट को हल करे तथा लोगों को बार-बार बिजली के झटकों से बचाया जाए। जिस तरह पिछले 2 दशकों से हम आर्थिक तौर पर देश के गिरते मियार को जानते हैं, पंजाब ने कोई ज्यादा तरक्की नहीं की। इसने भी बेरोजगार ही पैदा किए हैं।-देसराज काली/हरफ हकीकी 


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