क्या आर्टिकल 370 सरदार पटेल का ‘अधूरा सपना’ था

punjabkesari.in Sunday, Nov 17, 2019 - 12:23 AM (IST)

इतिहास के बारे में मैं इस बात को बहुत पसंद करता हूं कि ऐसी कोई भी घटना जिसे हम न याद रख पाएं कि यह कैसे घटी या फिर इसको किसने जन्म दिया तब हम कोई भी कहानी गढ़ लेते हैं और इसको तथ्यों के हिसाब से प्रस्तुत कर देते हैं। यदि आप इसका उल्लेख सार्वजनिक या फिर बहुत ऊंचा बोल कर देते हैं तब इसमें खतरा व्याप्त रहता है। क्या यही प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री के साथ भी 31 अक्तूबर को घटा जब उन्होंने अनुच्छेद 370 को  हटाने का अपना गुणगान किया। मुझे आपके सामने तथ्यों को रखना होगा तब आप इसके बारे में कोई न्यायपूर्ण बात कर सकेंगे। 

सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा आर्टीकल 370
दिल्ली में बोलते हुए अमित शाह ने कहा जब अनुच्छेद 370 को खत्म किया गया तब सरदार वल्लभ भाई पटेल का अधूरा सपना पूरा किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ ज्यादा ही मुखर नजर आए। उन्होंने कहा कि पटेल से उनको प्रेरणा मिली कि अनुच्छेद 370 को खत्म किया जाए। मोदी ने आगे कहा कि मेरा यह निर्णय सरदार साहिब को समर्पित है। मोदी तथा शाह ने सरदार वल्लभ भाई पटेल जोकि देश के पहले गृहमंत्री तथा स्वतंत्र भारत के पहले उपप्रधानमंत्री थे, का हवाला देते हुए कहा कि पटेल अनुच्छेद 370 के विरोध में थे तथा इसको खत्म करना चाहते थे। यह उनका अधूरा सपना भी था। यही कारण है कि प्रधानमंत्री ने अपना फैसला पटेल को समॢपत किया। स्मरण रहे कि वह 31 अक्तूबर को पटेल की जयंती पर बोल रहे थे। 

आइए अब देखें कि कैसे इतिहास में सरदार पटेल ने अनुच्छेद 370 पर अपना पक्ष रखा। ‘वार एंड पीस इन माडर्न इंडिया : ए स्ट्रैटेजिक हिस्ट्री आफ द नेहरू ईयर्स’ के लेखक तथा अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफैसर श्रीनाथ राघवन का कहना है कि आर्टीकल 370 को ड्राफ्ट करने के लिए बुलाई गई पहली बैठक सरदार पटेल के घर पर ही 15-16 मई 1949 को हुई। राघवन का कहना है कि जब एन.जी. अय्यंगर जोकि जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री (जैसा कि उस समय कहा जाता था) शेख अब्दुल्ला के साथ बातचीत के लिए जिम्मेदार थे, ने एक ड्राफ्ट लैटर को नेहरू के लिए तैयार किया जोकि अब्दुल्ला को भेजा जाना था। इसमें समझौतों के बारे में लिखा गया था। यह ड्राफ्ट लैटर पहले सरदार पटेल को भेजा गया जिसमें यह लिखा गया, ‘‘क्या आप कृपया पंडित जवाहर लाल नेहरू को अपनी अनुमति के बारे में सीधे तौर पर बताएंगे कि वह शेख अब्दुल्ला को यह लैटर जारी करेंगे मगर उससे पहले आपकी स्वीकृति मिलनी चाहिए।’’ 

आइए इस लैटर के बारे में विचार करें। इस लैटर में कहा गया है कि नेहरू शेख अब्दुल्ला को यह बताएंगे कि उनका कश्मीर मुद्दों पर आर्टीकल 370 सहित एक समझौता तथा उसकी धाराएं तय हुई हैं जोकि पटेल के साथ समझौते के बाद लिखा गया है। इस तरह पटेल को एक वीटो मिल गया। यदि पटेल यह कहते कि वह नेहरू से खुश नहीं तब उन्होंने शेख को अपनी स्वीकृति के बारे में यह लिखा न होता। मेरा मानना है कि क्यों राघवन ने टैलीग्राफ (13 अगस्त 2019) को बताया कि आर्टीकल 370 सरदार पटेल के सूत्रीकरण द्वारा ही तय हुआ था। राघवन का कहना है कि पटेल ने ही कांग्रेस लैजिसलेटिव पार्टी (सी.एल.पी.) पर  आर्टीकल 370 को मानने के लिए जोर डाला था क्योंकि 1949 में वह बहुमत में थी, इसका मतलब है कि पटेल ने असैम्बली को इसे मानने के लिए समझाया। 

