राजद्रोह अधिनियम का दुरुपयोग करने वालों को दंडित किया जाना चाहिए

punjabkesari.in Thursday, May 12, 2022 - 04:21 AM (IST)

ब्रिटिश काल के देशद्रोह कानून, जिसका सरकारों द्वारा बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जाता है, को लेकर सरकार द्वारा अपने रवैये में यू-टर्न लेना एक स्वागतयोग्य कदम है तथा इसने इस तानाशाहीपूर्ण कानून में संशोधनों की संभावनाओं के दरवाजे खोल दिए हैं। केंद्र ने सोमवार को सुप्रीमकोर्ट को बताया कि उसे राजद्रोह के प्रश्र पर व्यक्त किए जा रहे विभिन्न विचारों बारे जानकारी है और इसने ‘धारा 124-ए (जो देशद्रोह के अपराध से संबंधित है) के प्रावधानों की पुनर्समीक्षा तथा पुनॢवचार करने का निर्णय किया है।’ 

यह शनिवार को भारत के सॉलिसिटर जनरल तथा अटॉर्नी जनरल द्वारा अपनाए गए रवैये के पूर्ण विपरीत था जब उन्होंने सर्वोच्च अदालत को बताया कि कानून की धाराओं की समीक्षा करने की कोई जरूरत नहीं है जिनमें संशोधन किया गया था और सुप्रीमकोर्ट द्वारा 60 वर्ष पूर्व इसका निपटारा कर दिया गया था। भारत के प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना, जो आई.पी.सी. की धारा 124-ए के अंतर्गत ब्रिटिश काल के राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, की अध्यक्षता में एक पीठ द्वारा पूछे गए प्रश्र का उत्तर देते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस कानून की समीक्षा करने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने इस मामले में इसकी वैधता को बनाए रखने के 1962 के सुप्रीमकोर्ट के फैसले का हवाला दिया और कहा कि यह समय के अनुरूप खरा उतरा है। 

भारत के अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने भी इस बात पर जोर दिया कि कानून की समीक्षा करने की कोई जरूरत नहीं है तथा देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा 60 वर्ष पूर्व दिए गए निर्णय ने कानून लागू करने बारे दिशा-निर्देश तय कर दिए थे। इस कानून के अंतर्गत यह प्रावधान है कि जो लोग इन आरोपों के दोषी पाए जाते हैं उन्हें उम्र कैद तथा जुर्माने तक की सजा का सामना करना पड़ सकता है। यह एक गैर-जमानती अपराध है तथा इन आरोपों में गिरफ्तार किए गए अधिकतर लोगों को महीनों तक सलाखों के पीछे रहना पड़ता है। इस कानून के अंतर्गत आरोपित व्यक्ति सरकारी नौकरियों के लिए अयोग्य भी बन जाता है। 

राजद्रोह कानून पर 1962 का निर्णय, जिसे केदारनाथ सिंह मामले के तौर पर भी जाना जाता है, ने इस कानून की वैधता बनाए रखी जबकि इसके दुरुपयोग की आशंका को कम करने का प्रयास किया गया। इसमें कहा गया था कि महज सरकार की आलोचना राजद्रोह के अपराध का आधार नहीं बन सकती जब तक कि इसके साथ हिंसा के लिए आह्वान तथा शह न दी जाए। यद्यपि यह सामान्य जानकारी है कि सरकारें खुलकर तथा निरंतर कानून की धाराओं का उल्लंघन करती आ रही हैं जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकारें  इसके दुरुपयोग को एक अगले स्तर पर ले गई हैं, ऐसा दुरुपयोग दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय से हो रहा है। यहां तक कि क्षेत्रीय दलों द्वारा गठित सरकारें भी राजनीतिक विरोधियों अथवा पत्रकारों व लेखकों से निपटने के लिए राजद्रोह के कानून का इस्तेमाल करती पाई गई हैं। 

नैशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की 2019 के लिए आपराधिक आंकड़ों पर रिपोर्ट के आधिकारिक आंकड़े इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि इन कानूनों के अंतर्गत लोगों को हिरासत में लेने या गिरफ्तार करने के मामलों में तीव्र वृद्धि हुई है। 2019 में राजद्रोह के 93 मामले दर्ज किए गए थे जो 2016 में 35 के मुकाबले 165 प्रतिशत की उछाल है। जहां नवीनतम आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं, इन कानूनों को थोपने की कई हालिया  घटनाएं सामने आई हैं। गत वर्ष 49 प्रमुख शख्सियतों के समूह को राजद्रोह के लिए गिरफ्तार किया गया था। इतिहासकार रामचंद्र गुहा, अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा तथा फिल्म निर्माता मणिरत्नम व अपर्णा सेन सहित ये सभी व्यक्तियों ने बस इतना ही किया था कि पवित्र गाय के नाम पर लिंचिंग की घटनाओं को लेकर अपनी चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री को एक खुला पत्र लिखा था। 

गत कुछ महीनों के दौरान कवियों, फिल्म निर्माताओं, पत्रकारों, राजनीतिज्ञों, सामाजिक कार्यकत्र्ताओं तथा विद्वानों सहित कई नागरिकों के खिलाफ राजद्रोह के मामले दर्ज किए गए। राजद्रोह के आरोपों में एक 22 वर्षीय लड़की की हालिया गिरफ्तारी तथा कांग्रेस नेता शशि थरूर के अतिरिक्त अनंतनाथ, राजदीप सरदेसाई व मृणाल पांडे सहित प्रमुख पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह के आरोप राजद्रोह के कानूनों के दुरुपयोग की कुछ घटनाएं हैं। सुप्रीमकोर्ट ने कानून में संशोधन के लिए इसके प्रस्ताव पर तेजी से अमल करने को कह कर अच्छा किया है और निर्देश दिया है कि इस कानून के अंतर्गत सभी मामले स्थगन की स्थिति में रहेंगे।  यह सुनिश्चित करेगा कि सरकार अपना स्टैंड जितनी जल्दी हो सके स्पष्ट करे। 

एक पहलू यह है कि सरकार तथा सुप्रीमकोर्ट को आवश्यक तौर पर समीक्षा करके सुझाव देना चाहिए कि उन लोगों को दंडित किया जाए जो इस कानून का दुरुपयोग करते हैं। वर्तमान में जो हो रहा है वह यह कि जहां राजद्रोह के आरोपी तब तक जेलों में सड़ते रहते हैं जब तक अदालतों द्वारा उन्हें बरी न कर दिया जाए, जबकि जिन्होंने गलत आरोप लगाए हैं अथवा कानून का दुरुपयोग किया वे बिना किसी सजा के आजाद घूमते हैं। इस अन्याय की कतई इजाजत नहीं होनी चाहिए। 
-विपिन पब्बी


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