भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है यू.पी.

punjabkesari.in Saturday, Mar 05, 2022 - 06:27 AM (IST)

यह न केवल भाजपा के एक नेता बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, जगत प्रकाश नड्डा, अमित शाह तथा योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं की प्रतिष्ठा का सवाल है। इन नेताओं की प्रतिष्ठा 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों, विशेषकर उत्तर प्रदेश में दांव पर लगी है। घनी आबादी वाले ये राज्य किसी हद तक 2024 के संसदीय चुनावों में भाजपा की किस्मत का निर्णय भी करेंगे। 

उत्तर प्रदेश में दो विरोधाभास परिदृश्य : भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी के ‘करिश्मे’ को जांचने का एक बार फिर से जोखिम लिया है। मोदी ने 2014 तथा 2019 में पार्टी के हक में लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया था। 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में हिंदुत्व के मुद्दे ने प्रभाव डाला था। 2019 में वाराणसी में मोदी ने रोड शो के दौरान वोट खींचने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया था। जबकि सपा तथा बसपा ने मुस्लिम वोटरों पर अपना ध्यान केंद्रित किया था जिसके चलते भाजपा ध्रुवीकरण करने में सक्षम हुई थी। पुलवामा में सी.आर.पी.एफ. जवानों की शहादत तथा बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद राष्ट्रीय भावनाएं अपनी चरम सीमा पर थीं। इसी तरह नोटबंदी के मुद्दे को भाजपा ने भुनाया था और इसे काले धन के खिलाफ एक क्रांतिकारी कदम बताया था। हालांकि वास्तविकता इससे परे थी मगर आम वोटर इससे प्रभावित हुए थे। 

इसके विपरीत यू.पी. में 7 चरणों की पोलिंग अपने अंतिम चरण पर है तथा अभी तक 6 चरण समाप्त हो चुके हैं। इस दौरान राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, सोशल इंजीनियरिंग इत्यादि की क्रूर डोज देखने को नहीं मिली। इसी कारण इस बार के चुनाव पूर्व के चुनावों से अलग हैं। दूसरी बात यह है कि इन चुनावों का नतीजा निश्चित तौर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भाग्य का निर्णय भी करेगा। चुनावों में योगी की हार का मतलब उनके राजनीतिक करियर पर ग्रहण लग सकता है और मोदी को चुनौती देने की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा भी दाव पर लग सकती है। एक सुडौल बहुमत योगी आदित्यनाथ के बतौर मुख्यमंत्री बने रहने पर भी सवालिया चिन्ह लगा सकता है क्योंकि इससे मायावती का बसपा के साथ गठबंधन भी हो सकता है जोकि अभी तक भाजपा की तरफ एक नर्म रवैया अपनाए हुए है। 

तीसरी बात यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए सत्ता धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। यहां पर भाजपा ने 135 सीटों में से 100 सीटें जीती थीं। 2017 के विधानसभा चुनावों में जाट प्रभुत्व वाली बैल्ट में 71 सीटों में से 51 पर भाजपा को जीत हासिल हुई थी। मगर अब स्थिति ने बदलाव लिया है क्योंकि 3 कृषि कानूनों के चलते हुए आंदोलन ने परिस्थितियां बदल दी हैं। चौथा यह कि अमित शाह ने दोहराया है कि लोग राष्ट्रीय तथा राज्य के हितों के संरक्षण के लिए वोट करेंगे न कि जाति आधार पर। 

पूर्व दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सलाहकार रहे सुधेंद्र कुलकर्णी का मानना है कि यू.पी. के चुनावों में जातीय फैक्टर ने एक बार फिर हिंदुत्व पर घेरा डाल लिया है। हालांकि जीत हासिल करने में भाजपा अभी भी धार्मिक भावनाओं को भुनाने पर लगी हुई है। कुलकर्णी के विचारों में यू.पी. में इन चुनावों के दौरान जातीय फैक्टर की वापसी रोकी नहीं जा सकी। इसने भाजपा के ङ्क्षहदुत्व वाले हथियार की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। पूर्व के चुनावों में अयोध्या आंदोलन ने कास्ट फैक्टर को दबाया था। भाजपा गैर-यादव ओ.बी.सी., गैर-जाटव, दलित इत्यादि वोट पाने में सफल हुई थी। 

भाजपा के लिए अखिलेश यादव मुख्य चुनौती: अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) भाजपा के लिए मुख्य चुनौती के तौर पर उभरी है। एक पब्लिक रैली के दौरान मोदी ने खुद इस बात को माना था। जब उन्होंने ‘लाल टोपी’ से लोगों को सचेत रहने को कहा था। उन्होंने किसी भी राजनीतिक पार्टी का नाम लेने से परहेज किया था। एक छिपे हुए हमले के तहत उन्होंने स्पष्ट किया था कि ‘लाल टोपी’ पहनने वाले लोग आतंकवाद के समर्थक हैं और पूरा यू.पी. जानता है कि ‘लाल टोपी’ केवल ‘रैड बीकन्स’ के बारे में चिंता करती है। 

वास्तविक मुद्दे पीछे चले गए : यू.पी. चुनावों के दौरान गिरगिट की तरह रंग बदलते दिखाई दिए। भाजपा ने नौकरियों का खो देना, कोविड-19 के कुप्रबंधन, गंगा के तट पर तैरती लाशों को देखना, गाय को बचाने के लिए गौहत्या के खिलाफ कानून इत्यादि जैसे प्रमुख मुद्दों की बजाय केंद्र की लोक कल्याण की स्कीमों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। माफिया राज को उखाड़ फैंकने का दावा योगी आदित्यनाथ ने किया, वहीं मोदी ने फ्री गैस सिलैंडरों की स्कीम तथा फ्री राशन देने जैसी बातों पर अपना ध्यान केंद्रित किया। 

दिलचस्प बात यह है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा मायावती की प्रशंसा से साबित होता है कि भाजपा के साथ बसपा का गठबंधन हो सकता है यदि सरकार के गठन के लिए भाजपा बहुमत पाने में असफल रहती है। सत्ता पाने के अपने प्रयासों में मायावती भी ज्यादा दिखाई नहीं दी। कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा के प्रयास भी जारी रहे। उन्होंने पार्टी नेताओं तथा कार्यकत्र्ताओं पर एक अच्छा प्रभाव छोड़ा। अंतत: कह सकते हैं कि उत्तर प्रदेश में परिदृश्य धुंधला तथा जटिल दिखाई पड़ता है।-के.एस.तोमर
 


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