वक्फ का संचालन अनियमित और बिना निगरानी

punjabkesari.in Monday, Oct 03, 2022 - 05:01 AM (IST)

वक्फ संस्थान मात्र सम्पत्ति के बारे में नहीं है बल्कि इसका राजनीतिक आयाम भी है। यह अनियमित और बिना किसी निगरानी के संचालित होता है। भारत में मुसलमानों को वक्फ की संस्था शहरी सम्पत्ति का सबसे बड़ा मालिक बना देती है। सही आंकड़े उपलब्ध करवाना तो मुश्किल है मगर यह हमें वक्फ मैनेजरों जिन्हें कि मुतवल्ली कहा जाता है, के माध्यम से तथा निकाय अधिकारियों के अनुमान द्वारा प्राप्त होते हैं। ले-देकर कुछ अनुमान चौंकाने वाले हैं।

उत्तर प्रदेश के जौनपुर में आधी से अधिक भूमि वक्फ से संबंध रखती है। वहीं कन्नौज की पहाडिय़ों पर सारी भूमि वक्फ क्षेत्र है। अहमदाबाद में मुतवल्लियों के अनुसार जमालपुर का 13 प्रतिशत इलाका वक्फ के स्वामित्व वाला है। उधर कोलकाता में 5 प्रतिशत तथा पटना में यह दर 8 प्रतिशत की है। जामिया मिलिया इस्लामिया के पूर्व कुलपति अस्फ ए.ए. फियाजी ने अपनी किताब ‘आऊटलाइन्स ऑफ मोहम्मडन लॉ’ (ओ.यू.पी. नई दिल्ली 1999) में कहा है कि, ‘‘वक्फ उन सम्पत्तियों का कहा जाता है जो अल्लाह के नाम पर धार्मिक और चैरीटेबल कार्यों के लिए दान में दे दी जाती हैं।

अगर कानूनी नजरिए से देखें तो यह माना जा सकता है कि अगर कोई शख्स अपनी चल या अचल सम्पत्ति अपनी मर्जी से धार्मिक या इस्लाम के पवित्र कार्य में लगाने के लिए दान करता है तो उसे वक्फ पुकारा जाता है। सीधे शब्दों में कहें जो किसी भी सम्पत्ति को वक्फ घोषित किया जा सकता है लेकिन तभी अगर इसका इस्तेमाल लम्बे समय के लिए इस्लाम से जुड़ी धार्मिक गतिविधियों या चैरीटेबल से किया जा रहा हो।’’ भारत में अब ज्यादातर वक्फ वकिफ (वक्फ के संस्थापकों) परिवारों, बच्चों तथा उनके वंशजों से संबंध रखता है। मगर वक्फ का मुद्दा साधारण तौर  पर आॢथक नहीं है। वक्फ तो एक राजनीतिक मुद्दा है।

ज्यादातर राज्यों के अपने ही वक्फ कानून हैं और केंद्र का कानून संचालित होता है। अंतिम कानून वक्फ एक्ट 2013 का है। किसी भी संस्थान की सरकारी पहचान के लिए बहुत ही कम निगरानी है। न ही हमारे देश में सैंकड़ों-हजारों की तादाद में वक्फ की कोई सूची या फिर जनगणना है। इसमें ऐसे वक्फ भी हैं जिनका कि पंजीकरण तक भी नहीं हुआ है। मिसाल के तौर पर एक कब्रिस्तान जिसका इस्तेमाल नहीं हुआ हो उस पर भी वक्फ का दावा किया जा सकता है। यह तब तक होता है जब कि वह भूमि एक कब्रिस्तान बनी रहती है।

