मौलिक संवैधानिक ‘कर्तव्यों’ को याद करने का समय

punjabkesari.in Tuesday, Apr 14, 2020 - 03:37 AM (IST)

भारत इस समय संकट के बेहद गम्भीर दौर में से निकल रहा है। कोरोना वायरस एक खौफनाक महामारी का रूप धारण कर चुका है जिससे बड़ी गिनती में लोगों की जानें खतरे में पड़ गई हैं। देश में लॉकडाऊन लागू किया जा चुका है। इस वायरस ने करीब पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है तथा इसका अभी तक कोई रामबाण इलाज नहीं मिल सका। यह अपने आप में एक बड़ी चुनौती, दुखभरी स्थिति तथा गम्भीर चिंता का विषय है। 

चाहे अमीर हो या गरीब या फिर किसी भी जात या धर्म का हो इस संकट ने पूरी मानवता को प्रभावित किया है। हालांकि कोई भी चुनौती यकीनी तौर पर एक मौका प्रदान करती है। 14 अप्रैल को बाबा भीम राव अम्बेदकर की जयंती है जो हमारे संविधान के निर्माता होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने हमारे संविधान को एक ऐसे सामाजिक दस्तावेज के रूप में पेश किया जिसमें अधिकार तथा जिम्मेदारी के साथ-साथ सशक्तिकरण और समावेश भी समानांतर तौर पर अत्यंत महत्वपूर्ण कीमतें हैं तथा जिनको स्वतंत्र भारत की निरंतर प्रगति के लिए जरूर ही ध्यान में रखा जाना चाहिए। 

भारत की यह अनूठी परम्परा रही है कि जब भी किसी चुनौती का सामना करना होता है तो हमारे देशवासियों की अंदरूनी शक्ति बड़ी तेजी से बढ़ जाती है। हम सबको अच्छी तरह से याद है कि 60 के दशक में जब खाद्य संकट गम्भीर हो गया था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देश वासियों को प्रत्येक दिन एक समय का भोजन छोडऩे के लिए अपील की थी। पूरे देश ने इस कार्य हेतु उनका पूरा साथ दिया था। युद्ध के समय, यहां तक कि राष्ट्रीय संकट के दौरान भी हमारी प्रतिबद्धता तथा एकता से सब वाकिफ हैं। भारत की जनता हमेशा ही हर कसौटी पर खरी उतरी है बशर्ते देश का नेतृत्व प्रेरणादायक हो।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी अत्यंत लोकप्रिय चुने हुए पी.एम. हैं। वह समय-समय पर भारत की जनता को अपील करते रहे हैं तथा हरेक बार देश वासियों ने उनका पूरा साथ दिया है। जब उन्होंने गरीब महिलाओं को उज्ज्वला योजना तहत रसोई गैस कनैक्शन देने के लिए समर्थ लोगों को अपनी रसोई गैस सबसिडी अपनी मर्जी से छोडऩे की अपील की तब भी करोड़ों लोगों ने उनका साथ दिया। जब उन्होंने स्वच्छ भारत कार्यक्रम शुरू किया तब उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को शौचालय के निर्माण के लिए स्वैच्छिक हिस्सा लेने की अपील की। यह उनकी अपील का ही कमाल है कि पिछले साढ़े पांच सालों में इसने एक व्यापक जनआंदोलन का रूप धारण कर लिया है। इसके परिणामस्वरूप में गांवों में अब तक बड़ी गिनती में शौचालयों का निर्माण हो गया तथा कई ग्राम पंचायतें खुले में शौच मुक्त हो गई हैं। भारत की जनता ने स्वेच्छा से स्वच्छ भारत को एक राष्ट्रीय मिशन के रूप में स्वीकार कर लिया है क्योंकि उनको यह लगा है कि ऐसा करना उनका कत्र्तव्य बनता है। 

कोरोना महामारी के मौजूदा संकट में प्रधानमंत्री ने देश वासियों को जनता कफ्र्यू की अपील की। यही नहीं, मोदी ने देश की जनता से सभी डाक्टरों तथा अन्य लोगों के लिए ताली बजाने की अपील की जिन्होंने कोविड-19 से प्रभावित अनगिनत मरीजों की सेवा करने के लिए अपने जीवन को भारी खतरे में डाल दिया। पी.एम. ने पहली बार ही पूरे देश में 21 दिनों के लाकडाऊन की घोषणा करने का बेमिसाल कदम उठाया तथा भारत की जनता ने दिल से मान लिया कि इस संक्रमण वाले वायरस को रोकने के लिए पी.एम. के आदेश को ध्यान में रखते हुए अपने घरों तक सीमित रहकर सामाजिक दूरी बनाए रखना उनके कत्र्तव्य का हिस्सा है। लोगों ने एकता तथा उत्साह को दर्शाते हुए अपने-अपने घरों में दीप जलाए। अधिकार तथा कत्र्तव्य हमारी संवैधानिक व्यवस्था के अभिन्न अंग हैं। यह अलग बात है कि मौलिक कत्र्तव्य बहुत बाद में संविधान में शामिल किए गए थे। 

