कौन करेगा मोदी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व

punjabkesari.in Friday, Sep 16, 2022 - 05:46 AM (IST)

मुझे ‘आप’ के एक मध्यम दर्जे के कार्यकत्र्ता से एक कॉल प्राप्त होने पर हैरानी हुई जिसने उनके एक स्टार परफॉर्मर मनीष सिसोदिया के खिलाफ निराधार आरोप लगाने के भाजपा के इरादे के खिलाफ प्रश्र उठाने के लिए मेरा धन्यवाद किया जो दिल्ली सरकार की आबकारी नीति के ‘घोटाले’ के लिए जाने जाते हैं। 

‘घोटाले’ के बारे में अभी तक कुछ भी साबित नहीं हो सका है, लेकिन चूंकि मानव प्रकृति हमें किसी खराब बात पर विश्वास करने के लिए प्रेरित करती है, सिसोदिया के गुजरात विधानसभा चुनावों में ‘आप’ के उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार करने के बावजूद अपराध उनका पीछा कर रहा है। किसी जनसेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार एक गंभीर आरोप है। दुर्भाग्य से आरोप कितने निरंतर तथा सामान्य हो गए हैं कि लोगों ने उन्हें गिनना या उनकी परवाह करना छोड़ दिया है। यह वास्तव में बहुत अफसोसनाक है। 

मनीष सिसोदिया के पास दिल्ली के मंत्रिमंडल में शिक्षा का प्रभार है। बेशक यह कार्य आतिशी मार्लिना के हाथों में है लेकिन सरकार का आधिकारिक चेहरा प्रभारी मंत्री हैं। इसलिए भाजपा को मंत्री पर हमला करने की जरूरत है जैसा कि मनीष सिसोदिया के मामले में। शिक्षा तथा स्वास्थ्य देश की प्रगति के लिए दो प्रमुख कारक हैं। जब प्रगति के मानदंडों को परिभाषित तथा मापा जाता है स्वस्थ शिक्षित नागरिक बहुत अंतर पैदा करते हैं। इनको राज्यों तथा केंद्र में आने वाली एक के बाद एक सरकारों ने नजरअंदाज किया है। जैसे कि मैं जानता हूं ‘आप’ एकमात्र पार्टी है जिसने इन दोनों क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है। अन्य राज्य सरकारों को गंदी राजनीति करने की बजाय दोनों क्षेत्रों में ‘आप’ की उपलब्धियों की नकल करने का प्रयास करना चाहिए। 

केंद्र द्वारा सिसोदिया का शिकार करने से मुझे ऐसा लगता है कि केंद्रीय शासन इस बात से नाखुश है कि ‘आप’ ने मतदाताओं के मनों पर एक छाप छोड़ी है, विशेषकर गरीब वर्गों के, जिनके बेटे तथा बेटियां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं जो अभी तक केवल सम्पन्न लोगों को उपलब्ध थी। यहां से सीख कर तथा अपनी पार्टी द्वारा शासित राज्यों में अच्छा समाचार फैलाने की बजाय शासक वर्ग ने ‘आप’ के प्रयासों को खारिज करने तथा ‘आप’ के प्रमुख कार्यकारियों को परिदृश्य से हटाने का फैसला किया जिन्होंने यह क्रांतिकारी बदलाव लाया। मेरे लेख का यह उद्देश्य था। मैं निश्चित तौर पर ‘आप’ की राजनीतिक विचारधारा का प्रचार नहीं कर रहा था और न ही राजनीतिक परिदृश्य पर मैं इस पार्टी के लिए कोई प्राथमिकता दर्शा रहा था। 

2024 में मोदी जी को चुनौती देने  के लिए अरविंद केजरीवाल एक जानी-मानी विपक्षी पार्टी के पहले नेता हैं जो मैदान में उतर सकते हैं। उन्होंने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं। ऐसा दिखाई देता है कि ममता दीदी स्थिति को भांप गई हैं। उन्होंने गणतंत्र के उप-राष्ट्रपति के लिए स्पर्धा में तटस्थ रह कर अपनी दूरी बना ली। वह पश्चिम बंगाल में शासन करना जारी रखे हुए हैं। मुझे नहीं लगता कि उनके भतीजे तथा उनकी कैबिनेट के 2 महत्वपूर्ण मंत्रियों में ई.डी. की रुचि के बावजूद वह वहां अपनी पकड़ कमजोर करेंगी। ऐसा दिखाई देता है कि भ्रष्टाचार तथा सत्ता का दुरुपयोग मतदाताओं के लिए मायने नहीं रखता। नेता का करिश्मा तथा बोले गए शब्दों की ताकत अधिक मायने रखती है। 