कश्मीर को विशेष दर्जा
आइए मैं आपको पटेल के आर्टीकल 370 प्रति व्यवहार को एक अन्य स्रोत से समझाता हूं। मुझे राजमोहन गांधी की किताब ‘पटेल काल्ड पटेल : ए लाइफ’ का उल्लेख करना होगा। यहां पटेल के 1949 में लिए गए निर्णय के बारे में गांधी ने जो कहा है वह भी महत्व रखता है। नेहरू उस समय विदेश में थे जब संवैधानिक सभा कश्मीर पर बातचीत कर रही थी। सरदार पटेल जोकि उस समय कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर कार्य कर रहे थे, ने कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने की बात चुपचाप मान ली जिसमें कश्मीर को दी जाने वाले रियायतें भी शामिल थीं जो पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा विदेश जाने से पहले मान ली गई थीं। गांधी ने लिखा है कि अब्दुल्ला ने इन रियायतों के लिए दबाव डाला तथा सरदार पटेल उनके रास्ते में नहीं खड़े हो पाए। पटेल ने माना कि ये रियायतें नेहरू की कामनाओं को प्रस्तुत करती हैं जिनका वह अपनी अनुपस्थिति में परित्याग नहीं करना चाहते थे। 

एक बार फिर यह सोचने वाली बात है। पहला यह कि पटेल कश्मीर को विशेष दर्जा चुपचाप तरीके से देना चाहते थे जोकि जवाहर लाल नेहरू के मानने से परे था, दूसरा यह कि पटेल ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्होंने माना होगा कि ये नेहरू की ही इच्छाएं होंगी। पटेल ने कड़े रूप से ऐसी रियायतों पर असहमति नहीं जताई। 

ईमानदारी से राजमोहन गांधी ने ऐसा रिकार्ड किया है कि पटेल ने विपत्तियों की भविष्यवाणी की होगी कि जवाहर लाल नेहरू रोएगा। गांधी ने कहा कि शायद नेहरू आर्टीकल 370 पर पछताते होंगे मगर पटेल ही थे जिन्होंने यह यकीनी बनाया और इसे संविधान में रखा। उन्होंने यह भी इंतजार नहीं किया कि क्या नेहरू वास्तव में ऐसा चाहते होंगे। उन्होंने सिर्फ यही माना कि नेहरू ने शायद ऐसा ही सोचा होगा। इतिहास की ऐसी बातों से क्या यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आर्टीकल 370 पटेल का अधूरा सपना था। क्या पटेल अपने आप को गौरवहीन समझ रहे होंगे कि आर्टीकल 370 का हटना उनकी यादों को समर्पित है। 

मुझे दो अन्य बातें भी आपसे सांझा करनी होंगी। राजमोहन गांधी की जीवनी के पृष्ठ संख्या 517 में यह खुलासा हुआ है कि यह पटेल ही थे जिन्होंने महाराजा हरि सिंह को कश्मीर छोडऩे के लिए कहा। हरि सिंह ने यह बात मान ली जब नेहरू ने पटेल पर दबाव डाला कि महाराजा कश्मीर को छोड़ जाएं। गांधी ने महाराजा हरि सिंह के बेटे करण सिंह का भी उल्लेख किया है जो इसके समर्थन में है, जिसमें कहा गया है कि सरदार ने मेरे पिता को भद्र तरीके से कहा। इसके बाद मेरे पिता दंग रह गए। हरि सिंह मीटिंग से उठकर खड़े हो गए जबकि मेरी मां अपने आंसुओं को रोक न पाईं। 

दूसरी अंतर्दृष्टि को बताना भी लाजिमी है। हम फिरोज विन्सैंट के आर्टीकल जोकि 13 अगस्त को टैलीग्राफ में छपा, का उल्लेख करते हैं। यह जनसंघ के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बारे में है जिससे भाजपा ने जन्म लिया। 7 अगस्त 1952 को लोकसभा में मुखर्जी ने कहा कि यह कहा जा रहा है कि मैं पार्टी में था जब कश्मीर मुद्दा यू.एन.ओ. ले जाने के बारे में निर्णय लिया गया। यह प्रतीत नहीं होता कि उस समय मुखर्जी नेहरू की कैबिनेट के सदस्य थे। 

उनका मतभेद था तभी तो 1952 में 2 वर्ष के बाद वह नेहरू से जुदा हो गए तथा 1 वर्ष बाद उन्होंने भारतीय जनसंघ का गठन किया। तभी तो उन्होंने लोकसभा में कहा कि मेरा कोई अधिकार नहीं तथा मैं उन बातों को बताना नहीं चाहता जिसके तहत वह फैसला लिया गया। महान लोग ही इतिहास रचतेहैं। नेपोलियन ने इतिहास को रद्द करते हुए इसे एक कल्पित ही माना मगर भारत में महान व्यक्ति इतिहास को लिख सकते हैं।-करण थापर


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