हमारा वक्त और है, तुम्हारा वक्त और था

punjabkesari.in Saturday, Oct 16, 2021 - 04:24 AM (IST)

बुजुर्ग पीढ़ी का जब वर्तमान से सामना होता है तो शुरूआत हमारे जमाने में, उस समय की बात, हमने जो देखा, जैसे वाक्यों से होती है जिसका आज की पीढ़ी से कोई संबंध नहीं होता और वह यह कह कर कि हमारा वक्त और है, क्या वास्तव में ऐसा था जैसी बात कहते हुए अपने काम में लग जाती है। समय बदलता है, प्रकृति का नियम परिवर्तन करते रहना है, कुछ नया जो अद्भुत, आश्चर्यजनक और ऐसा जिस पर विश्वास करना मुश्किल हो, वह निरंतर हमारे सामने होता रहता है। अगर उसे समझकर स्वीकार कर लिया तब तो ठीक अन्यथा अपने लिए परेशानी खड़ी हो सकती है लेकिन क्या यह इतना आसान है? 

औद्योगिक क्रांति और बिजली : बिजली से चलने वाले वाहनों के निर्माण ने दुनिया भर में तरह-तरह के नए मंडलों से उपभोक्ता को लुभाने वाली कंपनियों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अगर उन्होंने इस आविष्कार को नहीं समझा तो उनके बुरे दिन आने वाले हैं। यही कारण है कि अब सभी बिजली से चल सकने वाली गाडिय़ों के बनाने की घोषणा कर रहे हैं। अभी टेस्ला नामक कंपनी ने उनके होश उड़ा दिए हैं और जब लोग उसके वाहनों की खूबियों से परिचित होकर बिजली वाहनों को खरीदने लगेंगे तो सोचिए पैट्रोल डीजल, गैस से चलने वाली गाडिय़ां बनाने वालों का क्या होगा? 

भविष्य का आइना : भारत में इन वाहनों के बनने की शुरूआत हो चुकी है और सन 2030 तक इस मामले में पूरी दुनिया का नक्शा बदलने वाला है। पैट्रोल डीजल के इंजन में छोटे-बड़े 20,000 के लगभग पुर्जे होते हैं और बिजली गाड़ी में इंजन की बजाय बिजली की मोटर होती है जिसमें 20 से ज्यादा पुर्जे नहीं होते। इंजन की जगह अब खराबी होने पर सिर्फ मोटर बदलनी होगी और वह भी केवल 10 मिनट में। रोबोट यह काम करेगा और फिर आप लाइफ टाइम की गारंटी के साथ कार चलाइए। 

बिजली वाहनों के आने से सबसे ज्यादा असर तेल कंपनियों पर पड़ने वाला है और ओपेक तथा तेल उत्पादक देशों की दादागिरी समाप्त हो जाएगी, आज जो पैट्रोल डीजल के दाम बेतहाशा बढ़ते जा रहे हैं, वह कल की बात हो जाएगी और यही नहीं लोग अपनी गाड़ी की बजाय किराए की गाड़ियों का ही इस्तेमाल करेंगे। जगह-जगह पैट्रोल पंप बंद होकर चार्जिंग स्टेशन बन जाएंगे और वह भी ऑटोमैटिक होंगे। टेस्ला कंपनी की छत देखकर लोग सोचने लगे हैं कि यह तो बिजली बनाओ, बेचो और कमाई करो का रास्ता खुल गया। घर-घर में अतिरिक्त बिजली बेचने की परंपरा शुरू हो जाएगी क्योंकि सोलर एनर्जी का उत्पादन, भंडारण और वितरण का कारोबार जबरदस्त तरीके से बढऩे वाला है। आज जो सरकारें कोयले से बनने वाली बिजली के थर्मल प्लांट लगाने जा रही हैं और कोयले का संकट होने की बात करती हैं, उनकी बोलती बंद हो जाएगी क्योंकि अक्षय ऊर्जा की बदौलत उनकी आवश्यकता बहुत ही सीमित हो जाएगी। 

