‘टी.आर.पी. मुक्त’ खबरें क्यों नहीं

punjabkesari.in Wednesday, Oct 21, 2020 - 04:28 AM (IST)

आम दर्शक तो टी.वी. पर केवल सच्ची और साफ-सुथरी खबरें ही देखना चाहते हैं, किंतु टी.आर.पी. की होड़ ने आज न्यूज चैनलों की पत्रकारिता को इतने निचले स्तर पर ला दिया है कि अब अधिकतर न्यूज चैनलों पर सही न्यूज की जगह फेक न्यूज और डिबेट के रूप में हो हल्ला ही देखने-सुनने को मिलता है। सभी चैनल यह दावा करते हैं कि हम ही नंबर वन हैं। अभी हाल ही में देश के दो बड़े न्यूज चैनलों पर टी.आर.पी. से छेड़छाड़ करने के आरोप लगे हैं। टी.आर.पी. की इस होड़ ने न्यूज चैनलों की पत्रकारिता का स्तर इतना अधिक गिरा दिया है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया पर दीमक सी लगती नजर आ रही है। 

इसको साफ करने के उद्देश्य से हर हफ्ते गुरुवार के दिन टी.आर.पी. यानी टैलीविजन रेटिंग प्वाइंट जारी करने वाली संस्था बार्क (ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काऊंसिल) ने यह घोषणा कर दी है कि अगले 8 से 12 हफ्ते तक अलग-अलग न्यूज चैनलों के टी.आर.पी. के आंकड़े जारी नहीं किए जाएंगे। इनमें ङ्क्षहदी न्यूज चैनल, इंगलिश न्यूज चैनल, बिजनैस न्यूज चैनल और क्षेत्रीय भाषाओं के सभी न्यूज चैनल शामिल हैं। बार्क का कहना है कि इस दौरान उनकी तकनीकी टीम टी.आर.पी. मापने के मौजूदा मानदंडों की समीक्षा करेगी और जिन घरों में टी.आर.पी. मापने वाले मीटर लगे हैं, वहां हो रही किसी भी प्रकार की धांधली और छेड़छाड़ को रोकने की कोशिश करेगी। कुछ न्यूज चैनलों द्वारा किए गए कथित टी.आर.पी. घोटाले के कारण 2 से 3 महीनों के लिए टी.आर.पी. को रोक दिया गया है। अब सवाल यह उठता है कि दो से तीन महीनों तक न्यूज चैनलों की टी.आर.पी. की गतिविधियों को रोककर मीडिया को साफ-सुथरा करने की जो कोशिश की जा रही है, क्या वो सच में कामयाब होगी? 

जिस चैनल की टी.आर.पी. जितनी ज्यादा होती है उसे उतने ही ज्यादा और महंगे विज्ञापन मिलते हैं। टैलीविजन के सभी चैनलों के मुकाबले न्यूज चैनलों की भागीदारी बहुत कम है, किंतु दर्शकों पर इनका प्रभाव सबसे ज्यादा होता है। देश के केवल 44 हजार घरों में ही टी.आर.पी. मापने के मीटर लगे हैं, तो सवाल यह भी है कि केवल इतने घरों में लगे हुए टी.आर.पी. मापने के मीटर पूरे देश की टी.आर.पी.  कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं? घोटाले के आरोपों के मुताबिक इन घरों में से कुछ घरों को कुछ रुपए देकर टी.आर.पी. के आंकड़ों से छेड़छाड़ की गई है। आजकल अधिकतर न्यूज चैनल डिबेट दिखाते हैं, क्योंकि डिबेटों में टी.वी. का दर्शक उस न्यूज चैनल पर अपना ज्यादा समय खर्च करता है और जिससे उसकी टी.आर.पी. बढ़ जाती है। आजकल ग्राऊंड रिपोर्ट न्यूज चैनलों से धीरे-धीरे गायब ही होती जा रही है, क्योंकि अब कोई न्यूज चैनल ग्राऊंड रिपोॄटग में मेहनत और पैसा खर्च करना नहीं चाहता और न ही अपने रिपोर्टरों को बाहर भेजना चाहता है। 

अब सवाल यह भी है कि टी.आर.पी. मापने की जो व्यवस्था फिलहाल लागू है, वो क्या वास्तव में सही है? क्या यह व्यवस्था सच्ची और साफ-सुथरी खबरें दिखाने वाले न्यूज चैनलों के लिए उपयोगी है? जवाब है नहीं। यदि ये न्यूज़ चैनल डिबेट करना बंद कर दें, मनोरंजक खबरें देने की बजाय सच्ची और साफ-सुथरी खबरें दिखाना शुरू कर दें तो उनकी टी.आर.पी. निश्चित ही बहुत नीचे आ जाएगी। जिससे विज्ञापनदाता उन चैनलों को विज्ञापन देना बंद कर देंगे और विज्ञापन न मिलने के कारण, उन चैनलों को अपने रिपोर्टरों को तनख्वाह देना भी मुश्किल हो जाएगा और इस कारण उन न्यूज चैनलों को फिर से डिबेट और सस्ती खबरों को दिखाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। डिबेट और सस्ती, मनोरंजक खबरें चैनल की टी.आर.पी. को बढ़ा देंगे, जिससे आगे लोगों को यह भरोसा हो जाएगा कि यही मॉडल सही है। 

न्यूज चैनलों के न्यूज रूम में बैठे प्रोग्राम एडिटर और पत्रकारों के दिमाग में न्यूज बनाते समय केवल एक ही बात ध्यान में रहती है कि कौन-सा प्रोग्राम और न्यूज ज्यादा टी.आर.पी. लाएगा। टी.आर.पी. की होड़ ने पत्रकारिता को इतना नीचे गिरा दिया है कि आज एक न्यूज चैनल के एडिटर और न्यूज एंकर केवल एक एक्टर बन कर रह गए हैं। 

अब आवश्यकता है कि टी.आर.पी. की इस अंधी दौड़ को छोड़कर, न्यूज चैनलों का उद्देश्य, दर्शकों तक जरूरी खबरें और सूचनाएं पहुंचाना होना चाहिए, न कि मनमर्जी की खबरें दिखाना, और यह खबरें रिसर्च और ग्राऊंड रिपोॄटग पर आधारित होनी चाहिएं, यही पत्रकारिता का सच्चा धर्म है।-रंजना मिश्रा
 


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