‘हिन्दुत्व’ पर अपनी बीन बजा रहे उद्धव

punjabkesari.in Thursday, Mar 12, 2020 - 03:09 AM (IST)

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अपने हिन्दुत्व ब्रांड तथा अपने नए गठबंधन सहयोगियों कांग्रेस तथा राकांपा की धर्मनिरपेक्षता के बीच संतुलन बनाने की कोशिश में हैं। उद्धव की विचारधारा वाला प्लेटफार्म हिन्दुत्व के इर्द-गिर्द ही घूमता है। मगर इसके साथ-साथ वह अपने सत्ताधारी गठबंधन सहयोगियों के राजनीतिक धर्मनिरपेक्ष एजैंडे को भी पूरा सम्मान दे रहे हैं। भाजपा से अलग हिन्दुत्व विचारधारा का दावा करते हुए उन्होंने हाल ही में स्पष्ट किया कि उनके विचार भाजपा के विचारों जैसे नहीं हैं क्योंकि वह एक हिन्दू राष्ट्र नहीं चाहते। धर्म तथा सत्ता को हथियाने वाली बातें मेरी हिन्दुत्व विचारधारा में शामिल नहीं। 

भारी पड़ सकता है हिन्दुत्व से अलग होने का खामियाजा 
ठाकरे यह यकीनी बनाने के लिए उत्सुक भी हैं कि उनकी विचारधारा वाला प्लेटफार्म संगठित हो मगर उन्होंने शिवसेना संस्थापक दिवंगत बाला साहेब ठाकरे द्वारा पाली गई हिन्दुत्व विचारधारा को अभी तक नकारा नहीं। ठाकरे ने यह भी महसूस किया है कि हिन्दुत्व से अलग होने का खामियाजा उन्हें भारी पड़ सकता है क्योंकि उनके चचेरे भाई राज ठाकरे ने हाल ही में अपने आपको हिन्दुत्व समर्थक नेता के तौर पर पेश किया है। 

हिन्दुत्व से नहीं, भाजपा से रास्ता किया अलग 
पिछले सप्ताह उनकी अयोध्या यात्रा उनकी नई राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। उनके नेतृत्व में पिछले सप्ताह ही महाराष्ट्र सत्ताधारी गठबंधन सरकार ने 100 दिन पूरे दिए। इस मौके को मनाने के दौरान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपने परिवार के साथ अयोध्या की यात्रा की तथा प्रस्तावित राम मंदिर के निर्माण हेतु 1 करोड़ रुपए दान देने की घोषणा की। यह राशि सरकार द्वारा नहीं बल्कि उनके ट्रस्ट की ओर से दी जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले डेढ़ वर्षों में यह उनकी तीसरी यात्रा है। उद्धव ने कहा कि उन्होंने भाजपा से अपना रास्ता अलग किया है, हिन्दुत्व से नहीं। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के हाल ही के सम्पादकीय में लिखा गया कि भगवान राम तथा हिन्दुत्व किसी एक राजनीतिक दल की निजी सम्पत्ति नहीं। इसलिए यह स्पष्ट है कि उद्धव ठाकरे अब अपने नए हिन्दुत्व ब्रांड को डिजाइन कर रहे हैं। 

उन्होंने गत एक दिसम्बर को असैम्बली में यह दोहराया था कि वह अभी भी हिन्दुत्व विचारधारा के साथ हैं, जिसे मुझसे अलग नहीं किया जा सकता। वास्तविकता यह है कि उनके गठबंधन सहयोगी इस बात को अच्छी तरह समझते हैं। विचारधारा वाला प्लेटफार्म तभी दिख गया था जब उन्होंने अयोध्या की यात्रा की योजना बनाई थी। स्थानीय कांग्रेसी नेताओं ने जल्द ही इसको न्यायोचित ठहराया कि उनको इस मुद्दे के साथ कोई परेशानी नहीं क्योंकि कांग्रेस भी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के हक में थी। कुछ स्थानीय कांग्रेसी तथा राकांपा नेताओं की महत्वपूर्ण गिनती ऐसा महसूस करती है कि इस गठबंधन ने भाजपा के उस प्रचार का जवाब देने में मदद की है, जिसमें यह कहा जा रहा था कि वह मुस्लिम समर्थक है। 