वास्तविकता यह है कि सरकार अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की बात करती है परंतु उसे लगाना, उपयोग में लाना इतना महंगा कर दिया है कि लोगों को निराशा ही हाथ लगती है। ग्रिड की बिजली सस्ती मिलने से इस ओर रुचि ही नहीं होती। अब इस परिवर्तन को रोका नहीं जा सकता और हमें सूर्य, पवन और जल देवता की शरण में जाना ही होगा क्योंकि यही भविष्य है। अगर सरकार ने थर्मल प्लांट बंद करने और अक्षय ऊर्जा प्लांट लगाने की पहल नहीं की तो यह देश को अंधकार में धकेलना होगा क्योंकि कोयला खत्म होने की अवधि तेजी से बीत रही है। 

पुराने और नए की दुविधा : जो लोग सोचते हैं कि पहले सब अच्छा था, अब सब खराब है या वर्तमान पीढ़ी यह सोचे कि पहले सब खराब था, अब अच्छा है तो दोनों ही भ्रम में जीने के अलावा कुछ नहीं करते। संचार साधनों को ही ले लीजिए, फोन की सुविधा हासिल करने में एडिय़ां घिस जाती थीं, अब यह इतनी सुलभ है कि व्यक्ति को शांत नहीं रहने देती। फोन पर बात करना तो मामूली चीज है, पूरा घर, दफ्तर, व्यापार, कारोबार, उद्योग और दुनिया भर में किसी से भी क्षण भर में संपर्क करना इतना आसान हो गया है कि जैसे फोन के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती हो। पहले रात को नींद खुल जाए तो तारे गिनने पड़ते थे, अब चौबीसों घंटे चलने वाले चैनल हैं। खाली वक्त गुजारना हो, बात करने के लिए कोई पास न हो या किसी बात से मन खराब हो तो फोन से बड़ा कोई साथी नहीं और वह भी इतना सस्ता कि जितना चाहे इस्तेमाल करो, कोई चिंता नहीं होती। सोचिए जब एक कॉल के 20 से 30 रुपए तक देने पड़ते थे तो बजट कितना बिगड़ता होगा। 

अब वकील, डॉक्टर की सलाह घर बैठे मिल जाती है और वह भी बहुत कम दाम या मुफ्त में और घर बैठकर ऑनलाइन खरीदारी ने तो दुकानदार के साथ मोलभाव, झिकझिक करने से मुक्ति ही दिला दी है। यही नहीं पहले फिल्म बनाने, फोटोग्राफी करने और रिकॉॄडग, शूटिंग आदि के लिए जबरदस्त तामझाम की जरूरत अब बहुत ही ज्यादा सिमट गई है। थोड़े से इक्विपमैंट से सब कुछ किया जा सकता है और यही नहीं जो बनाया है, उसे बेचने और कमाई करने के इतने साधन हैं कि किसी को अपनी क्रिएटिविटी का लोहा मनवाने की ज़रूरत ही नहीं रही। अगर बंदे में दम है तो फिर और कुछ नहीं चाहिए, सब कुछ सामने हाजिर है। पढऩा, लिखना, संगीत साधना से लेकर अभिनय तक अपने ही हाथ में है। 

जनसंख्या पर दबाव : किसी भी काम के लिए जरूरत भर के सीमित कर्मचारियों को अपनी मर्जी के मुताबिक रखने और निकाल देने का विकल्प अब आबादी को बढऩे से रोकने का संदेश दे रहा है। भारत जैसे देश के लिए यह तब और भी आवश्यक हो जाता है जब एक अनार और सौ बीमार होने जैसे हालात हों। यदि डिजिटल क्रांति को सही मायने में नहीं समझा गया और जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए सख्त कानून नहीं बनाए गए तो देश के अराजकता के दौर से गुजरने में कोई संदेह नहीं होना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि चिडिय़ा के खेत चुग लेने के बाद हमारे पास केवल पछताने का ही उपाय बचा रह जाए। यह क्रांति दबे पांव ही आ रही है लेकिन इसकी आहट को अनसुना करना इतना घातक है कि जितने भी साधन जुटा लिए जाएं वे आबादी के हिसाब से नगण्य ही सिद्ध होंगे।-पूरन चंद सरीन  
 


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