‘ऐसा क्या है जो पुरुषों को शाकाहारी बनने से रोकता है’

punjabkesari.in Tuesday, Feb 23, 2021 - 02:54 AM (IST)

जब मैं सेना के छावनी क्षेत्रों में बड़ी हो रही थी, तो हर दिन मांस हमारी खाने की मेज पर होता था। यह मान लिया गया कि सेना के पुरुष मांस खाते हैं क्योंकि वे ‘असली’ पुरुष थे। मेरे दादाजी के घर में, सभी महिलाएं शाकाहारी थीं लेकिन दादाजी भोजन में दोनों समय मांस खाया करते थे और शाकाहारी महिलाएं उनके लिए इसे बनाती थीं। जब मैं शाकाहारी बन गई, तो मुझे कई पुरुषों से यह सुनना पड़ा कि वे ‘घास-फूस’ से कैसे बचते हैं। मैंने कभी किसी महिला से यह बकवास नहीं सुनी है।

जयपुर की यात्रा पर, मैंने सेबी के पूर्व प्रमुख और जयपुर फुट आंदोलन के संस्थापक डा. मेहता के साथ दोपहर का भोजन किया। जब मैंने कढ़ी चखी तो मैं बुरी तरह से चौंक गई। इसका स्वाद मांस जैसा था। मेरे मेजबान ने पकवान की उत्पत्ति और उन्होंने इसे मेरे लिए विशेष रूप से क्यों तैयार किया के बारे में बताया। दो शताब्दी पहले, एक ऋषि ने राजस्थान के शाही परिवारों की महिलाओं को शाकाहारी बना दिया। लेकिन चूंकि पुरुष लोग शिकार, लड़ाई और मांस खाने के बारे में अड़े थे, महिलाआें ने चुपके से गेहूं और घी से एक भोजन बनाया, जिसका स्वाद बिल्कुल मांस की तरह था। एकमात्र समस्या यह है कि इसे तैयार करने में घंटों लगते हैं इसलिए यह अब बहुत दुर्लभ हो गया है। 

भोजन और लिंग को एक-दूसरे के साथ मिलाया जाता रहा है और यह जारी रहा है। यह ‘आप जो खाते हैं वही है’ के मुकाबले ‘आप वही खाते हैं, जो आप हैं’ अधिक है। महिलाआें से दयालु और सदाचारी होने की उम्मीद की जाती है, इसलिए वेगन और शाकाहार को स्त्री के रूप में देखा जाता है। पुरुषों को मजबूत और कठोर के रूप में परिभाषित किया गया है इसलिए मांस खाना मर्दाना है।

हर कोई जानता है कि मांस खाना स्वास्थ्य और मानवता, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और जानवरों के लिए बुरा है। चल रही कोविड वैश्विक महामारी उपरोक्त सभी का एक अच्छा अनुस्मारक है और मांस खाने में निश्चित रूप से कमी आई है। लेकिन तर्कसंगत रूप से इसे समाप्त होना चाहिए था। परेशानी यह है कि केवल शाकाहारी भोजन के लाभों के बारे में जानकारी आधारित अपील करने से प्राथमिक कारण की अनदेखी होती है कि पुरुष मांस क्यों खाते हैं : यह उन्हें ‘असली’ पुरुषों की तरह महसूस कराता है। और ‘असली’ पुरुष जो चाहें, जब चाहें, और जहां चाहें, वह खाने के हकदार हैं। ऐसे परिणामों पर लानत है।