कत्र्तव्य के साथ-साथ जिम्मेदारी का विचार हमारे संविधान की मूल विशेषता रही है। उदाहरण के तौर पर धारा 19 के तहत विचार प्रकट करना, शांतिपूर्ण तरीके से एकत्रित होना, आवाजाही, निवास इत्यादि की स्वतंंत्रता हमारे मौलिक अधिकार हैं। मगर इसी धारा के तहत धारा 19 (2) में कत्र्तव्यों का भी प्रबंध किया गया है जिसकी पालना ऐसे तरीके से की जानी चाहिए कि जिससे भारत की एकता तथा अखंडता, देश की सुरक्षा, जनतक व्यवस्था, नैतिकता इत्यादि पर इसका उलटा प्रभाव न पड़ता हो। धारा 17 किसी भी रूप में छुआछूत को खत्म करती है तथा ऐसा करने की मनाही भी है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ऐसा न करना हर भारतीय का कत्र्तव्य है। 

संविधान की धारा 39 के तहत राज्यों को ऐसी नीति बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है जिसके तहत भौतिक संसाधनों का इस तरह आबंटन हो जिससे सबका भला हो। धारा 49 के तहत सरकार को हर सामाजिक या कलात्मक महत्व या ऐतिहासिक महत्व वाले ऐसे प्रत्येक स्थान को नुक्सान, तबाही तथा रूप बदलने से रक्षा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है जिसको राष्ट्रीय महत्व वाला स्थान घोषित किया गया हो। यकीनी तौर पर इस धारा में बताया गया है कि इन ऐतिहासिक स्मारकों को सही ढंग से कायम रखना तथा उनकी रक्षा करना हम सबका कत्र्तव्य बनता है। 

धारा 51ए जो बाद में जोड़ी गई है में मौलिक कत्र्तव्यों के बारे में विशेष अध्याय शामिल किया गया है। इसकी कई अहम बातों में राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गान का सम्मान करना, भारत की सम्प्रभुता, एकता तथा अखंडता को कायम रखना और कुदरती सम्पदा की रक्षा करना व उसे बेहतर बनाना इत्यादि शामिल हैं। मेरे विचार में एक अहम कत्र्तव्य 55ए (जे) है जो यह बताता है कि प्रत्येक नागरिक को निजी तथा सामूहिक कार्यों के सभी क्षेत्रों में उत्तमता प्राप्ति हेतु यत्न करने चाहिएं ताकि राष्ट्र निरंतर तौर पर उच्च शिखरों तक पहुंच सके। 

कोरोना वायरस विरुद्ध युद्ध में हमारी सामूहिक इच्छाशक्ति तथा हमारे कत्र्तव्यों की पालना से यदि हमारा देश सफल होता है तो हम अपने राष्ट्र को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए अपने सामूहिक कत्र्तव्य को पूरा करेंगे। हमें यह जानकार काफी खुशी हो रही है कि प्रधानमंत्री मोदी तथा कुछ राज्य सरकारों के प्रयत्नों की प्रशंसा विश्व स्तर पर हो रही है। मैं गम्भीरतापूर्वक यह कहना चाहता हूं कि आज हर भारतीय को अपने आप से सिर्फ यह नहीं पूछना चाहिए कि देश आपको क्या दे सकता है बल्कि यह भी प्रतिबिंबित करना चाहिए कि आप देश को क्या दे सकते हैं। वर्ष 2012 में एक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने रामलीला मैदान की घटना से संबंधित एक मामले में यह स्पष्ट तौर पर कहा कि अधिकार तथा पाबंदी के बीच तथा अधिकार तथा कत्र्तव्य के दौरान भी संतुलन तथा समानता होनी चाहिए।

यदि कत्र्तव्यों की विशेष अहमियत पर विचार किए बिना ही नागरिकों के अधिकारों पर नाजायज या उम्मीद से ज्यादा विशेष जोर दिया जाएगा तो इससे असंतुलन की स्थिति बनेगी। अधिकार का सही स्रोत कत्र्तव्य है। मुझे यकीन है कि इस चुनौतीपूर्ण हालात में प्रत्येक भारतीय इसको याद रखेगा तथा निश्चित तौर पर हम विजयी बनकर उभरेंगे।-रवि शंकर प्रसाद (केन्द्रीय संचार, कानून न्याय एवं इलैक्ट्रॉनिक मंत्री)


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