दक्षिण चीन सागर के हालात ‘भारतीय सुरक्षा’ के लिए महत्वपूर्ण

punjabkesari.in Wednesday, Jun 17, 2020 - 03:54 AM (IST)

सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सियन लुंग अपने विदेशी मामलों के नवीनतम अंक में नि:संदेह दुनिया की दो सबसे संभावित शक्तियों के बीच में अपने आपको असमंजस की दुविधा में पड़ा देखते हैं। वह अमरीका को ‘निवासी शक्ति’ और चीन को ‘दरवाजे पर वास्तविकता’ कहते हैं। दोनों देश अपने संबंधों के मूलभूत परिवर्तन में लगे हुए हैं। लगभग कोई नहीं सोचता कि चीन अमरीका को विश्व दृष्टि के रूप में मानता है। 

इंडो-पैसिफिक पिछले 40 वर्षों से अमरीकी आधिपत्य के कारण समृद्ध है न कि केवल उसके भारी निवेश के कारण। उसने आसियान में 328.8 बिलियन डालर तथा चीन में 107 बिलियन डालर का भारी-भरकम निवेश अकेले ही कर रखा है। इसके अलावा इसने इस क्षेत्र में सुरक्षा कवच भी दे रखा है। चीन ने भले ही पिछले दशक में अमरीका को विकास के प्राथमिक इंजन के रूप में प्रतिस्थापित किया हो मगर यह सब एक लागत चुका कर संभव हुआ है। सच्चाई यह है कि अमरीकी सैन्य उपस्थिति ने देशों को अपने स्वयं के रक्षा व्यय में पर्याप्त वृद्धि के बिना आॢथक तौर पर समृद्ध होकर बढऩे का अवसर दिया है। आसियान की तुलना में अमरीका की उपस्थिति से राष्ट्रों के किसी भी समूह को इतना फायदा नहीं हुआ। 

दूसरी ओर चीनी सैन्य दशा चिंता का कारण बनती है क्योंकि उन्होंने दक्षिण चीन सागर को क्षेत्रीय जल घोषित करने के लिए 2009 में 9-डैश लाइन को एकतरफा रखा। उनका क्षेत्रीय दावा अपने आप में अकेले है। यह न तो संधि आधारित है और न ही कानूनी रूप से सही है। 2020 के पहले हिस्से में चीनी नौसेना या मिलीशिया ने एक वियतनामी मछली पकडऩे की नाव को टक्कर मार दी, फिलीपींस के नौसेना पोत और एक मलेशियाई तेल ड्रिङ्क्षलग आप्रेशन को परेशान किया। 2015 के बाद से उन्होंने एक रन-वे तथा अंडर ग्राऊंड स्टोरेज सहूलियतों का सूबी रीफ तथा थिटू आइलैंड पर निर्माण किया। इसके अलावा उसने राडार साइटों तथा मिसाइल शैल्टर का भी निर्माण किया। दक्षिण चीन सागर में चीन ने 2019 में बैलिस्टिक मिसाइल परीक्षण किए। उसने दूसरों को इस क्षेत्र के अधिकार को अस्वीकार करते हुए नौसेना गश्त बढ़ाई। 

सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली इस मामले में पूरी तरह सही हैं। वह अमरीका और चीन के मौलिक विकल्पों का सामना कर रहे हैं। क्षेत्र की शांति और सुरक्षा के संरक्षण में अमरीका की भूमिका को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। जैसा कि कोविड-19 ने सभी अर्थव्यवस्थाओं की लागत को बढ़ाया है। अमरीका भी इससे जूझ रहा है। दक्षिण चीन सागर का प्रभावी तौर पर सैन्यकरण किया गया है। 

किसी को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि संभवत: बढ़ी हुई चीनी-अमरीकी प्रतियोगिता के साथ आसियान अचानक उलट जाएगा। चीन एक बड़ी शक्ति है जो आसियान का सम्मान प्राप्त करना जारी रखेगा। 2020 की पहली तिमाही में यूरोपियन यूनियन को पछाड़ कर आसियान चीन के लिए सबसे बड़ा व्यापारिक पार्टनर बन गया है और आसियान में यह तीसरा सबसे बड़ा निवेशक (150 बिलियन डालर) है। 

दक्षिण चीन सागर की स्थिति कैसी है यह हमारी सुरक्षा और कल्याण के लिए महत्वपूर्ण होगी। पहली बात यह है कि दक्षिण चीन सागर चीन का समुद्र नहीं है बल्कि यह वैश्विक है। दूसरा यह कि यह सागर संचार का एक महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग रहा है, और सदियों से यह मार्ग अबाधित है। तीसरा यह कि भारतीयों ने 1500 से अधिक वर्षों तक इस क्षेत्र के जल को बहाया है। मलेशिया में केदाह से लेकर चीन में कुआनजू तक भारतीय व्यापारिक उपस्थिति का ऐतिहासिक और पर्याप्त पुरातन प्रमाण मौजूद है।

चौथा, हमारे व्यापार का लगभग 200 बिलियन डालर दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरता है और हमारे नागरिक आसियान, चीन, जापान तथा कोरिया गणराज्य में अध्ययन, कार्य और निवेश करते हैं।  पांचवां, हमारे पास इस क्षेत्र की शांति और सुरक्षा में अन्य लोगों के साथ समानता है जो वहां पर निवास करते हैं। इसके साथ हमारे पास नेवीगेशन की स्वतंत्रता भी है। मित्र देशों के साथ अन्य सामान्य गतिविधियां हमारी आॢथक भलाई के लिए भी आवश्यक हैं। 

संक्षेप में दक्षिण चीन सागर हमारा व्यवसाय है। हमारे पास बिना बाधा के दक्षिण चीन सागर को पार करने के लिए अभ्यास और परम्परा द्वारा स्थापित ऐतिहासिक अधिकार है। हमने 2000 वर्ष से एक-दूसरे की समृद्धि में परस्पर योगदान दिया है। हम ऐसा करना जारी रखेंगे। व्यापार और अन्य शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए जिन देशों ने इसके जल को बहाया है वह सब बाहरी हैं जिन्हें दक्षिण चीन सागर में वैध गतिविधि में संलग्र होने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। चीन की दखलअंदाजी के बिना एक आवाज होनी चाहिए। इसका दृढ़ता से विरोध किया जाना चाहिए। 

बदले में हमें भी आसियान की अपेक्षाओं के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए। आसियान अपने भविष्य में भारत द्वारा लम्बे समय तक चलने वाली खरीद की अपेक्षा करता है। उन्होंने इंडो पैसिफिक मामलों में भारत को शामिल करने के लिए फिर से पहल की है। कोविड-19 के संदर्भ में जल्द ही किसी भी समय वैश्विक व्यापार के पुनर्गठन की संभावना नहीं है। क्षेत्रीय व्यवस्था हमारे आर्थिक सुधार और कायाकल्प के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाएगी। भारत को अगली छमाही में दुनिया के अग्रणी विकास क्षेत्र में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बनना होगा। सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली के शब्दों को ध्यान में रखना होगा जिनका कहना है कि भारत के बिना आर.सी.ई.पी. में कुछ महत्वपूर्ण खो गया है। सिंगापुर लम्बा खेल खेल रहा है। क्या हम ऐसा करने के लिए तैयार हैं। भले ही यह अल्पावधि में कुछ लागत लगाता हो।-विजय गोखले


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