आज का युग युद्ध का नहीं

punjabkesari.in Sunday, Sep 25, 2022 - 06:20 AM (IST)

इस साल की शुरूआत में 5 अप्रैल को लोकसभा में रूस-यूक्रेन संकट पर बहस का नेतृत्व करते हुए मैंने भविष्यवाणी की थी कि 24 फरवरी 2022 को मास्को द्वारा कीव पर दिखाई गई आक्रामकता अच्छी तरह से समाप्त नहीं हो सकती। जनमत संग्रह अब रूसी कब्जे वाले क्षेत्र में स्वयं-भू डोनेस्टक (डी.पी.आर.) तथा लुहांस्के पीपल्स रिपब्लिक (एल.पी.आर.) में आयोजित किया जा रहा है। जिसे रूस ने आक्रामकता से पहले स्वतंत्र रूप से मान्यता दी थी।

रूस ने खेरसान और जापोरिज्जिया क्षेत्रों में रूस द्वारा स्थापित प्रशासन को अवैध रूप से वैध बनाने के लिए मान्यता दी थी। यूक्रेन के 9000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को वापस लेने के बाद रूस में युवा लोगों के बीच घबराहट पैदा हो गई है। वास्तव में यह युद्ध एक विभक्ति बिंदू पर हो सकता है।

बैकफुट पर रूस
हाल में यूक्रेनी सेना ने एक महत्वपूर्ण क्षेत्र और एक प्रमुख रसद आधार ईजियम को वापस ले लिया है। रूस को खारकीव क्षेत्र से हजारों सैनिकों को वापस बुलाना पड़ा। इन उल्ट-फेरों के लिए रूसी प्रतिक्रिया का अनुमान लगाया जा सकता है। रूस के अनुसार डोनबास में अपने अभियानों को सुदृढ़ करने के लिए इन क्षेत्रों में सैनिकों को स्थानांतरित किया जा रहा है। इसी तरह का औचित्य पहले कीव से सेना वापस लेने के लिए दिया गया था। यूक्रेन ने सबसे अधिक आश्चर्यचकित किया है। फिर भी कई लोगों ने ऐसी भविष्यवाणी की थी।

हथियारों और गोला-बारूद में अत्यधिक श्रेष्ठता के साथ भी रूसी सैनिकों को उनके कुलीन सैनिकों और चेचेन्या के सशक्त व्यक्ति रमजान कादीरोव के सैनिकों को छोड़ कर युद्ध में पर्याप्त रूप से खून बहाना पड़ेगा। यूक्रेन में युद्ध को क्रेमलिन एक युद्ध के रूप में नहीं देखता है बल्कि रूस के स्वामित्व को पुन: प्राप्त करने के लिए केवल सैन्य अभियान के रूप में देखा जाता है। हालांकि यूक्रेन तथा बेलारूस का अपने इतिहास और सम्प्रभुता दोनों के बारे में अलग दृष्टिकोण है। दुर्भाग्य से सलाव भूमि की रूसी दृष्टि इसे यूक्रेनी सम्प्रभुता को स्वीकार करने से रोकती है। चाहे कुछ भी हो जाए यूक्रेन को रूसी प्रभाव में रखा जाना चाहिए। यूक्रेन में यह महत्वाकांक्षाएं रूस को एक प्रमुख यूरेशियाई शक्ति बनाने के व्यापक लक्ष्य के साथ जुड़ी हुई है।

