संघ अल्पसंख्यकों के नहीं, राष्ट्र विरोधियों के खिलाफ है

punjabkesari.in Monday, Apr 19, 2021 - 04:01 AM (IST)

ऐसा है तो नहीं। परंतु शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पंजाब ने अपने जनरल इजलास में एक प्रस्ताव पास कर एक भय व्यक्त किया है कि आर.एस. एस. हिंदू राष्ट्र के नाम पर भारत के अल्पसंख्यकों को डराना चाहता है। जिन्हें हिंदू राष्ट्र में विश्वास नहीं था वह अफगानिस्तान ले गए।  1947 में जिन्हें यह हिंदुस्तान प्यारा नहीं लगा वह पाकिस्तान और बंगलादेश ले गए। अपनी ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति से अंग्रेजों ने 1935 में म्यांमार भारत से अलग कर दिया। नेपाल एक अलग हिंदू देश बन गया। वर्तमान का यह हिंदुस्तान ‘हिंदू राष्ट्र’ ही तो है। 

इस हिंदुस्तान में अलग-अलग पंथ-सम्प्रदाय हैं। इसमें भिन्न-भिन्न भाषाएं, प्रांत, वेशभूषाएं, मजहब हैं परन्तु भिन्न-भिन्न होते हुए भी यह देश एक है। इस देश की विभिन्नता में भी एकता है। इस एकता का प्रतीक है यह हिंदुस्तान, इंडिया, भारत, आर्यावर्त, हिंदू राष्ट्र। सभी मत-मतांतरों, सम्प्रदायों, पंथों, मजहबों ने इस ‘हिंदू राष्ट्र’ को संवारा है। 

हिन्दू कोई मजहब, संप्रदाय या मत नहीं है। यह तो एक जीवन पद्धति है। वे ऑफ लाइफ है। यह जीने का ढंग वैज्ञानिक है। इस हिन्दू विज्ञान को हजारों साल प्रयोगशाला में डाल कर यहां के महान मनीषियों ने यह निचोड़ निकाला कि वह हिंदू है जो ‘सर्वे भवन्तु सुखिना’ का जयघोष करता है। जो मानव-मानव में भेद नहीं करता है जो शक, हूण, कुषाण, तुर्क, मुगल सबको आत्मसात कर लेता है। सारा विश्व समुदाय तो हिंदू के लिए अपना है। 

आर.एस.एस. इस हिंदू समाज को संगठित रखना चाहता है क्योंकि आर.एस.एस. नहीं चाहता कि यह हिंदू राष्ट्र विखंडित हो और इस पर फिर कोई नादिर शाह, फिर कोई तैमूरलंग, फिर कोई अहमद शाह अब्दाली, फिर कोई महमूद गजनी, फिर कोई मोहम्मद गौरी लुटेरा बन कर आ धमके और इसे लूट कर चलता बने। इस हिंदू राष्ट्र में फिर कोई जयचंद और पृथ्वीराज चौहान बन आपस में न उलझ पड़े। 

इस हिंदू राष्ट्र की माला के मनके हैं मुस्लिम, हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन। भाषा, प्रांत, पूजा पद्धति, मजहब-सम्प्रदाय भले रहें परंतु इसकी पहचान यह ‘हिंदू राष्ट्र’ बने रहे। हिंदू होना तो इस देश की पहचान है। यहां का नागरिक विदेश में कहीं भी जाएगा, कहलाएगा तो हिंदू ही न? हिंदुस्तानी, भारतीय, इंडियन। ऐसे में आर.एस.एस. सिखों को डराएगा क्यों? मुसलमानों को गैर हिंदू कह क्यों दुत्कारेगा? अन्य अल्पसंख्यकों को डराएगा क्यों? हां, आर.एस.एस. उसे जरूर डराएगा जो खाएगा इस देश का और गुण गाएगा पाकिस्तान का। 

