क्षेत्रीय दलों का उदय संघीय ढांचे को मजबूत कर सकता है

punjabkesari.in Tuesday, May 04, 2021 - 02:38 AM (IST)

पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु विधानसभा चुनावों के नतीजों से एक बात स्पष्ट है कि ममता बनर्जी, पिनरई विजयन, एम.के. स्टालिन आदि मजबूत क्षेत्रीय नेताओं का प्रभुत्व और वर्चस्व उनकी पाॢटयों के लिए आगे का रास्ता तय कर सकता है। इसलिए भाजपा और कांग्रेस जैसे दो प्रमुख राष्ट्रीय दलों के शीर्ष नेतृत्व को जन आधार वाले राज्य नेताओं को तैयार करना चाहिए। दिल्ली से रिमोट कंट्रोल चलाते हुए जडऱहित और अनुभवहीन नेताओं पर जोर देने की बजाय अपना आधार मजबूत करना चाहिए। 

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 4 राज्यों के तथा एक केन्द्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनावों के परिणाम एक अग्रदूत के रूप में कार्य कर सकते हैं। यह भी साबित हो गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे लोकप्रिय नेता भी विधानसभा में जीत की गारंटी नहीं दे सकते। हालांकि परिदृश्य अलग हो सकता है जब आम चुनाव आयोजित होने हैं। यदि देश में मतदाताओं को विकल्प देने में विपक्ष विफल रहता है तो तब भी मोदी उभर सकते हैं।

रणनीतिकारों का कहना है कि ध्रुवीकरण का हथियार और भाजपा की 5 सूत्रीय रणनीति पश्चिम बंगाल में कार्य नहीं कर सकी और भद्रलोग (कुलीनवर्ग) ने भाजपा का समर्थन नहीं किया और बंगाली गौरव ने ममता के पक्ष में काम किया जिसने चुनावों को बंगाल की बेटी बनाम बाहरी लोगों में बदल दिया। भाजपा बंगाल की संस्कृति और राज्य की पर परा से अंजान थी। दूसरी बात कमीशन का सिंडीकेट और भ्रष्टाचार के आरोपों का सीमित प्रभाव रहा क्योंकि मुख्यमंत्री की जीवन शैली साधारण लोगों को प्रभावित करती है। 

तीसरी बात यह है कि भाजपा के पास मु यमंत्री का चेहरा नहीं था जबकि ममता बनर्जी पिछले 10 वर्षों से सरकार चला रही थीं। उन्होंने मोदी को सीधी टक्कर दी जो एक बार फिर राज्य के चुनावों में जीत को यकीनी बनाने में असफल रहे। चौथा यह है कि बाहर से आने वाले नेता और कार्यकत्र्ता आर.एस.एस. की पसंद नहीं थे। आर.एस.एस. ने पिछले 4 दशकों से समॢपत कार्यकत्र्ताओं को बनाया है जिनकी पार्टी में अनदेखी की गई।

अंतिम कारण यह रहा कि भाजपा का सोनार बांग्ला (स्वर्ण बंगाल का नारा) मिट्टी और रणनीति की बेटी के प्रभाव का मुकाबला नहीं कर सका। हम याद कर सकते हैं कि आर.एस.एस. ने चुनावी सफलता के लिए भाजपा को मोदी, शाह आदि पर निर्भर रहने के बारे में आगाह किया था क्योंकि पार्टी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनावी हार झेल चुकी थी जहां पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी। 

आर.एस.एस. ने दल-बदल नेताओं और उनके समर्थकों पर भरोसा करने के लिए भी दृढ़ता से विरोध किया था क्योंकि उनके पास विचारधारा नहीं है और जब कभी भी उन्हें बेहतर स्थितियां मिल गईं तो वे अपनी वफादारी बदल सकते हैं। आर.एस.एस. ने पश्चिम बंगाल में आधार बनाने के लिए 40 साल तक काम किया था लेकिन तृणमूल कांग्रेस से आए 34 विधायकों ने वास्तविक नेताओं का मनोबल गिराया इसलिए शायद उन्होंने आधे-अधूरे मन से काम किया।

पर्यवेक्षकों का मानना है कि नवीन पटनायक, अरविन्द केजरीवाल, उद्धव ठाकरे, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, प्रकाश सिंह बादल, मुलायम सिंह यादव और मायावती जैसे क्षेत्रीय नेता (इनमें से कुछ का स्थान युवा नेताओं ने ले लिया है) लोगों में बेहद लोकप्रिय हैं इसलिए भाजपा या कांग्रेस राष्ट्रीय नेताओं का लोकप्रियता ग्राफ कम नहीं कर सकते। 

भाजपा ने 34 में से 13 दल-बदलुओं को टिकट आबंटित किया था जिनमें से केवल 5 ही जीत पाए। ‘आया राम गया राम’ वाली छवि के नेता मतदाताओं की पसंद नहीं थे। पश्चिम बंगाल में भाजपा पार्टी का स्थानीय चेहरा बना नहीं पाई जिसकी कीमत उसे चुकानी पड़ी। यह बात उसी तरह से है जैसे कांग्रेस ने असम में किया।

विशेषज्ञों का कहना है कि क्षेत्रीय दलों का उदय संघीय ढांचे को मजबूत कर सकता है और ऐसे नेताओं के बीच विश्वास पैदा कर सकता है जो अपने-अपने राज्यों की लोगों की उ मीदों पर खरे उतरेंगे। कांग्रेस में देखा गया है कि लोकप्रिय और बड़े आधार वाले नेताओं को या तो अपमानित किया गया है या फिर ‘यस मैम’ जैसे लोगों की पार्टी में चलती है। जी-23 नेताओं का अधिकतम मूल्य है हालांकि उनमें से अधिकांश अपने मूल राज्यों में विधानसभा सीटें भी नहीं जीत सकते थे। 

भारतीय जनता पार्टी की आक्रामक बोली और दक्षिण में दखलअंदाजी का सपना पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु में जन आधार क्षेत्रीय नेताओं की वजह से धराशायी हो गया जो ‘जय श्रीराम’ की लोकप्रियता को कम करने में सफल रहे। विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा हालांकि असम में फिर से सत्ता हासिल करने में सफल हुई जिससे उसे थोड़ी राहत मिली। वहीं उसने पड्डुचेरी में कांग्रेस से सत्ता भी छीनी। कांग्रेस पार्टी फिर से असफल हुई है और उसकी गिरावट निरंतर जारी है। उसे अब उत्तर प्रदेश, पंजाब इत्यादि के विधानसभा चुनावों की तैयारियों को यकीनी बनाना होगा। 

द्रमुक नेता एम.के. स्टालिन के प्रयास भी इस बार करिश्मा कर पाए। केरल के मु यमंत्री की अभूतपूर्व जीत ने माक्र्सवादी विरासत को कायम रखा है। हालांकि पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में यह भाप की तरह उड़ी है जहां पर इसके कैडर भाजपा में स्थानांतरित हो चुके हैं। 2016 में 3 सीटें जीतने वाली भाजपा को 2021 में मिली 77 सीटें पार्टी नेतृत्व को कुछ राहत प्रदान जरूरी करेंगी जिसका श्रेय आर.एस.एस. की कठिन मेहनत को जाता है।-के.एस.तोमर
 


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