‘शिकारी’ के रूप में प्रागैतिहासिक मानव की अंतिम विरासत मांस की खपत है। आदमी आज प्लास्टिक के खिलौने बेचने वाला एक आलसी, तोंद वाला दुकानदार हो सकता है और मांस सस्ता, सुपरमार्कीट सैनीटाइज्ड स्लैब में बेचा जा रहा होगा, लेकिन अपने दिमाग में, वह परम पुरुष है जो अपने कांटे को मोटी स्टिक में घुसा कर अपनी मर्दानगी साबित करता है। यह विचार इतना अधिक गहरा बैठा हुआ है कि हवाई विश्वविद्यालय के शोध के अनुसार, पुरुष अक्सर उन स्थितियों में अधिक मांस खाते हैं जहां उन्हें लगता है कि उनकी मर्दानगी खतरे में है। यही कारण है कि, जब तक मैंने इसे रोका नहीं, तब तक जीवित जानवरों को विमान से सेना के सीमावर्ती क्षेत्रों में गिराया जाता था ताकि उन्हें ताजा मांस मिल सके। तो मांस खाने को अभी भी मर्दानगी के प्रतीक के रूप में क्यों देखा जाता है? 

अपनी किताब, द सैक्सुअल पॉलिटिक्स ऑफ मीट में कैरोल एडम्स बताती है कि कैसे मीडिया ने बिक्री को बढ़ावा देने के लिए मर्दानगी के संकेत के रूप में मांस की मार्कीटिंग की है। हम सभी ने उस विचार को बेचने वाले अत्यधिक यौन विज्ञापनों को देखा है। चतुर मार्कीटिंग के अलावा, भ्रामक चिकित्सा सिद्धांत मांस पर प्रोटीन के प्राथमिक स्रोत के रूप में बल देते हैं, जो ताकत से जुड़ा हुआ है, जिसे मर्दाना के रूप में देखा जाता है। 

यह गलत धारणा भी है कि मर्दानगी के लिए जोखिम लेने (खतरनाक ड्राइविंग, अत्यधिक शराब पीने) की आवश्यकता होती है इसलिए अस्वास्थ्यकर भोजन और मर्दानगी के बीच संबंध है : यदि आप एक वास्तविक व्यक्ति हैं, तो आपको अपने स्वास्थ्य के बारे में चिंतित नहीं होना चाहिए। कई अध्ययनों में पाया गया है कि अधिक भोजन और अस्वास्थ्यकर भोजन को अधिक मर्दाना माना जाता है, जबकि स्वस्थ भोजन और कम हिस्से को अधिक जनाना माना जाता है। 

ऐसा क्या है जो पुरुषों को शाकाहारी बनने से रोकता है? सामाजिक चिंता। विरोधाभासी रूप से, ये तथाकथित ‘असली पुरुष’ वास्तव में स्त्री जैसा घोषित होने के भय से मांस छोडऩे से डरते हैं। पुरुषों के लिए किए गए एक ट्विटर पोल में, 45 प्रतिशत उत्तरदाताआें ने एक वेगन भोजन को अपनाने के लिए अपनी सबसे बड़ी बाधा की सूचना दी, जो सामाजिक कलंक था, ‘बाहरी दुनिया में सीमित विकल्पों के साथ बीटा पुरुष’ कहे जाने के डर, जिनमें ‘काफी कम टेस्टोस्टेरोन का स्तर’, ‘जीव जो मांस नहीं खाते हैं, वे पुरुष नहीं तुच्छ जीव हैं’ ‘भोले-भाले, महिलाआें द्वारा नियंत्रित, जिनके पास महिलाआें जैसी विशेषताएं हैं’, ऐसे लोग जो ‘शिकार करने और उसे एकत्र करने में सक्षम नहीं हैं’ और ‘सोयाबय, कम टेस्टोस्टेरोन वाले फेमिनिस्ट’ आदि कहे जाने का भय। अच्छी खबर यह है कि अब एक बढ़ती हुई नई संवेदनशीलता है जो इन पुरानी रूढिय़ों को दृढ़ता से चुनौती देती है। 

बेहतर शिक्षा के साथ पुरुषत्व की अधिक प्रामाणिक समझ पैदा हो रही है। एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि जिन पुरुषों की शिक्षा अधिक थी, वे आम तौर पर कम मांस खाते थे। जिन लोगों ने मर्दानगी के नए या अधिक प्रगतिशील विचारों को अपनाया, उनका मांस से कम लगाव, मांस की खपत कम करने की अधिक इच्छा और शाकाहारियों के प्रति अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ सकारात्मक संबंध थे।-मेनका गांधी
 


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