जब चर्चा छिड़ी मनजीत सिंह जी.के. की ‘वापसी’ की

punjabkesari.in Thursday, Feb 27, 2020 - 01:16 AM (IST)

बीते दिनों स्वर्गीय भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री अरुण जेतली के बेटे रोहन जेतली के शादी समारोह में शामिल होने के लिए जब शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल समारोह स्थल पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष मनजीत सिंह जी.के. बाहर निकल रहे हैं। उस अवसर पर मौजूद सज्जन बताते हैं कि सुखबीर सिंह बादल ने जैसे ही सामने से मनजीत सिंह जी.के. को आते हुए देखा तो उन्होंने झट से आगे बढ़ गर्मजोशी से जी.के. को अपनी बांहों में जकड़ लिया। जवाब में मनजीत सिंह जी.के. को भी ‘मजबूरन’ ऐसा ही करना पड़ा। बस फिर क्या था कि देखने वालों ने झट से मनजीत सिंह की शिरोमणि अकाली दल (बादल) में वापसी की अटकलें लगानी शुरू कर दीं। होते-होते यह बात दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष मनजिन्द्र सिंह सिरसा तक भी जा पहुंची। कहते हैं कि स. सिरसा तक यह बात पहुंचने की देर थी कि उनके पांव के नीचे से जमीन खिसकने लगी। 

कहने वाले तो कहते हैं कि गुरुद्वारा कमेटी में से जी.के. की सदस्यता समाप्त किया जाना इसी बात का परिणाम था क्योंकि स. सिरसा को लगने लगा था कि यदि जी.के. की दल में वापसी होती है तो सुखबीर सिंह बादल के कहने पर उन्हें जी.के. के लिए गुरुद्वारा कमेटी का अध्यक्ष पद खाली करने पर मजबूर होना पड़ेगा। अत: स. सिरसा ने तुरत-फुरत इधर-उधर से कथित दस्तावेज इकट्ठे कर मनजीत सिंह जी.के. पर करोड़ों रुपए के घोटाले का आरोप लगाया और कमेटी की महासभा की बैठक बुला, कई सदस्यों के विरोध के बावजूद मनजीत सिंह जी.के. की सदस्यता समाप्त करने का प्रस्ताव पास करवा, यह मान लिया कि ‘न रहेगा बांस तो न बजेगी बांसुरी’, मतलब यह कि जब जी.के. की गुरुद्वारा कमेटी में सदस्यता ही नहीं रहेगी तो उसका अध्यक्ष पद पर दावा कैसे हो सकेगा। 

चर्चा का कारण
बताया जाता है कि सुखबीर सिंह बादल और जी.के. के एक-दूसरे से गले मिलने की घटना से जी.के. की शिरोमणि अकाली दल (बादल) में वापसी की चर्चा छिडऩे का कारण यह था कि शिरोमणि अकाली दल (बादल) के वर्तमान संरक्षक प्रकाश सिंह बादल अपने अध्यक्षता काल के दौरान जब भी कभी अपने किसी साथी का कद बढ़ते हुए देखते तो झट से उसे अपमानित कर दल से बाहर का रास्ता दिखा देते। धीरे-धीरे उसके साथियों को तोड़ अपनी ओर खींच, उसे कमजोर करना शुरू कर देते। जब देखते कि वह इतना कमजोर हो गया है कि उनके विरुद्ध आवाज तक नहीं निकाल सकता तो वह झट से उसके घर पहुंच बड़ी गर्मजोशी से उसे अपनी बाहों में जकड़ते और उसकी दल में वापसी का ‘फतवा’ दे देते। 

जी.के. की प्रतिक्रिया
इन अटकलों के बीच राजनीतिज्ञों ने सवाल खड़े करने शुरू कर दिए कि क्या मनजीत सिंह जी.के. सुखबीर सिंह बादल की ‘जफ्फी दे निघ’ में अपने उस अपमान को भुला देंगे, जिसे लेकर उन्हें न केवल गुरुद्वारा कमेटी और प्रदेश अकाली दल के अध्यक्ष पद से हटने पर मजबूर किया गया, अपितु दल से भी बाहर कर दिया गया? बताया गया है कि जब इन अटकलों के बीच उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए उनके ही कुछ मित्रों ने उनसे सम्पर्क किया तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में इन अटकलों का खंडन करते हुए कहा कि वह बादल अकाली दल में वापसी कर फिर से आत्मघात करने के लिए कैसे तैयार हो सकते हैं? 