हालांकि उद्धव ठाकरे अपने पिता बाला साहेब ठाकरे की मौत के 7 वर्षों बाद भी शिवसेना को संगठित रखने में कामयाब हुए हैं। एक गठबंधन सरकार को चलाने की ओर वह अग्रसर हैं। मिसाल के तौर पर खुशमिजाजी के अलावा गठबंधन सहयोगियों के लिए कुछ उत्सुकता वाले क्षण भी हैं, जब उद्धव ने सी.ए.ए., एन.आर.सी. तथा एन.पी.आर. जैसे विवादास्पद मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया दी। पिछली दिसम्बर में उद्धव ने कहा कि महाराष्ट्र में सी.ए.ए. को लागू नहीं किया जाएगा और इसके बाद फरवरी माह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ दिल्ली में अपनी बैठक के बाद उन्होंने कहा कि सी.ए.ए. को गलत ढंग से समझा गया। इसके अलावा उन्होंने एन.पी.आर. के पक्ष में भी बयान दिया। इस उठा-पटक के बीच कांग्रेसी नेता मनीष तिवारी ने ट्वीट कर कहा कि महाराष्ट्र के सी.एम. उद्धव ठाकरे को नागरिकता संशोधन एक्ट 2003  पर बात करनी होगी तथा एन.आर.सी. के आधार पर एन.पी.आर. को समझना होगा। जब आप एन.पी.आर. की प्रक्रिया करोगे तब आप एन.आर.सी. को रोक नहीं सकते। सी.ए.ए. को भारतीय संविधान के डिजाइन के साथ समझना होगा कि नागरिकता का आधार धर्म नहीं हो सकता। 

विवादास्पद मुद्दों द्वारा गठबंधन को गड़बड़ाने की अनुमति नहीं दी जाएगी
अब उद्धव ने एन.पी.आर. को जांचने के लिए एक कमेटी की घोषणा की है तथा बजट सत्र से पूर्व विधायकों को यकीन दिलाया है कि विवादास्पद मुद्दों द्वारा गठबंधन को गड़बड़ाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। महाराष्ट्र में तीनों सहयोगियों पर गठबंधन को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी बराबर की है। शिवसेना को यदि महाराष्ट्र की राजनीति में प्रासंगिक रहना है तो उसे  इस गठबंधन प्रयोग को जारी रखना होगा। इसके अलावा उसके पास कोई चारा नहीं। यही शिवसेना का ताना-बाना है जब इसने भाजपा का दामन छोड़ा था। 

हालांकि ऐसी भी धारणाएं हैं कि उद्धव गठबंधन मजबूरी के चलते हिन्दुत्व के विचार को घोलने में लगे हैं। उद्धव को फिर से यकीनी बनाना होगा कि उनकी विचारधारा मजबूत थी। अयोध्या की यात्रा करने तथा राम मंदिर निर्माण के लिए दान करने जैसी अच्छी बात तो कोई हो ही नहीं सकती, जिसने हिन्दुत्व विचारधारा को बल दिया है। क्षेत्रीय पार्टी होने के नाते शिवसेना को फिर से उसी विचारधारा की ओर मुडऩा होगा यदि पार्टी कमजोर हुई। यह भी जोखिम है कि शिवसैनिक मनसे या फिर भाजपा का दामन थाम सकते हैं। इस कारण उद्धव ठाकरे अपनी जमीन को बचाने में लगे हुए हैं जब उन्होंने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम द्वारा शपथ ली, जिसके पहले पैराग्राफ में धर्मनिरपेक्ष है। इस दौरान एक रणनीति के तहत तीनों सहयोगी दल संयम बना रहे हैं तथा उद्धव हिन्दुत्व पर अपनी बीन बजा रहे हैं। इसके माध्यम से गठबंधन सरकार चलती जाएगी।-कल्याणी शंकर
 


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