गिलानी की मौत के बाद हुर्रियत के लिए कश्मीर अब कहां है

punjabkesari.in Saturday, Sep 04, 2021 - 03:28 AM (IST)

कश्मीर अब कहां है? अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद तथा हुर्रियत कांफ्रैंस तथा अलगाववादियों की तरफ केंद्र सरकार द्वारा कारोबारी जैसे अपनाए गए व्यवहार के बाद सब कुछ ठीकठाक चल रहा है। पाक समर्थित कट्टरवादी तथा अलगाववादी वरिष्ठ नेता सैयद अली शाह गिलानी की 92 वर्ष की आयु में मौत हो गई जोकि जम्मू-कश्मीर में एक अनिश्चितताओं के दौर की तरफ इशारा करती है। गिलानी कश्मीर के पाकिस्तान के साथ विलय के कट्टर समर्थक थे। इस पहलू पर अभी हम इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि गिलानी के जाने का उनके समर्थकों के ऊपर क्या प्रभाव पड़ेगा? 

भारत की राष्ट्रीय जांच एजैंसी एन.आई.ए. ने कश्मीर से 18 से ज्यादा अलगाववादी नेता गिरफ्तार किए हैं जिसमें हुर्रियत के वे नेता भी शामिल हैं जिन्होंने पाकिस्तान से घाटी में उपद्रव फैलाने के लिए कथित तौर पर फंड हासिल किए थे। इसमें कोई दोराय नहीं कि पाकिस्तान सरकार ने गिलानी की मौत पर आधिकारिक शोक घोषित किया है तथा अपने राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुकाने की घोषणा की है। ये सब बातें दर्शाती हैं कि गिलानी के पाक के साथ बेहद सुदृढ़ रिश्ते थे जिन्हें हम श्रीनगर और नई दिल्ली में स्वीकार नहीं कर सकते। 

अब तालिबान के परिदृश्य पर फिर से उभरने को देखते हुए नई दिल्ली को अफगान क्षेत्र में नई बातों पर कड़ी निगाह रखनी होगी। भारत को कश्मीर में इस्लामाबाद की लम्बे समय से चले आ रहे छद्म युद्ध पर भी ध्यान रखना होगा। नई दिल्ली कभी भी अलगाववादियों को जम्मू-कश्मीर में संचालित होते नहीं देख सकती। गिलानी कश्मीर में कड़े रुख का प्रतिनिधित्व करते थे। मीर वायज उमर फारूक हुर्रियत कांफ्रैंस के उदारवादी गुट का प्रतिनिधित्व करते हैं। वास्तव में 2 दशकों से हुर्रियत कांफ्रैंस घाटी में अलगाववादी गतिविधियों को अंजाम दे रही है। मगर उसे ज्यादा सफलता हासिल नहीं हो सकी। ऐसा कहा जाता है कि लश्कर-ए-तोयबा (एल.ई.टी.) तथा जैश-ए-मोहम्मद (जे.ई.एम.) जैसे प्रतिबंधित आतंकी संगठन जम्मू-कश्मीर में अपनी आतंकी गतिविधियों को चलाने के लिए एक खिलौने का कार्य करते रहे हैं। आतंक के खिलाफ केंद्र सरकार की बर्दाश्त करने की शून्य वाली नीति के सामने यह सब कुछ आसान नहीं है। 

जम्मू-कश्मीर में जटिल हालातों के मध्य हमें कुछ मूल तथ्यों को समझना चाहिए। पहला यह कि हुर्रियत कांफ्रैंस के वर्तमान में दो गुट हैं। कट्टरवादी ग्रुप का नेतृत्व सैयद अली शाह गिलानी करते रहे हैं। जबकि उदारवादी गुट का नेतृत्व मीरवायज उमर फारूक द्वारा किया जाता है। यासिन मलिक जैसे  गैर-हुर्रियत नेता उदारवादी गुट के तहत कार्य करते हैं। दूसरी बात यह है कि हुर्रियत कांफ्रैंस अब 26 दलों का एक संयुक्त फ्रंट नहीं रही। अब यह कई धड़ों में बंट चुकी है। सितम्बर 2003 में हुर्रियत के कम से कम 12 संघटक बाहर हो गए। 

