संगठन की शक्ति में ही निहित है ‘राष्ट्रप्रेम’

punjabkesari.in Saturday, Oct 24, 2020 - 03:44 AM (IST)

देवी -देवता भी दुर्बल प्राणी को बलि रूप में स्वीकार करते हैं। बलवान की बलि ईश्वर भी नहीं लेता, वह भी दुर्बल की रक्षा नहीं करता। बलहीन की कोई पूछ नहीं, यही प्रकृति का नियम है और सृष्टि की विकास यात्रा के मूल में भी यही प्रक्रिया है। हमारे शास्त्र इस बात को बार-बार कहते हैं कि वीर भोग्य: वसुंधरा अर्थात वीर ही इस पृथ्वी का भोग कर पाते हैं। प्रकृति में बलवान निर्बल के ऊपर सदैव विजयी रहता है, मानव समाज में भी यही नियम प्रभावी है। बलवान व्यक्ति को ही गौरव मिलता है। विजयदशमी का त्यौहार एवं उत्सव आसुरी शक्तियों पर दैवी शक्तियों की विजय के साथ-साथ शक्ति की उपासना का प्रतीक है।

उपनिषद् में कहा गया है ‘‘परमात्मा बलहीन व्यक्ति को प्राप्त नहीं होता’’ प्रकृति का नियम है कि बलवान की विजय होती है। यह मानव सहित सभी जीव-जन्तुओं पर लागू होता है। यह राष्ट्रों पर भी समान रूप से लागू होता है। दुनिया में ताकतवर राष्ट्र को ही मान्यता मिलती है और कमजोर देश उनके प्रभाव में रहते हैं। अगर हम आदि कबीलों से लेकर वर्तमान राष्ट्रों तक के इतिहास को देखें तो यह स्पष्ट है कि ताकतवर को सदैव सम्मान मिलता रहा है और निर्बल को अपमान सहना पड़ा है। 

विजयदशमी वीरता एवं शक्ति का पर्व है तथा यह बुराई पर विजय का प्रतीक है। इस दिन शमी वृक्ष का पूजन किए जाने का विधान भी है। ऐसी मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने लंका पर आक्रमण करने से पूर्व शमी वृक्ष के सामने शीश नवाकर अपनी विजय के लिए प्रार्थना की थी। महाभारत के संदर्भ से पता चलता है कि पांडवों ने देशनिकाला के अंतिम वर्ष में अपने हथियार शमी के वृक्ष में ही छिपाए थे। संभवत: इन्हीं दो कारणों से शमी पूजन की परंपरा प्रारंभ हुई होगी। 

नवरात्रि में हम मां दुर्गा की उपासना करते हैं, वह शक्ति का स्वरूप हैं। दुर्गा पूजा का यह पर्व शक्ति की उपासना का पर्व है। अगर हम अपने देवी-देवताओं को देखें तो पाएंगे कि वे हमेशा शस्त्र धारण किए रहते हैं। देवी दुर्गा को महिषासुर मॢदनी कहते हैं। उन्होंने महिषासुर नामक राक्षस को मारकर देवताओं को इससे मुक्ति दिलाई थी। उनकी मूरत से पराक्रम नजर आता है। दुर्गा की सभी भुजाएं शस्त्र धारण किए रहती हैं। वे हमें शक्तिशाली बनने का संदेश देते हैं और बुराइयों पर विजय के लिए प्रेरित करते हैं। ये बुराइयां बाह्य भी हैं और आंतरिक भी। 

यह त्यौहार रावण के संहार से जुड़ा है, जो असुर शक्ति है और बुराई का प्रतीक है। रावण दशानन था, उसके दस सिर दस बुराइयों के प्रतीक थे। आज समाज में बहुत अधिक बुराइयां हैं, आज बुराई रूपी रावण के असंख्य सिर हैं। हमें आज उनका दहन करने और उन पर विजय प्राप्त करने की आवश्यकता है। आज समाज के स्तर पर जिस रावण का सामना हम कर रहे हैं वह नकारात्मकता का बहुआयामी प्रतीक है। महिलाओं पर अत्याचार, कन्या भ्रूण हत्या, आतंकवाद, बच्चों का शोषण, वंचित वर्गों को मूल धारा से बाहर रखना, नशाखोरी, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, कालाबाजारी और अन्याय- ये सभी उन बुराइयों के प्रतीक हैं जिनका हमें अंत करना है। 

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) के ताजा आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में महिलाओं के प्रति अपराध 7.3 प्रतिशत बढ़ गए। रिपोर्ट के अनुसार 2019 में देश में महिलाओं के खिलाफ कुल 4,05,861 अपराध हुए। इनमें 17.9 प्रतिशत मामले अपहरण के और 7.9 प्रतिशत मामले बलात्कार के थे। राज्यों और शहरों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा 59,853 अपराध हुए जो पूरे देश में हुए ऐसे अपराधों का 14.7 प्रतिशत हैं। उत्तर प्रदेश के बाद राजस्थान (41,550) और महाराष्ट्र (37,144) में महिलाओं के खिलाफ  सबसे अधिक अपराध हुए। प्रति एक लाख महिलाओं पर अपराध के मामले में असम (177.8) सबसे आगे रहा। वहीं शहरों में ऐसे 12,902 अपराधों के साथ दिल्ली सबसे आगे रही। 6,519 मामलों के साथ मुंबई दूसरे स्थान पर रही। इन अपराधों के कारण भारत की छवि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धूमिल होती है। 

राष्ट्र के रूप में भी हमें सशक्त होना है। चाहे पाकिस्तान हो या चीन, हम स्वयं को तभी सुरक्षित महसूस करेंगे जब हम शक्तिशाली होंगे। आज पाकिस्तान और चीन निरंतर भारत को कमजोर करने के हथकंडे अपना रहे हैं। पाकिस्तान अपने आप भारत का मुकाबला करने में किसी भी प्रकार से सक्षम नहीं है। इसलिए उसने चीन के साथ अपवित्र गठजोड़ कर लिया है। सतयुग में ज्ञान की शक्ति थी, त्रेता युग में मंत्र शक्ति प्रधान थी। द्वापर युग में युद्ध शक्ति प्रमुख थी। कलयुग के लिए कहा गया है- संघे शक्ति कलियुगे। आज संगठन में ही शक्ति का वास है। हम जितने संगठित होंगे उतने ही शक्तिशाली होंगे। 

रावण को युद्ध में परास्त कर उसका वध कर, प्रभु श्री राम ने माता सीता को उसकी कैद से मुक्त किया और विभीषण को लंका की राजगद्दी पर आसीन किया। उनके भाई लक्ष्मण ने उनसे लंका में कुछ और दिवस रुकने के लिए कहा क्योंकि लंका अत्यधिक रमणीय स्थान था। तब प्रभु श्री राम ने कहा कि स्वर्णमयी और सुंदर लंका उन्हें आकॢषत नहीं करती और उन्हें अपनी जन्मभूमि वापस जाना है क्योंकि जननी और जन्मभूमि दोनों का ही स्थान स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है!-बंडारू दत्तात्रेय(माननीय राज्यपाल हि.प्र.)


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