शाबाश केरल  ‘कमाल’ कर दिया

punjabkesari.in Monday, Apr 13, 2020 - 04:18 AM (IST)

कोरोना वायरस का भारत में सबसे पहला मामला 30 जनवरी 2020 को केरल में पाया गया था। तब से आज तक कोरोना के कारण केरल में केवल 2 मौतें हुई हैं। इस दौरान 1.5 लाख लोगों की टेस्टिंग हो चुकी है, 7447 लोगों में संक्रमण पाया गया तथा 643 लोग इलाज के बाद ठीक होकर चले गए। 

जहां भारत के मीडिया का एक बड़ा हिस्सा कोरोना को लेकर हड़बड़ाहट में रात-दिन साम्प्रदायिक जहर उगल रहा है, वहीं दुनिया भर के मीडिया में कोरोना प्रबंधन को लेकर केरल सरकार द्वारा समय रहते उठाए गए प्रभावी कदमों की जमकर तारीफ हो रही है। विशेषकर केरल की स्वास्थ्य मंत्री सुश्री शैलजा टीचर की, जो बिना डरे रात-दिन इस महामारी से लडऩे के लिए सड़कों, घरों, अस्पतालों में प्रभावशाली इंतजाम में जुटी रही हैं। 

अगर पूरे भारत की दृष्टि से देखा जाए तो केरल भारत का अकेला ऐसा राज्य है जिसके सामने कोरोना से लडऩे की चुनौती सबसे ज्यादा थी। इसके तीन कारण प्रमुख हैं। पहला, भारत में सबसे ज्यादा विदेशी पर्यटक केरल में ही आते हैं और लम्बे समय तक वहां छुट्टियां मनाते हैं। चूंकि कोरोना विदेश से आने वाले लोगों के माध्यम से आया है इसलिए इसका सबसे बड़ा खतरा केरल को था। 

दूसरा, केरल का शायद ही कोई परिवार हो जिसका कोई न कोई सदस्य विदेशों में काम न करता हो और उसका लगातार अपने घर आना-जाना न हो। केरल की 17.5 फीसदी आबादी विदेशों से रहकर आई है इसलिए इस बीमारी का केरल में फैलने का खतरा सबसे ज्यादा था। तीसरा, केरल भारत का सबसे ज्यादा सघन आबादी वाला राज्य है। एक वर्ग किलोमीटर में रहने वाली आबादी का केरल का औसत शेष भारत के औसत से कहीं ज्यादा है इसलिए भी इस बीमारी के फैलने का यहां बहुत खतरा था। इसके बावजूद आज केरल सरकार ने हालात काबू में कर लिए हैं। 

फिर भी स्वास्थ्य मंत्री सुश्री शैलजा टीचर का कहना है,‘‘हम चैन से नहीं बैठ सकते क्योंकि पता नहीं कब यह महामारी किस रूप में फिर से आ धमके।’’ आम तौर पर हम सनातन धर्मी लोग वामपंथी विचारधारा का समर्थन नहीं करते क्योंकि हम ईश्वरवादी हैं जबकि वामपंथी नास्तिक विचारधारा के होते हैं। पर पिछले तीन महीनों के केरल की वामपंथी सरकार के इन प्रभावशाली कार्यों ने यह सिद्ध किया है कि नास्तिक होते हुए भी अगर वे अपने मानवतावादी सिद्धांतों का निष्ठा से पालन करें तो उससे समाज का हित ही होता है। 

सबसे पहली बात तो केरल सरकार ने यह की कि उसने बहुत आक्रामक तरीके से फरवरी महीने में ही हर जगह लोगों के परीक्षण करने शुरू कर दिए थे। इस अभियान में स्वास्थ्य मंत्री ने अपने 30 हजार स्वास्थ्य सेवकों को युद्ध स्तर पर झोंक दिया। नतीजा यह हुआ कि अप्रैल के पहले हफ्ते में पिछले हफ्ते के मुकाबले संक्रमित लोगों की संख्या में 30 फीसदी की गिरावट आ गई। आज तक केरल में कोरोना से कुल 2 मौतें हुई हैं और संक्रमित लोगों में से सरकारी इलाज का लाभ उठाकर 34 फीसदी लोग स्वस्थ होकर घर लौट चुके हैं। उनकी यह उपलब्धि भारत के शेष राज्यों के मुकाबले बहुत ज्यादा और प्रभावशाली है, जबकि शेष भारत में लॉकडाऊन के बावजूद संक्रमित लोगों की संख्या व मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 

यह सही है कि इटली, स्पेन, जर्मनी, इंगलैंड और अमरीका जैसे विकसित देशों के मुकाबले भारत का आंकड़ा प्रभावशाली दिखाई देता है। पर इस सच्चाई से भी आंखें नहीं मीची जा सकतीं कि शेष भारत में कोरोना संक्रमित लोगों के परीक्षण का सही आंकड़ा ही उपलब्ध नहीं है। मैडीकल उपकरणों की अनुपलब्धता, टेस्टिंग सुविधाओं का आवश्यकता से बहुत कम होना तथा कोरोना को लेकर जो आतंक का वातावरण मीडिया ने पैदा किया उसके कारण लोगों का परीक्षण कराने से बचना। ये तीन ऐसे कारण हैं जिससे सही स्थिति का आकलन नहीं किया जा सकता। 

अमरीका के सबसे प्रतिष्ठित अखबार ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने लिखा है कि केरल का उदाहरण भारत सरकार के लिए अनुकरणीय है क्योंकि पूरे देश को लॉकडाऊन करने के बावजूद भारत में संक्रमित लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है और इस लेख के लिखे जाने तक लगभग 7.5 हजार लोग संक्रमित हो चुके हैं तथा करीब 240 लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं। हालांकि केरल में भी स्वास्थ्य सेवाओं की दशा बहुत हाई क्लास नहीं थी पर उसने जो कदम उठाए, जैसे लाखों लोगों को भोजन के पैकेट बांटना, हर परिवार से लम्बी प्रश्नावली पूछना और आवश्यकता अनुसार उन्हें सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराना, संक्रमित लोगों को तुरंत अलग कर उनका इलाज करना जैसे कुछ ऐसे कदम थे जिनसे केरल को इस महामारी को नियंत्रित करने में सफलता मिली है। 

केरल के हवाई अड्डों पर भारत सरकार से भी दो हफ्ते पहले यानी 10 फरवरी से ही विदेशों से आने वाले यात्रियों के परीक्षण शुरू कर दिए गए थे। ईरान और साऊथ कोरिया जैसे 9 देशों से आने वाले हर यात्री को अनिवार्य रूप से क्वारंटाइन में भेज दिया गया। पर्यटकों और आप्रवासी लोगों को क्वारंटाइन में रखने के लिए पूरे राज्य में भारी मात्रा में अस्थायी आवास गृह तैयार कर लिए गए थे। 

इसका एक बड़ा कारण यह है कि पिछले 30 सालों में केरल की सरकार ने ‘सबको शिक्षा और सबको स्वास्थ्य’ के लिए बहुत काम किया है जबकि दूसरी तरफ शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं का व्यवसायीकरण करने के हिमायती विकसित पश्चिमी देश अपनी इसी मूर्खता का आज खमियाजा भुगत रहे हैं। केरल के इस अनुभव से सबक लेकर भारत सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य के व्यवसायीकरण पर रोक लगाने के लिए फिर से सोचना होगा क्योंकि पहले तो मौजूदा संकट से निपटना है फिर कौन जाने कौन-सी विपदा फिर आ टपके।-विनीत नारायण
                       


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