जहां पैसा वहां जगमग, जहां कड़की वहां अंधेरा

punjabkesari.in Tuesday, Aug 09, 2022 - 04:16 AM (IST)

पिछले दिनों मेरा एक साथी पोस्ट ऑफिस में पोस्टकार्ड लेने गया। पता लगा उनके पास पोस्टकार्ड नहीं थे। अंतर्देशीय पत्र भी स्टॉक में नहीं थे। क्लर्क मजबूर था : ‘‘सर अब तो सारा काम कोरियर कम्पनी वाले करते हैं।’’ सच यह है कि अब डाक तार विभाग इतिहास का टुकड़ा हो गया है। जैसे सरकारी बी.एस.एन.एल. ठप्प पड़ी है। जैसे सरकारी स्कूल और सरकारी अस्पताल अब सिर्फ गरीब परिवारों को पढ़ाई और दवाई का भ्रम प्रदान करने के लिए बच गए हैं। 

अगर सरकार का बस चला तो यही अब बिजली के साथ होने वाला है। सोमवार को सरकार ने धोखे से जिस बिजली संशोधन अधिनियम 2022 को लोकसभा में पेश किया है, वह अगर पास हो गया तो किसानों और गरीबों को बिजली का झटका लगेगा। अगर यह कानून बन गया तो बिजली भी पूरी तरह बाजार का माल हो जाएगा-जहां पैसा वहां जगमग, जहां कड़की वहां अंधेरा। 

इस विधेयक को चुपचाप से लोकसभा में पेश कर देना साफ-साफ धोखाधड़ी थी। बिजली विधेयक का विरोध किसानों के तेरह महीने के संघर्ष की प्रमुख मांगों में से एक था। मोर्चा उठाने के लिए अपील करते वक्त केंद्र सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा को लिखे 9 दिसंबर, 2021 के अपने पत्र में कहा था, ‘‘बिजली बिल में किसान पर असर डालने वाले प्रावधानों पर पहले सभी स्टेक होल्डर्स/संयुक्त किसान मोर्चा से चर्चा होगी। मोर्चा से चर्चा होने के बाद ही बिल संसद में पेश किया जाएगा।’’

पिछले नौ महीनों में किसान मोर्चा से कोई चर्चा नहीं हुई है। न ही इस विषय पर बड़े स्टेक होल्डर बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों की राष्ट्रीय समन्वय समिति (एन.सी.सी.ओ.ई.ई.ई.) से सरकार ने कोई बातचीत की। लेकिन यह बताए जाने के बावजूद, शोरगुल के बीच, संसद में इस बिल को पेश कर दिया गया। गनीमत यह है कि इसे हाथों-हाथ पास करने की बजाय विचार के लिए सिलैक्ट कमेटी को भेज दिया गया है। ‘‘विद्युत (संशोधन) अधिनियम 2022’’ नामक इस बिल का असली काम है बिजली के वितरण के धंधे को प्राइवेट कम्पनियों के हाथ में उनकी मनमाफिक शर्तों के मुताबिक सौंपना। 

बिजली के व्यापार के कुल तीन अंग हैं : कोयला, पानी या सौर ऊर्जा आदि से बिजली का उत्पादन (जैनरेशन), हाईटैंशन टॉवर से बिजली का संचार (ट्रांसमिशन) और घरेलू या औद्योगिक ग्राहकों तक बिजली का वितरण (डिस्ट्रीब्यूशन)। बिजली के उत्पादन के काम में प्राइवेट कम्पनियों को 2003 से इजाजत मिली हुई है। अब तक आधा उत्पादन उनके हाथ में आ चुका है। संचार के काम में प्राइवेट कम्पनियों को दिलचस्पी नहीं है। अब कई साल से बड़ी कम्पनियां बिजली वितरण के धंधे पर नजर गड़ाए बैठी हैं लेकिन उनके रास्ते में कई अड़चनें हैं। 

