कहां ‘यू.के.पुलिस’ और कहां ‘दिल्ली पुलिस’

punjabkesari.in Sunday, Sep 27, 2020 - 01:36 AM (IST)

मैं इस किस्म का व्यक्ति नहीं जिसका पुलिस से सामना हुआ हो। ऐसा मेरे साथ एक बार ही हुआ है। उस समय मैं कैम्ब्रिज में अंडरग्रैजुएट था और मेरी आयु मात्र 21 वर्ष की थी। उस मौके पर मेरे साथ ब्रिटिश पुलिस ने कैसे व्यवहार किया तथा आज दिल्ली पुलिस कैसे व्यवहार करती है इन दोनों के बीच मैं फर्क बताना चाहता हूं। 

कुछ दोस्तों के संग मैं ऑक्सफोर्ड यूनियन में पाकिस्तान की दिवंगत प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की अध्यक्षीय बहस को सुनकर लौट रहा था। हमने एक गांव के रास्ते से जाने का मन बनाया जहां पर अंधेरा तथा एकांत था। खाना इधर-उधर बिखरा हुआ था और हम जोर-जोर से गीत गा रहे थे क्योंकि हमें 2 बजे से पहले ही वापस पहुंचना था। इतने में एक पुलिस की कार अपनी बत्तियों को जगाते-बुझाते हुए हमारे पास आकर खड़ी हो गई। पुलिस अधिकारी बोले, ‘‘यहीं रुको।’’ 

हम चारों ही डर के मारे गिरने लगे और पुलिस के आगे माफी मांगने लगे क्योंकि उस समय हमारी गलती थी  क्योंकि हम ओवर स्पीङ्क्षडग कर रहे थे। मुझे पूरा यकीन था कि पुलिस हमें गिरफ्तार कर ले जाएगी। हालांकि पुलिस अधिकारी दयालु तथा हमारी बात को समझने वाला था। वह बोला, ‘‘जैंटलमैन निश्चित तौर पर आपकी शाम अच्छी गुजरी होगी मगर इस समय ऐसी मूर्खतापूर्ण बात कर आप उस शाम को खराब क्यों करना चाहते हैं? गाड़ी धीरे चलाएं और अपने घर की ओर लौट जाएं। आपको एक अच्छी नींद की जरूरत है।’’
पुलिस अधिकारी को पता था कि हम युवा, हर्ष भरे, मूर्ख और निश्चित तौर पर अपने कार्य में गलत थे मगर पुलिस अधिकारी की आंखें हमें दंड देने की बजाय आदेश देने जैसी लग रही थीं। ऐसा बर्ताव सभी ब्रिटिश पुलिस कर्मियों का होता है। यही वजह है कि उनको प्यार से ‘बॉबीज’ कह कर बुलाते हैं। 

अब बात करते हैं दिल्ली पुलिस की जो दिल्ली में फरवरी में हुए दंगों की जांच कर रही है। वरिष्ठ अधिकारियों ने पुलिस दल को यह सचेत किया था कि वह हिंदू युवकों को नुक्सान न पहुंचाए और न ही उनका अपमान करें। मगर ऐसा बर्ताव या ऐसी ङ्क्षचता युवा मुसलमानों के प्रति नहीं देखी गई। हालांकि दंगों में मारे गए 53 लोगों में से 38 मुस्लिम समुदाय से संबंधित थे। चार्जशीट किए गए 15 लोगों में से 13 इसी धर्म को मानने वाले थे। हालांकि सी.ए.ए. तथा एन.आर.सी. के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले छात्रों पर आरोप है कि वह सत्ताधारी भाजपा के षड्यंत्रकारी सदस्य हैं। यदि उन्होंने ङ्क्षहसा नहीं फैलाई तो स्पष्ट तौर पर नफरत को तो उन्होंने बढ़ावा दिया ही है। सीता राम येचुरी जैसे विपक्षी नेता पर आरोप है कि उन्होंने भीड़ को उकसाया तथा उसको जुटाया। एक अपराधी ने उनके बारे में ऐसा ही कहा। मगर बयान विकृत अंग्रेजी में मौजूद हैं। 

दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्रर ने पूरे बल तथा सार्वजनिक तौर पर उनकी आलोचना की। इससे पहले कि मैं आपको यह याद दिलाऊं कि उन्होंने क्या कहा, याद रहे अजय राज शर्मा की नियुक्ति अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा की गई थी। 28 फरवरी को मुझे दिए एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा कि  मुझे चिंता है कि पुलिस साम्प्रदायिक बन गई है। दंगों के दौरान दिखाई देने वाले वीडियो में उनका व्यवहार स्पष्ट तौर पर ऐसा ही दिखता है जोकि एक चिंताजनक बात है। लगता है पुलिस भाजपा से सहमी हुई है तथा सरकार द्वारा धमकाई गई है। यहां पर मुख्य परेशानी व्यावसायिकता की कमी होना है। उन्होंने ईमानदारी से यह कबूल किया। पुलिस के नेतृत्व में नैतिक चरित्र की कमी दिखी। 

मैंने शर्मा से पूछा कि उन्होंने अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा तथा कपिल मिश्रा के बारे में कैसा व्यवहार किया होता यदि वह उस समय पुलिस कमिश्रर होते। उनका उत्तर स्पष्ट होने के साथ-साथ छोटा भी था। वह बोले, ‘‘मैं उनको गिरफ्तार कर चुका होता।’’ उसके बाद मैंने पूछा कि डिप्टी कमिश्रर वेद प्रकाश सूर्य जोकि कपिल मिश्रा के साथ खड़े थे जब मिश्रा ने भीड़ को धमकाया था उनसे वह कैसे निपटते। उन्होंने कहा कि वह तत्काल ही स्पष्टीकरण की मांग करते। यदि वह तसल्लीबख्श न होता तो उन्हें तत्काल ही बर्खास्त कर दिया जाता।
दिलचस्प बात यह है कि यह शर्मा ही थे जिन्होंने भारतीय पुलिस कर्मियों की तुलना उनके ब्रिटिश समकक्ष से की। मैं हंस दिया। जब उन्होंने कहा कि ब्रिटिश पुलिस कर्मियों को बॉबीज कहा जाता है क्योंकि लोग उन पर विश्वास करते हैं, वहीं भारतीय शंका तथा भय को उत्पन्न करते हैं। 

भारत में हमारे लिए यह मानना बेहद मुश्किल है कि पुलिस कर्मियों को भी पसंद किया जा सकता है। हमारा अनुभव यह स्वीकार करने के लिए हमको मना करता है। हालांकि थोड़ी-सी जागरूकता से चीजों को बदला जा सकता है। शर्मा ने मुझसे कहा कि इस मामले में हमें पहला कदम यह उठाना होगा कि पुलिस को राजनीतिक दखलअंदाजी से अलग-थलग कर दिया जाए मगर ऐसा है मुश्किल। कांस्टेबल, जो स्थानीय पुलिस थानों में लोगों से संबंध स्थापित करने का पहला केंद्र बिंदू होते हैं, उन्हें दोस्ताना रवैये के बारे में सिखाया जाए। इसके अलावा उन्हें प्रभावी तथा दयालु दिखना चाहिए। क्या दिल्ली पुलिस या सरकार में कोई शर्मा की बात सुनने को तैयार है?-करण थापर
 


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