बड़ा भाई बनाम छोटा भाई
इस कॉलम के पाठकों को याद होगा कि कुछ ही समय पूर्व पंजाब में बदल रहे राजनीतिक समीकरणों का आकलन करते हुए इन कॉलमों में भविष्यवाणी की गई थी कि तीन दशकों से अकाली-भाजपा गठजोड़ में बड़े भाई की भूमिका निभाते चले आ रहे शिरमणि अकाली दल (बादल) को यदि अगले पंजाब विधानसभा चुनावों के समय छोटे भाई की भूमिका निभाने को विवश हो जाना पड़े तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। उस समय की गई इस भविष्यवाणी की पुष्टि भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मदन मोहन मित्तल ने इन्हीं दिनों यह कहकर कर दी कि अगामी पंजाब विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी (भाजपा), पंजाब विधानसभा की 59 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेगी और भागीदार शिरोमणि अकाली दल के लिए 58 सीटें छोड़ेगी। जबकि अभी तक अकाली-भाजपा गठजोड़ की मान्यताओं के चलते भाजपा की ओर से 23 सीटों पर और बादल अकाली दल की ओर से बाकी (94) सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए जाते चले आ रहे हैं। 

बताया जाता है कि श्री मित्तल ने यह दावा भी किया है कि प्रदेश भाजपा के इस फैसले को भाजपा उच्च कमान की स्वीकृति मिल चुकी है। उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा कि इस बार पंजाब का मुख्यमंत्री, गठजोड़ (भाजपा-अकाली) की उस पार्टी का होगा जिसकी सीटें दूसरे भागीदार से अधिक होंगी अर्थात बीते समय से अकाली-भाजपा गठजोड़ के तहत बहुमत मिलने पर पंजाब के मुख्यमंत्री के पद पर शिरोमणि अकाली दल (बादल) का जो दावा बना चला आ रहा था, वह समाप्त हो जाएगा। यदि ऐसा होता है तो शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल, जो यह मान कर चले आ रहे हैं कि आने वाले पंजाब विधानसभा के चुनावों में गठजोड़ को बहुमत मिलने पर वह ही मुख्यमंत्री बनेंगे, वह अब निश्चित नहीं। अब तो उन्हें मुख्यमंत्री पद उसी स्थिति में ही मिल पाएगा, यदि उनका दल विधानसभा चुनावों में भागीदार पार्टी, भाजपा से अधिक सीटों पर अपनी जीत दर्ज करवाने में सफल होता है। 

...और अंत में
इन्हीं दिनों एक विद्वान कथाकार के प्रवचन सुनने का अवसर मिला। वह कह रहे थे कि यदि किसी मुसलमान को मक्के-काबे और मस्जिद में खुदा मिलता दिखाई देता है तो उसे मक्के-काबे और मस्जिद में जा इबादत करने का पूरा अधिकार है, परन्तु उसे यह अधिकार नहीं कि वह मंदिर तोडऩे लग जाए। इसी प्रकार यदि किसी हिंदू को काशी-मथुरा-हरिद्वार के मंदिरों में परमात्मा मिलता दिखाई देता है तो उसे भी यह पूरा अधिकार है कि वह वहां जा पूजा-अर्चना करे, परन्तु उसे यह अधिकार नहीं कि वह मस्जिदों को तोडऩे चल पड़े।-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’
           


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News