अंग्रेजी से आगे अब मातृभाषा में व्यावसायिक शिक्षा

punjabkesari.in Wednesday, Aug 04, 2021 - 02:38 AM (IST)

प्रत्येक बड़ा परिवर्तन एक क्रांतिकारी कदम से आरंभ होता है। 8 राज्यों के 14 इंजीनियरिंग कालेजों द्वारा नए अकादमिक वर्ष से अपनी चुङ्क्षनदा शाखाओं में क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम करवाने का हालिया निर्णय देश के अकादमिक क्षेत्र में एक ऐतिहासिक पल है जिस पर आने वाली पीढिय़ों का भविष्य निर्भर करेगा। 

इसके साथ ही ‘आल इंडिया काऊंसिल फॉर टैक्नीकल एजुकेशन’ (ए.आई.सी.टी.ई.) द्वारा नई शिक्षा नीति को लागू करते हुए 11 क्षेत्रीय भाषाओं में बी.टैक कार्यक्रमों की इजाजत देना महत्वपूर्ण है। इस ऐतिहासिक कदम ने हिंदी, मराठी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, गुजराती, मलयालम, बंगला, असमी, पंजाबी तथा उडिय़ा भाषाओं में बी.टैक पाठ्यक्रमों के विद्यार्थियों के लिए अवसरों का एक विश्व स्तरीय दरवाजा खोल दिया है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ (एन.ई.पी.) की पहली वर्षगांठ पर अपने संबोधन में इस कदम की प्रशंसा करते हुए ङ्क्षबदू उठाया है कि एन.ई.पी. द्वारा शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होने तथा उस पर जोर देने से गरीब, देहाती तथा कबाइली पृष्ठभूमि वाले विद्यार्थी आत्मविश्वास से भरपूर होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि प्राथमिक शिक्षा में भी मातृभाषा को प्रोत्साहित किया जा रहा है तथा इस संबंध में मु य संचालकों में से एक ‘विद्या प्रवेश’ कार्यक्रम इस अवसर पर लांच किया गया था। 

दिलचस्प बात यह भी है कि इसी वर्ष फरवरी में ए.आई.सी.टी.ई. द्वारा 83000 विद्याॢथयों पर करवाए गए एक सर्वेक्षण में लगभग 44 प्रतिशत विद्याॢथयों ने अपनी मातृभाषा में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के पक्ष में वोट डाला था तथा तकनीकी शिक्षा की महत्वपूर्ण जरूरत को उजागर किया था। 

प्रगतिशील तथा दूरदृष्टि से भरपूर ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’ प्राथमिक स्कूल के स्तर से ही बच्चे की मातृभाषा में शिक्षा को प्राथमिकता देती है जिससे बच्चे/बच्ची के शिक्षा के परिणामों में सुधार होगा तथा उसकी सूझबूझ का विकास इस पर ही निर्भर करेगा। अनेक अध्ययनों ने सिद्ध किया है कि जो बच्चे अपने प्राथमिक तथा बुनियादी वर्षों में अपनी मातृभाषा सीखते हैं उनकी कारगुजारी उन बच्चों के मुकाबले बेहतर होती है जो किसी विदेशी या अन्य भाषा में पढ़ाई करते हैं।

दुर्भाग्य से उच्च शिक्षा शास्त्री तथा अभिभावक अभी भी अंग्रेजी को बिना किसी दलील के सर्वोच्चता प्रदान करते हैं जिससे बच्चे की मातृभाषा स्कूलों में दूसरी या तीसरी भाषा बन कर रह जाती है। यहां महान भौतिक विज्ञानी तथा नोबेल पुरस्कार विजेता सर सी.वी. रमन के कथन को याद करना उचित होगा कि ‘हमें विज्ञान विषय आवश्यक तौर पर अपनी मातृभाषा में पढ़ाना होगा नहीं तो विज्ञान अधिक पढ़े-लिखे लोगों की गतिविधि बन कर रह जाएगा। यह ऐसी गतिविधि नहीं रहेगी जिसमें सभी लोग भागीदारी कर सकें।’ 