बिजली राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में है जो अक्सर जनता के दबाव में गरीब, गांव और किसान को सस्ती बिजली देने पर मजबूर होती हैं। राज्य सरकारों के बिजली बोर्ड बिजली उत्पादन और संचार में शामिल हैं और वे राज्य सरकार के आदेश पर काम करते हैं। सरकार की मजबूरी है कि उसे गांव-शहर, गरीब-अमीर, कृषि-उद्योग सबको बिजली देनी है। प्राइवेट कम्पनियों को बिजली के बिजनैस की मलाई तो चाहिए, लेकिन बिना झंझट के। 

प्रस्तावित कानून से केंद्र सरकार बिजली वितरण में प्राइवेट कम्पनियों के घुसने का रास्ता साफ कर रही है। अब सरकारी बिजली बोर्डों के लिए अनिवार्य होगा कि वे प्राइवेट कम्पनी को भी उसी दर से बिजली सप्लाई करें जो वे अपने लिए करते हैं। कम्पनियों को वितरण की अनुमति तो मिलेगी ही, साथ  में उन्हें गरीबों, किसानों और गांवों को सस्ती बिजली देने के झंझट से मुक्ति मिल जाएगी। 

राज्य सरकारों पर शर्त लग जाएगी कि वे अगर सस्ती बिजली देना चाहें तो उसके लिए अलग से फंड बनाकर गारंटी देनी पड़ेगी। राज्य सरकारें अपनी जनता के दबाव में न आ जाएं इसलिए नियम कानून बनाने का काम केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों की देखरेख में होगा। इस कानून के पक्ष में सरकारी तर्क यह है कि सरकारी बिजली बोर्ड और कम्पनियां घाटे में चल रही हैं। राज्य सरकारें इस बोझ को और नहीं झेल सकतीं। सरकारी कम्पनियां वितरण में बिजली की चोरी और बर्बादी को कम नहीं कर पा रही हैं। घरों में सस्ती बिजली देने के लिए उद्योगों को महंगी बिजली देने से अर्थव्यवस्था का नुक्सान होता है। प्राइवेट कम्पनियों के आने से उपभोक्ता को एक से ज्यादा विकल्प मिलेंगे, वह अपनी पसंद की कम्पनी से बिजली खरीद सकेगा। 

लेकिन पूरा सच एक दूसरी ही तस्वीर पेश करता है। सच यह है कि प्राइवेट कम्पनियों को पूरी जनता को बिजली देने में कोई दिलचस्पी नहीं है। वे या तो उद्योगों को बिजली सप्लाई करेंगी या फिर शहरी अमीर कालोनियों को। जिनकी जेब गर्म है उनकी बिजली की सप्लाई अच्छी और सस्ती हो जाएगी। बाकी आम जनता को बिजली सप्लाई करने की जिम्मेदारी सरकारी बिजली बोर्ड के सिर पड़ेगी। 

बिजली की खरीद और बंटवारा राज्य सरकार का काम है। जब खर्चा राज्य सरकार को करना है तो उसके नियम केंद्र सरकार बनाए यह उचित नहीं है। इसीलिए तेलंगाना, पंजाब और दिल्ली के मुख्यमंत्रियों ने इस कानून पर आपत्ति दर्ज की है। आने वाले दिनों में इस बिल के खिलाफ प्रतिरोध के स्वर और गहरे होने की संभावना है। आशा करनी चाहिए कि राज्य सरकारें अंधाधुंध निजीकरण की बजाय सरकारी बिजली कम्पनियों के काम को बेहतर बनाने, बिजली की चोरी रोकने और बिजली बोर्ड के घाटे को कम करने जैसे कदम उठाकर आम आदमी को सस्ती बिजली की सप्लाई मुहैया करवाने की अपनी जिम्मेदारी पूरी करेंगी।-योगेन्द्र यादव
 


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