वक्फ जांच कमेटी (1975)  के अनुसार ठोस आइटमें जैसे कि मवेशी, कृषि कलपुर्जे, कुरान, घोड़े, ऊंट, तलवारें इत्यादि भी अल्लाह के नाम पर वक्फ की सम्पत्ति का हिस्सा हो सकती हैं।  यदि  अल्लाह की भागीदारी है तो भारतीय कमेटी वैध है। मिस्र, तुर्की, अल्जीरिया तथा मोरक्को जैसे मुस्लिम देशों ने किस ढंग से अपने वक्फ संस्थानों को समाप्त कर डाला? क्या कोई धर्म निरपेक्ष देश अल्लाह की सम्पत्ति का संरक्षक हो सकता है? हमें अपने दिमाग में यह बात अच्छी तरह से रखनी चाहिए कि यह कोई ऐतिहासिक विरासत नहीं है बल्कि एक हालिया इन्क्वायरी कमेटी ने वक्फ एक्ट को पास करवाया।

भारत में वक्फ सभी कानूनों के ऊपर दंड मुक्ति प्राप्त है। एक वक्फ के साथ कोई भी विधान दखलअंदाजी नहीं कर सकता। अर्बन लैंड सीलिंग एक्ट सभी शहरी केंद्रों पर लागू होता है मगर यह वक्फ की सम्पत्तियों पर लागू नहीं होता। ऐसा विशेषाधिकार किसी अन्य धर्म या फिर समुदाय को नहीं है। एक अविभाजित हिंदू परिवार एक अलग इंकम टैक्स फाइल के लिए अच्छा हो सकता है मगर इसके पास अन्य कोई विशेषाधिकार नहीं है। या फिर यूं कहें कि ऐसे परिवार के पास कोई फायदा नहीं है। ऐसा ही फायदा ईसाइयों, पारसियों और यहूदी समुदायों के पास भी नहीं है।

यह एक धार्मिक भेदभाव की चमकदार उदाहरण है। वक्फ का उद्गम जीत और लूट-खसूट में समाया है। कई मुस्लिम देशों ने अपने कानूनों का आधुनिकीकरण किया है जिसमें निजी तथा पारिवारिक वक्फों को खत्म करना भी शामिल है। तुर्की, सीरिया, लेबनान और विशेषकर मिस्र की हमारे पास उदाहरणें हैं। ज्यादातर सरकारों ने वक्फों का विरोध किया। मगर भारत में यह अभी भी लागू है। आजादी के बाद भारत ने जमींदारी और जागीरदारी प्रणाली को खत्म कर दिया। इसके साथ-साथ रियासतें भी खत्म हो गईं।

भारतीय क्षेत्र में कोई भी अन्य सत्ता का केंद्र व्याप्त नहीं है। अगर ऐसा हो तो वह भारत की सम्प्रभुता को खतरा माना जाता है। वक्फ को असली निवासियों जिनमें ज्यादातर हिंदू शामिल थे, से जब्त तथा छीनी गई भूमि पर बनाया गया था। भारत में सबसे बड़े शहरी मालिक वक्फ हैं जोकि आभासी तौर पर एक राज्य के भीतर एक अन्य राज्य है। उल्लेमां के लिए यह आधार है जो अपनी अलग पहचान को प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें इससे आय तथा सुरक्षा भी उपलब्ध होती है।

इसका नवीनतम उदाहरण ताजमहल है जिसे लेकर वक्फ ने राज्य के खिलाफ एक विरोधात्मक भूमिका अदा की। उसने इसके क्षेत्र, पर्यटकों का राजस्व तथा इन सबसे बढ़ कर इसकी सम्प्रभुता पर भी अधिकार जमाया। पूर्व की सरकारें वोट बैंक की राजनीति के चलते इनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने से दूर भागती रहीं और न ही कोई इच्छा जताई। पाकिस्तान एक संबंध विच्छेद था मगर फिर भी इसे विभाजन के नाम से पुकारा जाता है क्योंकि यह भारत की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर बना। क्या हम इस तरह का कोई अन्य परिणाम चाहते हैं?-प्रफुल्ल गोराडिया (लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं और लेख में प्रकट किए गए विचार उनके निजी हैं)


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