हमारी शिक्षा प्रणाली में असाधारण प्रसार हुआ है और यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गौरवशाली इंजीनियरिंग, मैडीसिन, कानून तथा ह्यूमैनिटीज में पाठ्यक्रम करवाती है लेकिन इस मामले का विरोधाभास यह है कि हमने इसे अपने ही लोगों की पहुंच से दूर कर दिया है। गत वर्षों के दौरान अकादमिक क्षेत्र में कई तरह के अवरोध पैदा हुए जिससे बड़ी सं या में हमारे विद्याॢथयों का विकास रुक गया और हम अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई करवाने वाली यूनिवॢसटियों तथा कालेजों का छोटा-सा गुब्बारा फुला कर संतुष्ट होकर बैठ गए हैं, जबकि यदि हम तकनीकी तथा व्यावसायिक पाठ्यक्रम की बात करें तो हमारी अपनी भाषाएं सडऩे के मार्ग पर पड़ गई हैं।  जी-20 देशों में से अधिकतर में अति आधुनिक विश्वविद्यालय हैं जहां उसी भाषा में पढ़ाई करवाई जाती है जिसे जानने तथा बोलने वाले विद्यार्थियों की संख्या अधिक होती है। 

एशियाई देशों की बात करें तो कोरिया में लगभग 70 प्रतिशत विश्वविद्यालय कोरियाई भाषा में पढ़ाते हैं। अभिभावकों में अंग्रेजी सीखने की बढ़ती सनक को देखते हुए कोरियाई सरकार ने वर्ष 2018 में स्कूलों में तीसरी कक्षा से पहले अंग्रेजी पढ़ाने पर रोक लगा दी थी क्योंकि विद्याॢथयों की कोरियाई भाषा में महारत घटने लगी थी। इसी तरह जापान में अधिकतर यूनिवॢसटी प्रोग्राम जापानी भाषा में ही पढ़ाए जाते हैं और चीन में भी बिल्कुल यही स्थिति है जहां विश्वविद्यालय मैंडरीन भाषा में पढ़ाई करवाते हैं। इस अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में यह एक व्यंग्यात्मक स्थिति ही है कि भारत में अधिकतर व्यावसायिक पाठ्यक्रम अंग्रेजी भाषा में पढ़ाए जाते हैं। विज्ञान, इंजीनियरिंग, मैडीसिन तथा कानून में तो स्थिति और भी खराब है क्योंकि इन विषयों के लिए कोई भी कोर्स व्यावहारिक तौर पर क्षेत्रीय भाषा में नहीं है। 

खुशकिस्मती से अब हम अपनी खुद की भाषाओं में अपनी आवाज खोजनी शुरू कर रहे हैं। हमें अवश्य प्राथमिक शिक्षा (कम से कम दर्जा 5 तक) विद्यार्थी की मातृभाषा में देने से शुरूआत करनी होगी और फिर इसका स्तर ऊंचा उठाते जाना होगा। मातृभाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने पर जोर देना कोई अनोखी बात नहीं क्योंकि मैं अक्सर कहता हूं कि सबको हरसंभव हद तक अधिक से अधिक भाषाएं सीखनी चाहिएं, मगर इसके लिए मातृभाषा में मजबूत बुनियाद की जरूरत होती है। दूसरे शब्दों में मैं ‘मातृभाषा बनाम अंग्रेजी’ की नहीं बल्कि ‘मातृभाषा प्लस अंग्रेजी’ पहुंच की वकालत कर रहा हूं। वर्तमान तेजी से आपस में जुड़ते विश्व में विभिन्न भाषाओं में महारत ने एक व्यापक विश्व के नए मार्ग खोल दिए हैं।-एम. वेंकैया नायडू माननीय उपराष्ट्रपति


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News