जनता के दु:ख-दर्द से बेखबर ये नेता

punjabkesari.in Monday, Sep 19, 2022 - 05:22 AM (IST)

1789 -90 में फ्रांस में जब लोग भूखे मर रहे थे तो वहां की रानी मैरी एटोनी का ध्यान लोगों की बदहाली की ओर दिलाया गया। ऐशो-आराम में लिप्त रानी बोली इनके पास रोटी खाने को नहीं है तो ये लोग केक क्यों नहीं खाते? 

हर देश के हुक्मरान अपने देश की जनता को संबोधित करते हुए हमेशा बात तो करते हैं जनसेवा की, विकास की और अपने त्याग की लेकिन वास्तव में उनका आचरण वही होता है जो फ्रांस में लुई सोलह और मैरी एटोनी कर रहे थे। ये सब नेता जनता के दु:ख दर्द से बेखबर रहकर मौज-मस्ती का जीवन जीते हैं। 

इतना महंगा जीवन जीते हैं कि इनके एक दिन के खर्चे के धन से एक गांव हमेशा के लिए सुधर जाए। जबकि आज राजतंत्र नहीं लोकतंत्र है। पर लोकतंत्र में भी इनके ठाठ-बाट किसी शंहशाह से कम नहीं होते। हां इसके अपवाद भी हैं। पर आज मीडिया से प्रचार करवाने का जमाना है। इसलिए बिल्कुल नाकारा, संवेदना शून्य, चरित्रहीन और भ्रष्ट नेता को भी मीडिया द्वारा महान बता दिया जाता है। 

हम सब जानते हैं कि गाय के दूध की छाछ, नींबू की शिकंजी, संतरे, मोसंबी, बेल या फालसे का रस, लस्सी या ताजा गर्म दूध सेहत के लिए बहुत गुणकारी होता है। इनकी जगह जो आज देश में भारी मात्रा में बेचा और आम जनता द्वारा डट कर पिया जा रहा है वो हैं रंग बिरंगे ‘कोल्ड ड्रिंक्स’ जिनमें ताकत के तत्व होना तो दूर शरीर को हानि पहुंचाने वाले रासायनिकों की भरमार होती है। फिर भी अगर आप किसी को समझाओ कि भैया ये ‘कोल्ड ड्रिंक्स’ न पियो न पिलाओ, तो क्या वो आपकी बात मानेगा? कभी नहीं। क्योंकि विज्ञापन के मायाजाल ने उसका दिमाग कुंद कर दिया है। उसके सोचने, समझने और तर्क को स्वीकारने की शक्ति पंगु कर दी है। 

यही हाल नेताओं का भी होता है। जो मीडिया के मालिकों को मोटे फायदे पहुंचाकर, पत्रकारों को रेवड़ी बांट कर, दिन-रात अपना यशगान करवाते हैं। कुछ समय तक तो लोग भ्रम में पड़े रहते हैं और उसी नेता का गुणगान करते हैं। पर जब इन्हें यह एहसास होता है कि उन्हें कोरे आश्वासनों और वायदों के सिवाय कुछ नहीं मिला तो वे नींद से जागते हैं। पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। हालात बद से बदतर हो चुके होते हैं। फिर कोई नया मदारी आकर बंदर का खेल दिखाने लगता है और लोग उसकी तरफ आकर्षित हो जाते हैं। यह सिलसिला तब तक चलता है जब तक सच्चा लोकतंत्र नहीं आता। जब तक हर नागरिक और मीडिया अपने हुक्मरानों से कड़े सवाल पूछने शुरू नहीं करता। जब तक हर नागरिक मीडिया के प्रचार से हट कर अपने इर्द-गिर्द के हालात पर नजर नहीं डालता। 

विपक्षी दल सरकार को पूंजीपतियों का दलाल और जनता विरोधी बताते हैं। पर सच्चाई क्या है? कौन-सा दल है जो पूंजीपतियों का दलाल नहीं है? कौन-सा दल है जिसने सत्ता में आकर नागरिकों की आॢथक प्रगति को अपनी प्राथमिकता माना हो? धनधान्य से भरपूर भारत का मेहनतकश आम आदमी आज अपने दुर्भाग्य के कारण नहीं बल्कि शासनतंत्र में लगातार चले आ रहे भ्रष्टाचार के कारण गरीब है। इन सब समस्याओं के मूल में है संवाद की कमी। जब तक सत्ता और जनता के बीच संवाद नहीं होगा तब तक गंभीर समस्याओं को नहीं सुलझाया जा सकता। 

देश के नेताओं के पास जब जनता को उपलब्धियों के नाम पर बताने को कुछ ठोस नहीं होता तो वे आए दिन रंग बिरंगे नए-नए उत्सव या कार्यक्रम आयोजित करवा कर जनता का ध्यान बंटाते रहते हैं। इन कार्यक्रमों में गरीब देश की जनता का अरबों रुपया लगता है पर क्या इनके आयोजन से उसे भूख, बेरोजगारी और महंगाई से मुक्ति मिलती है? नहीं मिलती। उत्सव इंसान कब मनाता है जब उसका पेट भरा हो। 

राजा से अपेक्षा की गई है कि वो राजऋषि होगा। उसके चारों तरफ़ कितना ही वैभव क्यों न हो वह एक ऋषि की तरह त्याग और तपस्या का जीवन जिएगा। वो प्रजा को संतान की तरह पालेगा। खुद तकलीफ सहकर भी प्रजा को सुखी रखेगा। 

कितने नेता हैं जिनका जीवन लाल बहादुर शास्त्री जैसा सादा रहा हो : आज ऐसे कितने नेता आपकी नजऱ में हैं? मीडिया के प्रचार से बचकर अपने सीने पर हाथ रखकर अगर ठीक से सोचा जाए तो एक भी नेता ऐसा नहीं मिलेगा। 75 वर्ष के आज़ाद भारत के इतिहास में कितने नेता हुए हैं जिनका जीवन लाल बहादुर शास्त्री जैसा सादा रहा हो? भगवान गीता में अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं कि ‘महाजनों येन गता: स पंथ:’। महापुरुष जिस मार्ग पर चलते हैं वो अनुकरणीय बन जाता है। 

केवल थोथे वायदों और प्रचार पर भरोसा करना बंद करें :  आज हमने नेताओं को ही महापुरुष मान लिया है। इसलिए उनके आचरण की नकल सब कर रहे हैं। फिर कहां मिलेगा त्याग-तपस्या का उदाहरण। हर ओर भोग का तांडव चल रहा है। फिर चाहे पर्यावरण का तेज़ी से विनाश हो, बेरोजगारी व महंगाई चरम पर हो, शिक्षा के नाम पर व्हाट्सऐप विश्वविद्यालय चल रहे हों-तो देश तो बनेगा  ही ‘महान’। ज़रूरत है कि हम सब जागें, मीडिया पर निर्भर रहना और विश्वास करना बंद करें। अपने चारों ओर देखें कि क्या खुशहाली आई है या नहीं? नहीं आई तो आवाज बुलंद करें। तब मिलेगा जनता को उसका हक़ और तब बनेगा भारत सोने की चिडिय़ा। केवल थोथे वायदों और प्रचार पर भरोसा करना बंद करें और अपने दिल और दिमाग से पूछें कि क्या देख रहे हो? तब नेता भी सुधरेंगे और देश भी।-विनीत नारायण


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News