वाजपेयी सरकार में सभी मंत्री थे और अब मोदी सरकार में सभी कर्मचारी

punjabkesari.in Tuesday, Jul 13, 2021 - 06:25 AM (IST)

मंत्रिमंडल में फेर-बदल से भाजपा ने अपना लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ साधा है। जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पार परिक राजनेताओं पर पेशेवर लोगों को तरजीह दी है। पिछले सप्ताह केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल से प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी छाप को प्रकट किया है। अपनी व्यापकता में इस फेरबदल ने सभी को आश्चर्यचकित किया है। इससे केवल वे लोग ही आश्चर्यचकित नहीं हुए जिन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया गया बल्कि वे भी हैरान हुए होंगे जिन्हें निर्दयता से बाहर का रास्ता दिखाया गया। 

एक दर्जन वरिष्ठ तथा जूनियर मंत्रियों को हटा देना अपनी तरह का एक रिकार्ड होगा। एक तरह से यह मंत्रियों पर की गई सॢजकल सट्राइक ही है। इसके बारे में किसी भी व्यक्ति को आभास नहीं था जिस तरह से एक बड़े स्तर पर हिलजुल की गई। कुछ समय से मंत्री पद खाली पड़े थे। ऐसा भाजपा के सहयोगियों के बाहर होने के बाद हुआ था। कुछ मंत्रियों के पास तो दोहरे या फिर तिहरे चार्ज भी थे। मीडिया ने भी अश्विनी वैष्णव के मंत्रिमंडल में शामिल होने पर ज्यादा ध्यान दिया क्योंकि उन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी, संचार तथा रेलवे का पदभार संभाला है। 

रविशंकर प्रसाद के स्थानापन के तौर पर उन्हें लाया गया जो कम बोलते हैं मगर उनसे बड़े की आशा की जाती है। अपनी पार्टी में पार परिक राजनीतिज्ञों से ज्यादा मोदी पेशेवर लोगों में ज्यादा भरोसा रखते हैं। वैष्णव पूर्व में एक आई.ए.एस. अधिकारी रहे हैं। उसके बाद वह एक प्राइवेट उद्यमी बने और इस बीच उन्होंने प्रतिष्ठित वाह्र्टन स्कूल ऑफ मैनेजमैंट से डिग्री हासिल की। उन्हें प्रभावी रूप से ट्विटर के साथ उपजे गतिरोध को निपटाना है मगर क्या वह रेलवे में एक बदलाव लाएंगे और सूचना प्रौद्योगिकी और संचार में एक प्रमुख व्यवसायी घराने का प्रभाव बेअसर करेंगे? 

वैष्णव के साथ-साथ मंत्रिमंडल में आधा दर्जन ऐसे भी मंत्री हैं जिनकी  पृष्ठभूमि नौकरशाही की रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री को राष्ट्र को पेश आ रही विशाल चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी क्षमताओं पर पूरा भरोसा  है। वह एक प्रमुख कार्यकारी अधिकारी की तरह राष्ट्र के मामलों का प्रबंधन करना चाहते हैं। यही कारण है कि महत्वपूर्ण पदों पर नौकरशाहों की गिनती ज्यादा है। 140 करोड़ से ज्यादा लोगों की आबादी वाले एक राष्ट्र में विविध तथा उलझे हुए हित हैं। 

विभिन्न जातों की भागीदारी तथा क्षेत्रीय हितों को देखना एक जरूरत थी। इसीलिए ऐसी बातों को गृह मंत्री अमित शाह पर छोड़ दिया गया जो मंत्रियों की लॉटरी में विजेता को अकेले ही चुन सकते हैं। यह उल्लेखनीय है कि सत्ताधारी पार्टी के प्रबंधकों ने  27 ओ.बी.सी., 12 अनुसूचित जाति और 8 अनसूचित जनजातीय लोगों को मोदी की टीम में शामिल किया। नि:संदेह इन लोगों का मंत्रिमंडल में शामिल होना एक जरूरी चुनावी मजबूरियां भी थीं। सबसे बड़ी चुनावी लड़ाई उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड तथा पंजाब इत्यादि राज्यों में अगले वर्ष चलने वाली है। राज्यसभा में सीटों को बढ़ाने के लिए यू.पी. पर पकड़ रखना बेहद लाजिमी है। हिंदी भाषा के गढ़ में मतदाताओं का समर्थन पाना जरूरी है। 

यू.पी. जैसे बड़े राज्य में जाति और क्षेत्र महत्वपूर्ण पहलू हैं। महत्वपूर्ण तरीके से गैर-यादव ओ.बी.सी. सूची में अपना प्रभाव बनाए हुए हैं जबकि अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के बीच छोटी जातियों पर भी ध्यानपूर्वक लक्षित किया गया है। इसीलिए यू.पी. से दलित, कुर्मी, लोध ओ.बी.सी., कोरी शामिल किए गए हैं। इसी तरह बिहार से भी दिवंगत राम विलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को भी शामिल किया गया है। एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम जिस पर ध्यान नहीं दिया गया वह आर.एस.एस.-भाजपा के चुनावी क्षेत्र में निश्चित बदलाव है। वाजपेयी-अडवानी के समय से ही संघ परिवार के पार परिक समर्थन आधार पर अभी भी लक्ष्य केन्द्रित है जोकि ब्राह्मण, बनिया तथा शहरी मध्यम वर्ग के रूप में है। 

आप शायद ही शहरी भारत में मध्यम श्रेणी की कालोनियों में एक आर.एस.एस. की शाखा देखेंगे मगर इन्हें तमिलनाडु तथा पंजाब जैसे राज्यों को छोड़ कर ग्रामीण क्षेत्रों में भी अधिक गिनती में देखा जा सकता है। मोदी ने मंत्रियों को अपने संबंधित कार्यालयों से समय पर रिपोर्ट करने की जरूरत पर बल दिया है। अटल बिहारी वाजपेयी और मोदी सरकार के सदस्य होने के अंतर के बारे में पूछे जाने पर हमारे वरिष्ठ मंत्रियों में से एक की प्रतिक्रिया कुछ ऐसी थी, ‘‘वाजपेयी सरकार में सभी मंत्री थे और मोदी सरकार में अब सभी कर्मचारी हैं। हम अपने कंधों को देखते हैं कि कहीं ऐसा न हो कि हम अपने बॉस को नाराज कर दें।’’-वरिन्द्र कपूर


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