स्मरण रहे कि 1993 से 1996 तक कश्मीर में हुर्रियत एक प्रभावशाली बल रही है। 1996 के विधानसभा चुनावों के दौरान नैशनल कांफ्रैंस से इसके अलग हो जाने के बाद इसका प्रभाव कम होता गया। हालांकि हुर्रियत इन सब बातों के बावजूद पाकिस्तान के समर्थन के साथ अपने आप को कायम रखने में कामयाब रही। हुर्रियत नेता यह महसूस करना भूल गए कि पाकिस्तान द्वारा पीठ ठोकने से वह देश में कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। इसलिए इसने अपने भीतरी स्तर पर डगमगाना शुरू कर दिया। हालांकि हुर्रियत के कट्टर नेताओं ने अपने आपको स्थापित करने के लिए पूरी कोशिश की। हालांकि उनकी विचारधाराएं तथा कार्यशैली भविष्य की रणनीति को लेकर अलग-अलग रहीं। नई दिल्ली के साथ संवाद तथा आतंकवाद की भूमिका को लेकर भी उनकी भविष्य की नीतियां अलग-अलग रहीं। 

उदारवादी मीरवायज इस पक्ष में थे कि केंद्र सरकार के साथ संवाद किया जाए। वहीं गिलानी कैंप खुलेआम इसका विरोध करता है और कश्मीर को एक विवादास्पद क्षेत्र मानता रहा। नई दिल्ली के विचारों के साथ हुर्रियत ने अपने सुर में सुर नहीं मिलाया। इसका नतीजा यह हुआ कि हुर्रियत के विभिन्न ग्रुपों के बीच विवादास्पद मुद्दों को लेकर मतभेद तथा असमंजस की स्थिति व्याप्त रही। केंद्र सरकार ने इससे आगे बढ़ते हुए 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को भी रद्द कर दिया। जिससे कश्मीर में पूरा घटनाक्रम बदल गया। ऐसी स्थिति में हुर्रियत उधेड़बुन में लगी रही। केंद्र ने भी एक स्पष्ट संदेश दिया था कि अलगाव के लिए किसी भी तरह के आतंकी आंदोलन का समर्थन हरगिज बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। केंद्रीय नेतृत्व ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि अलगाववादी कदम कतई बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे और शांति भंग करने वाले लोग बिना किसी दया के बाहर कर दिए जाएंगे। 

यहां यह भी उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि हुर्रियत नेताओं द्वारा युवा कश्मीरियों को हिंसक कार्रवाइयों में शामिल होने के लिए प्रेरित करना आलोचना का कारण बना। उल्लेखनीय है कि गिलानी का बड़ा बेटा नईम गिलानी तथा उसकी पत्नी किसी समय रावलपिंडी में मैडीकल प्रैक्टिशनर रहे हैं। गिलानी का दूसरा बेटा जहूर गिलानी अपने अन्य पारिवारिक सदस्यों के साथ दिल्ली में निवास करता है, वहीं गिलानी का पोता इजहार गिलानी भारत में एक प्राइवेट एयरलाइनर का क्रू सदस्य है। उनकी बेटी फरहत गिलानी जैद्दा में एक टीचर है। आसिया अंद्राबी का बड़ा बेटा मोहम्मद बिन कासिम अपनी बहन के साथ मलेशिया में रहता है। आसिया के ज्यादातर रिश्तेदार पाकिस्तान, सऊदी अरब, इंगलैंड तथा मलेशिया में बसे हुए हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि अनेकों कश्मीरी नेता गिलानी को एक ‘डबल एजैंट’ तथा पाकिस्तान की आई.एस.आई. का पिट्ठू बुलाते रहे हैं।  ऐसी स्थिति को देखते हुए गिलानी की मौत के बाद हुर्रियत कांफ्रैंस को अब कश्मीर में कोई रास्ता दिखाई नहीं देता। यकीनन जम्मू-कश्मीर को भारत में तरक्की तथा तीव्र आॢथक वृद्धि के लिए एक नया रास्ता अपनाना होगा।-हरि जयसिंह 
 


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