एक ऐसी स्थिति जिसे वह अभी भी मानता है कि यह वर्तमान में है लेकिन नाटो के पूर्व की ओर विस्तार से खतरा महसूस करता है। वर्तमान संकट में यूक्रेन के नाटो में शामिल होने के बारे में रूस को आशंका थी। हालांकि यह प्रक्रिया स्वयं ही जटिल और समय लेने वाली है। हालांकि मास्को यह बात अच्छी तरह से जानता है कि इरादे की अभिव्यक्ति और वास्तविक सदस्यता के बीच काफी समय का अंतराल है।नि:संदेह 1991 में तत्कालीन सोवियत संघ के पतन के बाद से नाटो के विस्तार में रूस के प्रभाव क्षेत्र को कम करने की कोशिश की। विशेष रूप से इसके निकट देशों में। नाटो को यह अमरीका और उसके सहयोगियों के लिए यूरोप पर हावी होने के लिए एक उपकरण के रूप में देखता है। रूस के लिए उसने जो किया उसके ठीक विपरीत हासिल किया।

ईराक, अफगानिस्तान और व्यापक मध्य पूर्व तथा उत्तरी अफ्रीका में दो दशकों की भागीदारी के बाद अमरीका और यूरोप के अधिकांश हिस्सों में युद्ध की थकान के कारण पश्चिमी विदेश नीति अव्यवस्थित थी लेकिन यूक्रेन में रूसी कार्रवाइयों ने एक मजबूत प्रतिक्रिया की शुरूआत की जिसने नाटो को पहले की तरह समेकित किया है। हालांकि यूक्रेन के लचीलेपन और प्रतिरोध करने की क्षमता ने बहुत से विशेषकों को भी आश्चर्यचकित किया है। सबकी  सहानुभूति पहले स्थान पर यूक्रेनियन के साथ थी। अमरीका अब तक 12.5 अरब डालर की सैन्य सहायता यूक्रेन को दे चुका है। जबकि पोलैंड, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, आस्ट्रेलिया और डेनमार्क अन्य बड़े दानदाता हैं। एम-142 हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम और अमरीका द्वारा भेजा गया हिम्मर रूसी सैनिकों को पीछे हटाने के लिए महत्वपूर्ण रहा है।

इसी तरह विभिन्न पश्चिमी देशों द्वारा सप्लाई किए गए टैंक रोधी हथियार, ड्रोन, मिसाइल सिस्टम और टैंक इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि रूस के आक्रमण ने उसको जो हासिल करने के लिए निर्धारित किया है वह सब कुछ उसके विपरीत है।किसी को भी यूक्रेन में बड़े मानवीय मुद्दों को भूलना नहीं चाहिए। ईजियम में सैंकड़ों लोग मारे गए और जंगल की कब्रों में दफन हो गए। इस शहर पर अब फिर से यूक्रेनी सेना द्वारा कब्जा कर लिया गया है। उस शहर में रूसी सैनिकों द्वारा किए गए कथित  युद्ध अपराधों की जांच की मांग की जा रही है। यूरोपीय संघ ने तो एक युद्ध अपराध न्यायाधिकरण स्थापित करने का आह्वान किया है। बिजली संयंत्रों पर हमलों ने यूक्रेनियाई लोगों को कड़ाके की सर्दी के प्रति संवेदनशील बना दिया है।

अगर रूस ओडेसा और अन्य काला सागर बंदरगाहों को नियंत्रित करता है तो यूक्रेनियन वासी आगे होने वाली असुविधा को देख सकते हैं। इसलिए दुनिया को तत्काल ही रूस को बातचीत करने और इस तथ्य को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करना चाहिए कि यूक्रेन आखिरकार एक सम्प्रभु राष्ट्र है। इस संदर्भ में भारत को महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी चाहिए। नि:संदेह रूस हमारे लिए एक सदाबहार मित्र रहा है। हम पिछले 2 दशकों से कई सैन्य और आर्थिक समझौतों के साथ पश्चिम के करीब भी बढ़े हैं। इसलिए यह एक बहु गठबंधन शक्ति के रूप में भारत पर निर्भर है कि वह हमारे रूसी मित्रों को यह न बताए कि जब उन्होंने यूक्रेन में प्रवेश किया तो वे गलत थे। अगर प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन से स्पष्ट रूप से कहा है कि यह युद्ध का युग नहीं तो इस बारे में रिपोर्ट सही है।-मनीष तिवारी


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