अंधविश्वास के मकडज़ाल में उलझी सोच

punjabkesari.in Tuesday, Oct 18, 2022 - 05:43 AM (IST)

साक्षरता की दिशा में हमारा देश भले ही नए आयाम स्थापित कर रहा हो किन्तु वैचारिक उत्थान की दृष्टि में आज भी अधिकांश लोगों को स्व:रचित विवेकशून्यता के दायरे में सिमटा हुआ पाएंगे। जादू-टोने, नरबलि से संबद्ध हालिया घटित घटनाएं साक्षात गवाह हैं कि शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रसार के बावजूद अभी तक हमारा समाज अंधविश्वासों से मुक्ति पाने में अपेक्षित सफलता अर्जित नहीं कर पाया। साक्षर राज्य के रूप में अग्रिम पहचान बनाने वाला केरल भी इस विषय में अपवाद नहीं। हाल ही में पथानाथिट्टा जिले में एक घर से दो महिलाओं के क्षत-विक्षत शव बरामद होने पर एक हृदय विदारक प्रकरण प्रकाश में आया।

पुलिस के कथनानुसार मामला ‘नरबलि’ से संबंधित है। अर्थाभाव से जूझ रहे दम्पति ने एक तांत्रिक से संपर्क साधा जिसने समाधानिक रूप में ‘नरबलि’ देने की बात कही। दैहिक अवमानना में नृशंसता की सभी हदें पार करते हुए तीन माह के अंतराल पर दोनों महिलाओं को इस कुकृत्य की भेंट चढ़ा दिया गया। कोच्चि पुलिस के मुताबिक मुख्यारोपी यौन विकृति का शिकार है तथा 2006 में चोरी, 2020 में एक 75 वर्षीया महिला का दुव्र्यवहारिक शीलहरण करने सहित 10 से अधिक मामलों में नामजद है।

आशंका है कि पूर्व में भी वह इसी ढंग से अन्य जघन्य वारदातों को अंजाम दे चुका है। उपरोक्त प्रकरण की जांच के मध्य ही इसी जिले में ‘काले जादू’ के प्रभावाधीन एक बच्चे के चेतनाशून्य होने का समाचार प्राप्त हुआ। मामले में संदिग्ध महिला तांत्रिक को तत्काल पुलिस हिरासत में ले लिया गया। गौरतलब है कि बीते दिनों दक्षिणी दिल्ली की लोधी कालोनी में भी कथित तौर पर ‘मानव बलि’ के नाम पर छ: वर्षीय बालक की गला रेत कर हत्या कर दी गई थी।

खेद का विषय है कि अंधविश्वासों के नाम पर किसी के जीवन से खिलवाड़ करने वाले नरपिशाचों की सूची केवल तंत्र-मंत्र साधकों अथवा अपरिचितों तक ही सीमित नहीं, ऐसे मामले भी देखने में आते हैं जिनमें कार्यसिद्धि हेतु संबंधी अथवा परिचित ही जीवन भक्षक बन जाते हैं। गुजरात के गिर सोमनाथ के धावा गांव में एक ऐसा ही समाचार प्राप्त हुआ है जहां एक पिता को अपनी 14 वर्षीय बच्ची की ‘बलि’ देने के संदेह में गिरफ्तार किया गया। पुत्र कामना व धन प्राप्ति की लालसा के चलते अंधविश्वासी पिता द्वारा, नवरात्र अष्टमी की रात्रि बलि देने की आशंका व्यक्त की जा रही थी।

माना जा रहा है कि पुनर्जीवित करने के प्रयास में चार दिवसीय तांत्रिक प्रक्रिया के विफल सिद्ध होने पर रात्रिकाल में बच्ची का अंतिम संस्कार कर दिया गया। मामला भले ही अपुष्ट एवं विचाराधीन है किन्तु न चाहते हुए भी वर्ष 2013 का स्मरण हो आता है जब सिवनी जिला, केवलारी थाना क्षेत्र के अंतर्गत तुरगा गांव के खैरमाई मंदिर में पूर्व जनपद सदस्य द्वारा अपनी 8 वर्षीय पुत्री की बलि चढ़ाने का प्रकरण संज्ञान में आया था। ‘राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो’ द्वारा आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना के लिए संयुक्त रूपेण जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक 2000 से 2012 के दौरान काला जादू करने के शक में 350 लोग हत्या का शिकार बने।

पिछले तीन वर्षीय आंकड़ों में मात्र तेलंगाना में ही कुल 39 मामले दर्ज किए गए। समूचे तौर पर पूरा राष्ट्र ही इसकी चपेट में है। वास्तव में जादू-टोना, बलि आदि अंधविश्वास की ही संतित है। आदिम युग की वैज्ञानिक एवं पारखिक अनभिज्ञता से प्रारंभ हुआ अंधविश्वासों का असामाजिक प्रचलन मानवीय क्रियाओं के वृहद विस्तार के साथ न केवल फैलता चला गया बल्कि अनेक भेदों-प्रभेदों सहित गतिमान होता गया। वर्तमान में यह अंधवृत्ति किसी वर्ग विशेष तक सीमित न होकर अपनी बहुपक्षीय पैठ बना चुकी है।

कतिपय उदाहरण छोड़ दें तो शिक्षित, समृद्ध, बौद्धिक वर्ग भी कम अथवा अधिक, इस मकडज़ाल में उलझा नजर आता है। वास्तव में अंधविश्वास एक तर्कहीन, निराधार विश्वास है। इसका न कोई ओर-छोर है न ही आदि-अंत। परम्पराओं व मान्यताओं की ही भांति ये सामाजिक, क्षेत्रीय, जातिगत अथवा धार्मिक आधार पर विभिन्न रूप धार कर पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपना स्थान बनाते चले जाते हैं, जब तक कि ज्ञानज्योति का प्रादुर्भाव एवं अभिग्रहण संभव न होने पाए।

अनुवांशिक रूप में अंधविश्वास मन-मस्तिष्क पर इतना गहरा प्रभाव छोड़ चुका होता है कि हृदय को इससे बाहर निकलने में असुविधा प्रतीत होने लगती है। मुक्ति की संभावना वहीं फलीभूत होती है जहां जागरूकता की चाह हो। भारत वर्ष की विलक्षणता से भला कौन परिचित नहीं? इसके पास सार्वभौमिक दर्शन, स्वाभाविक सहिष्णु धर्म, बड़ा भूभाग, युवा शक्ति, लोकतांत्रिक विविधता का ऐसा दुर्लभ संयोजन है जिसकी समानता कदाचित ही कोई अन्य देश कर पाए। अभाव है तो केवल समग्र रूप में एक तर्कसंगत सोच का।

जनसामान्य को गुमराह करने वाले पाखंडियों के विरुद्ध नकेल कसने व नरभक्षियों के लिए कठोर दंड प्रावधान सुनिश्चित करने सहित ही सर्वस्तरीय जनजागृति अभियान हेतु कमर कसना भी अत्यावश्यक है प्रारब्ध को बदलने का एकमात्र उपाय सच्ची कर्मनिष्ठा ही है। साध्य प्राप्ति हेतु प्रयुक्त साधनों का नीतिपरक चयन अत्यधिक महत्व रखता है। संयोगवश मिली उपलब्धि का सुख क्षणिक एवं दूरगामी परिणाम सदैव दुखदायी होता है।-दीपिका अरोड़ा


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