राहुल गांधी ने ध्रुवीय स्थितियों में कोई रुचि नहीं दिखाई। वह शेखी बघारने तथा गुस्सा दिखाने में ही खुश हैं। उन्होंने यह काफी प्रभावी तरीके से किया। वह उन चीजों के बारे में बात करते हैं जो उन लोगों के लिए मायने रखती हैं जिन्हें वह संबोधित करते हैं। महंगाई, मर रही अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, ये सभी चिंता के मुद्दे हैं। वह इन मुद्दों पर बात करते हैं। लेकिन जब अंतिम बात आती है तो उनमें महत्वाकांक्षा का अभाव सारा खेल खराब कर देता है। कांग्रेस ने धीरे-धीरे ‘आप’ को जमीन खो दी है, पहले दिल्ली में और फिर सीमांत राज्य पंजाब में। क्या ‘आप’ गुजरात, हिमाचल प्रदेश और बाद में हरियाणा में कांग्रेस का स्थान लेगी?  यह एक बड़ा प्रश्र है जिसका उत्तर 2024 में केजरीवाल के भविष्य बारे निर्णय करेगा। 

प्रधानमंत्री पद के लिए एक नया उम्मीदवार उभरा है (यह रिक्ति तभी संभव है यदि भाजपा महिलाओं तथा बच्चों के 11 दुष्कर्मियों/ हत्यारों  को रिहा करने जैसी और गलतियां करती है)। यह उम्मीदवार देश के दक्षिणी हिस्से तेलंगाना से है, धाराप्रवाह हिंदी बोलता है तथा राज्य में अपने अच्छे प्रशासन की उपलब्धियों का प्रचार करता है। यदि वह अन्य दक्षिणी राज्यों का समर्थन प्राप्त कर लेता है तो कुछ गंवाया समय वापस पा सकता है। अन्यथा वह भी स्पर्धा से बाहर है। फिलहाल जाने-पहचाने राजनीतिक दलों से स्पर्धियों में से केजरीवाल सबसे आगे हैं, जब तक कि कोई छुपा रुस्तम परिदृश्य पर नहीं उभर आता या प्रशांत किशोर अपने हैट से कोई खरगोश नहीं निकाल लेते। नीतीश कुमार वह छुपा रुस्तम हो सकते हैं। 

जब भाजपा ने उद्धव ठाकरे को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया तो अन्य संवेदनशील नेता सतर्क हो गए। भाजपा एकमात्र पार्टी है जिसके पास वित्तीय तथा संगठनात्मक रूप से अथाह स्रोत हैं ताकि विपक्ष में असंतुष्ट तत्वों को तोड़ कर अपने पाले में कर सके। बिहार में नीतीश ने यह आंच महसूस की है। उन्होंने परिस्थितियों की गणना करके भांप लिया कि उनकी पार्टी बिहार में गठबंधन सरकार में भाजपा की जूनियर पार्टनर बन रही है और ‘चॉपिंग ब्लॉक’ पर वह अगले व्यक्ति होंगे। उनके द्वारा भाजपा को ठुकराना उस सर्वशक्तिमान पार्टी के लिए एक बड़ा झटका था। इसका मतलब यह हुआ कि 2024 में बिहार की लोकसभा सीटों के लिए एक बड़ा नाटकीय बदलाव देखने को मिलेगा। चूंकि नीतीश ने अपने पूर्ववर्ती सांझीदारों को रि-ग्रुपिंग के लिए बिल्कुल समय नहीं दिया। उससे भी पार्टी को बहुत परेशानी हुई। जब तक कि वह कुछ करते, नुक्सान हो चुका था। 

अब नीतीश जिस तरह से बोल रहे हैं, उनके हाथ में तुरुप का पत्ता है। फिलहाल वह इस बात से इंकार करते हैं कि वह प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार हैं। मगर कोई भी इस बात की भविष्यवाणी नहीं कर सकता कि सितम्बर 2022 तथा मई 2024 के बीच  राजनीति क्या करवट लेती है। नीतीश एक सर्वसम्मत उम्मीदवार के तौर पर उभर सकते हैं। 

केजरीवाल के शारीरिक हाव-भाव फ्लैट हैं। यदि उन्होंने अपनी नजरें 2024 पर नहीं तो 2029 पर केंद्रित कर रखी हैं। ऐसा नहीं लगता कि वह दूसरों को अपनी जमीन देंगे, निश्चित तौर पर राहुल को नहीं। ममता दीदी अप्रत्याशित हैं। वह त्रिपुरा में घुसपैठ कर सकती हैं लेकिन उसके लिए भी अत्यधिक प्रयास की जरूरत होगी। ऐसा नहीं लगता कि तेलंगाना के चंद्रशेखर राव ने दक्षिण में कोई खास प्रगति की है। एकमात्र व्यावहारिक विकल्प अरविंद केजरीवाल हैं। मगर जिस तरह का व्यक्तिवादी व्यवहार उन्होंने दर्शाया है, वह उनके उद्देश्य में मदद नहीं करेगा। अत: इस तरह से विपक्ष किसी तुरुप के पत्ते के सहारे रह जाता है। क्या ये सभी अति महत्वाकांक्षी नेता उनके नीचे एकजुट होंगे? हमें प्रतीक्षा करते हुए देखना होगा।-जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)


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