चालबाज चीन और बढ़ती समुद्री चुनौतियां

punjabkesari.in Friday, Jul 23, 2021 - 06:06 AM (IST)

हाल ही में भारत के रक्षा मंत्री ने 8वीं आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक को संबोधित किया। ए.डी.एम.एम. प्लस आसियान और उसके 8 संवाद भागीदारों का एक मंच है। इस बैठक में भारत द्वारा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय प्रभुत्ता एवं सम्मान के लिए एक खुली और समावेशी व्यवस्था कायम करने, देशों की अखंडता, बातचीत के माध्यम से विवादों का शांतिपूर्ण समाधान और अंतर्राष्ट्रीय नियमों और कानूनों के पालन पर जोर दिया गया। भारत अंतर्राष्ट्रीय जलमार्गों में नौवहन, स्वतंत्र अबाधित वाणिज्य उड़ानों का समर्थन करता है। भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने सांझा दृष्टिकोण के कार्यान्वयन हेतु महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म के रूप में आसियान के नेतृत्व वाले तंत्र के उपयोग का भी समर्थन करता है। 

चीन की बात करें तो चीन संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि में दक्षिण चीन सागर पर अपने दावे से संबंधित मामले को हार चुका है, उसने यू.एन. क्लाज में एक और मामला दर्ज किया है तथा पांच अन्य देशों और चीन के मध्य आचार संहिता पर बातचीत चल रही है। लद्दाख सीमा पर भारत के साथ चल रहे संघर्ष के कारण दक्षिण चीन सागर मुद्दे पर भारत की राय को लेकर चीन बहुत अधिक चिंतित नहीं है। भारत द्वारा समुद्री मुद्दों पर चीन पर दबाव बनाए जाने की उम्मीद है। इसके अलावा भारत द्वारा अभी तक दक्षिण चीन सागर में अपने व्यापरिक हितों का विस्तार नहीं किया गया है, इसलिए यह भारत के लिए अमरीका, जापान या ऑस्ट्रेलिया के समान किसी बड़े खतरे की बात नहीं है। 

अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण दक्षिण चीन सागर रणनीतिक तौर पर अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को जोडऩे वाली एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। चीन रणनीतिक तौर पर ङ्क्षहद-प्रशांत दोनों महासागरों को अपने हितों के प्रमुख क्षेत्रों के रूप में मानता है। दोनों के लिए चीन द्वारा दो अलग-अलग रणनीतियां अपनाई जाती हैं। पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में चीन का मु य हित इसकी एक पूर्ण स्पैक्ट्रम प्रभुत्व रणनीति द्वारा संचालित है। यह वह क्षेत्र है जहां चीन अपनी भौगोलिक सीमा का विस्तार करने हेतु अधिग्रहण जैसे शब्दों का उपयोग ग्रेजोन संचालन के द्वारा करता है। हालांकि ङ्क्षहद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति और लाभ को धीरे-धीरे बढ़ाने के लिए चीन हितधारक शब्द का उपयोग करता है। चीन न केवल सैन्य बल से बल्कि बैल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के जरिए भी अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। 

चीन को प्रत्युत्तर देने के लिए वैश्विक स्तर पर विभिन्न गुट सक्रिय हो गए हैं जिनमें नाटो प्रमुख है। इसके अतिरिक्त क्वाड का गठन भी किया गया है। यूरोपीय यूनियन के प्रमुख देश भी ब्रिटेन के चीन के साथ पुराने मैत्रीपूर्ण संबंध होने के बावजूद चीन को वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए खतरा मानते हैं। वहीं दूसरी तरफ रूस भी मध्य एशिया में चीन के तेजी से बढ़ते प्रभाव से चिंतित है क्योंकि यह इस क्षेत्र में रूस के मजबूत प्रभाव को प्रभावित करेगा। 

अमरीका या रूस जैसे देशों को विश्व व्यवस्था में चीन को पीछे छोडऩा होगा जो कि एक सत्तावादी देश है। भारत को चीन का मुकाबला करने के लिए न केवल एक मजबूत सैन्य रणनीति की जरूरत है, बल्कि इसे बुनियादी ढांचे के घटक, प्रौद्योगिकी से संबंधित पहलुओं सहित एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की भी आवश्यकता है। हिंद महासागर में भारत को अपनी प्रमुखता और मुखरता बनाए रखनी चाहिए तथा चीन को उन क्षेत्रों में काम करने से रोकना चाहिए जो भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं। 

भारत को प्रशांत क्षेत्र पर अपना प्रभाव स्थापित करने के लिए अपने सहयोगियों के साथ सहयोग करने तथा संबंधों को सुधारने की आवश्यकता है क्योंकि यह वह स्थान है जहां चीन की स्थिति अत्यधिक अस्थिर और संवेदनशील  है। हिंद-प्रशांत और दक्षिण चीन सागर क्षेत्र समुद्री सुरक्षा की चुनौतियों से संबंधित प्रमुख क्षेत्र है, जहां भारत और अन्य समान विचारधारा वाले देशों को समन्वित तरीके से कार्य करना होगा। दक्षिण चीन सागर व्यापक चर्चा का एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है। हालांकि भारत सहित कई देश अभी भी चीन से सीधे तौर पर भिडऩे के इच्छुक नहीं हैं।-कुलिन्द्र सिंह यादव


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