आर.एस.एस. उसका शत्रु है जो विदेशों में बैठ इस देश में खालिस्तान बनाने के सपने देख रहे हैं। आर.एस.एस. उन आतंकवादियों का दुश्मन है जिन्होंने विदेशी ताकतों के बल पर जम्मू-कश्मीर में खून की होली खेलने का षड्यंत्र रचा हुआ है। सिख तो आर.एस.एस. का सहोदर है, वह मुस्लिम भी आर.एस.एस. के लिए वंदनीय है जो इस देश को अपनी जान से भी प्यारा अपना वतन मान कर चल रहा है। ऐसे सिखों और मुसलमानों या अन्य अल्पसंख्यकों को आर.एस.एस. भला क्यों डराएगा। वैसे तो आर.एस.एस. के पास डरने-डराने का वक्त ही नहीं। आर.एस.एस. को वैसे भी व्यक्ति निर्माण, समाजोत्थान और देश को एक रखने के अलावा समय ही कहां? इस देश का प्रत्येक भारतवासी संघ का सहोदर है। फिर सिख तो उसका मां जाया भाई है। डराने का तो प्रश्र ही नहीं। संघ डराने की नीति में विश्वास ही नहीं रखता। 

आर.एस.एस. (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) को कोसने, उसकी आलोचना करने का एक राजनीतिक फैशन बन गया है। संघ के नजदीक आए इसके आलोचक- बाबू जय प्रकाश नारायण, भूतपूर्व शिक्षा मंत्री मोहम्मद करीम छागला और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू यूं ही संघ के प्रशंसक नहीं थे। इसी तरह अपनी सगी छोटी बहन, राजनेता और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की प्रधान बीबी जगीर कौर से निवेदन करूंगा कि एक दिन सिर्फ एक घंटा संघ शाखा पर आएं। जत्थेदार मोहन सिंह तुड़, संत हरचंद सिंह लौंगोवाल और मेरे बापू जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहरा संघ शाखाओं के बौद्धिक कार्यक्रमों की शोभा बढ़ा चुके हैं। अपने प्रांतीय प्रचारक नरेन्द्र जी से अनुरोध करूंगा कि वह बीबी जगीर कौर से सम्पर्क साधने यहीं क्यों, परम पावन दरबार साहिब के मुख्यग्रंथी को भी कभी संघ दर्शन करवाएं। 

श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार हरप्रीत सिंह कोई बेगाने थोड़े हैं? संघ तो शत्रु से भी संबंध और संवाद नहीं छोड़ता। संघ शाखाओं का वीकर (समाप्ति) ही गुरबाणी के पवित्र वाक से होता है ‘नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला’ संघ शाखाओं के ओजस्वी गीत तो देखें, ‘पिता वारिया ते लाल चारे वारे ओ हिंद, तेरी शान बदले।’ हमारा तो सिखों से ‘रोटी-बेटी’ का नाता है। हमने तो अपने गुरु की आज्ञा से घर के सबसे बड़े बेटे को ‘सिंह’ सजाने की परम्परा को अपना रखा है। सिखों को डराना ‘तौबा-तौबा’, सिख तो इस हिंदू राष्ट्र की ढाल है। संघ के चाहे सारे वर्ग किंतु-परन्तु करते रहें परन्तु भाई-भाई से जुदा होने की बात न करें। सिख अपना परिवार है। विभाजन की त्रासदी का दर्द क्या हम हिंदू सिख भूल पाएंगे? 

राजनीतिज्ञ हमारे बीच फूट डलवाना चाहते हैं। सिख मित्रो, पंजाब द्रौहियों ने पहले ही खूबसूरत इलाका हिमाचल को, उपजाऊ और औद्योगिक क्षेत्र हरियाणा को और इसका शृंगार चंडीगढ़ केंद्र के हवाले कर हमसे अन्याय किया है। अब आर.एस.एस. के भय की बातें कर ‘नहूं से मांस को अलग करने की फिजूल बातें न करें। साडा इक्को ‘लाना’, इक्को ‘खाना’, इक्को ‘पाना’ मरांगे कट्ठे, जिआंगे कट्ठे। हमने न किसी से डरना और न ही किसी को डराना है।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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